सुकमा में शहीद हुआ मुजफ्फनगर का बेटा, परिवार वाले बोले- तब तक अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, जब तक...
मुजफ्फरनगर: छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में शहीद जवानों में उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के एक गरीब परिवार में जन्मे 25 वर्षीय सीआरपीएफ के जवान मनोज कुमार ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की है। सोमवार को हुए छत्तीसगढ़ के सुकमा में घात लगाए बैठे नक्सलियों से मुठभेड़ लेते हुए मनोज कुमार शहीद हुए हैं।
शहीद के परिजनों और ग्रामीणों ने मुज़फ्फरनगर जिला प्रशासन और केंद्र सरकार से शहीद के परिवार को आर्थिक सहायता की मांग करते हुए कहा है कि जब तक सरकार पीड़ित परिवार की सहायता की घोषणा नहीं करेगी, जब तक शहीद के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा।
परिवार से मिली जानकारी के मुताबिक शहीद मनोज का पार्थिव शरीर देर शाम तक आने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश के थाना भोपा क्षेत्र के गांव निरगाजनी निवसी स्व: करमचंद हरिजन के पांच पुत्र और तीन बेटियों में तीसरे नंबर का 25 वर्षीय मनोज कुमार जनता इंटर कालेज से इंटर की पढ़ाई कर वर्ष 2011 CRPF में भर्ती हुए थे।
मनोज की वर्तमान में तैनाती छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में थी। शहीद मनोज कुमार का एक छोटा भाई उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर तैनात है। कुछ वर्ष पूर्व शहीद के पिता करमचंद की गांव में दबंगों द्वारा हत्या कर दी गई थी। ग्रामीणों के मुताबिक पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी मनोज के कंधो पर आ पड़ी थी।
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अविवाहित मनोज की मां ने रोते हुए बताया कि मुझे अपने पुत्र पर नाज है। उसने देश के लिए अपनी जान दी है। अगर मेरे बेटे ने पांच-सात नक्सलियों को मार गिराया होगा। तो उसके शहीद होने का मकसद पूरा हो गया होगा। वहीं शहीद के परिजनों और ग्रामीणों को मनोज की शहादत पर गर्व है। पूरे गांव में शोक की लहार है। शहीद के छोटे भाई रमेश चंद ने भाई की शहादत पर बोलते हुए कहा कि हमें गर्व है अपने भाई पर।
मैं भी अपने भाई की तरह भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता हूं। हालांकि शहीद मनोज का पार्थिव शरीर अभी तक उनके पैतृक गांव नहीं आया है। लेकिन परिजनों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक देर शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर गांव पहुंच जाएगा और उसके बाद ही पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
ग्रामीण नरेंद्र सिंह का कहना है कि रात 12 बजे हमले का पता चला। अभी तक किसी अधकारी का फ़ोन नहीं आया ना ही सही तरह से जानकारी दी गई है। ना किसी अधिकारी ने आकर देखा, ना कोई थाने से आया। ये गरीब परिवार है, विधवा मां है, इनकी पूरी मदद होनी चाहिए। जिला स्तर से कोई भी यहां नहीं आया है, जब तक मदद नहीं मिलेगी, जवान का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। इनकी मदद की जाए और जवान की तीनों बहनों की शादी की व्यवस्था की जाए।
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शहीद की मां का कहना है कि मेरे बेटे ने अगर तो चार नक्सलियों को मारा है, तो फिर ठीक है। काफी बात भी नहीं हुई थी बेटे से। कुछ दिन बाद उसके दोस्त की शादी है। मेