अद्भुत है मांड्यूक तंत्र पर बना ओएल का मेंढक मंदिर, छिपे हैं कई रहस्य और चमत्कार

Update: 2016-08-07 14:11 GMT

लखीमपुर खीरी: जिले के अधिकतर पौराणिक शिव मंदिरों की अलौकिकता अश्वत्थामा के आगमन और पूजन से जुड़ी हैं। कुछ एक बाबर और औरंगजेब को खदेडऩे की गाथा भी कहते हैं। मगर इन सबके बीच एक ऐसा भी शिव मंदिर है, जो इन मान्यताओं से अलग है फिर भी इसकी महत्ता देश के सुदूर इलाकों तक है।

यह है ओयल का मेढक मंदिर। शिव भक्तों का आकर्षण यहां पूरे साल बना रहता है लेकिन एक दुर्लभ विधा में मंदिर निर्माण होने की वजह से तमाम तांत्रिक और साधक भी यहां अपनी साधना के लिए खिंचे चले आते हैं। वह विधा है मांड्यूक तंत्र।

भक्तों का आकर्षण

-मुख्यालय से 13 किमी दूर स्थित ओयल नगर दो चीजों के लिए मशहूर है। एक तो पीतल नगरी के लिए और दूसरा देश के दूसरे मांड्यूक तंत्र पर आधारित शिव मंदिर के लिए।

-एक तरफ व्यापारी पीतल के बर्तनों की खेप खरीदने पहुंचते हैं तो दूसरी भक्त तरफ भगवान भोले नाथ की पूजा के लिए।

-करीब 400-450 वर्ष पूर्व ओयल स्टेट के शासक अनिरुद्ध सिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

-सोलहवी शताब्दी में ओयल राज्य पर शक्तिशाली गोसाई वंश के राजाओं का राज था। ये लोग झगड़ालू तथा गोरिल्ला युद्ध करने में माहिर थे। इस वजह से क्षेत्र में कोई भी इनसे लोहा लेने में कतराता था।

-लेकिन ओयल स्टेट के शूरवीर राजा अनिरुद्ध सिंह ने न केवल अदम्य साहस से गोसाई वंश से युद्ध किया बल्कि उन्हें पराजित कर उनके खजाने को अपने अधीन कर लिया।

दर्जनों गाथाएं

-राजा अनिरुद्ध सिंह शूरवीर होने के साथ-साथ धर्म परायण भी थे। उन्होंने जीते गए धन का प्रयोग एशोआराम के बजाए धर्मकार्य में करने का फैसला लिया।

-धार्मिक विद्वानों से सलाह के बाद इस धन सम्पदा से एक भव्य शिवालय का निर्माण तय हुआ। शिवलिंग पवित्र नर्मदा नदी से लाया गया। इसलिए इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को नर्वदेश्वर महादेव भी कहा जाता है।

-बताया जाता है कि यह शिवलिंग इतना प्रतापी था कि मजदूर भी उसे उठाकर मंदिर कक्ष में स्थापित नहीं कर सके। ऐसे में यह जिम्मा स्वयं राजा अनिरुद्ध सिंह ने लिया। वह अपने कांधे पर इस शिवलिंग को उठा कर कक्ष तक ले गए और इसे स्थापित कराया।

-निर्णय के अनुसार इस विशाल मंदिर का निर्माण मांड्यूक तंत्र के आधार पर होना था। लिहाजा एक विशाल मेढक का निर्माण कर मंदिर को उसकी पीठ पर स्थापित किया गया। मंदिर का गर्भ गृह कमल की पंखुडियों वाली वास्तु कला पर आधारित है।

-मंदिर के चारों ओर विशाल सीढिय़ों से सुसज्जित दिव्य चबूतरे हैं। मंदिर के अंदर भगवान गणेश तथा मां पार्वती की भी प्रतिमाएं हैं। शिवलिंग के साथ स्थापित मूल प्रतिमा कुछ वर्ष पूर्व चोरी हो गयी है।

-दीवारों पर संदेश व ईश्वरी सत्ता को प्रदर्शित करती बेहतरीन मूर्तिकला उकेरी गई। मंदिर के चारों तरफ बिम्ब भी स्थापित हैं जिन्हें लोग भूल-भुलैय्या कहते हैं। कुल मिलाकर इस मंदिर की सुंदरता और अलौकिकता सहज ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

भूलभुलय्या में जाना वर्जित है

-मंदिर कक्ष के भीतर ही एक द्वार बना हुआ है। इस द्वार पर हमेशा ताला लटका रहता है और किसी को भी इसके भीतर जाने की इजाजत नहीं।

-बताया जाता है कि इस द्वार के पीछे एक भूलभुलैया है। इसका प्रयोग युद्ध के समय राजा अपने परिवार के साथ सुरक्षित बाहर निकलने के लिए इस्तेमाल करते थे।

-इस भूलभुलैया में तीन की श्रेणी में कई द्वार हैं। केवल एक ही द्वार सही दिशा में ले जाता है। बाकी द्वार से गुजरने पर लोग अंधेरे कुएं में गिर जाते थे। खतरनाक होने की वजह से इस द्वार को बंद ही रखा जाता है।

यहां खड़ी अवस्था में है नंदी की प्रतिमा

-इस मंदिर की एक खासियत यहां स्थापित नंदी की प्रतिमा भी है। आम तौर पर शिव मंदिरों में नंदी की प्रतिमा बैठी अवस्था में होती है मगर यहां नंदी खड़ी अवस्था में स्थापित की गई हैं।

-इस विपरीत प्रथा के पीछे का रहस्य क्या है यह तो आज राज परिवार के लोग भी नहीं जानते हैं। मगर इतना तो तय है कि नंदी की प्रतिमा को अलग स्वरूप देने के लिए कुछ न कुछ तो राज जरूर होगा।

मेढक के मुंह से कुंड में गिरता है जल

-इस मंदिर में एक और अनोखा आकर्षण है। जमीन से करीब बीस फीट ऊंचा मंदिर कक्ष स्थापित है। लोग ऊंची-ऊंची पैकरिया चढ़कर मंदिर के माध्य भाग में पहुंचते हैं। फिर करीब 20-25 पैकरिया चढ़कर मंदिर कक्ष तक जाते हैं। कक्ष के सामने ही एक कुआं स्थापित है। यहां से पूजन के लिए जल लिया जाता है।

-आने वाले भक्त बीस फीट ऊपर शिवलिंग पर अभिषेक के लिए जो जल या दूध चढ़ाते हैं वह सीधा जमीन पर स्थापित मेढक के मुख द्वार से निकलकर सामने स्थित कुंड में गिरता है। इस बात से अंजान लोग चढ़ाए गए जल व दूध के निकास को लेकर अक्सर पूछताछ करने को मजबूर होते नजर आते हैं।

सूर्य की दिशा में घूमता है अर्द्ध चंद्र

-मेढक मंदिर के शीर्ष गुम्बद पर एक चंद्र स्थापित है। कई सालों पहले तक यह पूर्ण चंद्र था। इस चंद्र की खासियत है कि यह सूर्य की दिशा में ही घूमता रहता है। माना जाता है कि यह चंद्र पथिकों के लिए दिशा सूचक का कार्य करता था। कुछ साल पहले एक सुबह आधा चंद्रमा ही रह गया।

-लोगों ने बताया कि किसी रात कोई चोर इस चंद्र का आधा भाग काट ले गया था। तो कुछ लोगों का मत है कि भोले नाथ के शीर्ष पर अर्द्ध चंद्र ही स्थापित होता है लिहाजा यह अर्द्धचंद्र किसी शिव लीला की ही देन है।

दिन में 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग

-इस मंदिर के फर्श से लेकर शीर्ष तक जब अद्भुत बातें मौजूद हैं तो फिर स्वयं भोलेनाथ का प्रताप कम कैसे हो सकता है। मंदिर में स्थापित शिव लिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। अब यह कोई कलाकारी है या फिर चमत्कार इसको लेकर फिलहाल कोई कुछ नहीं जानता।

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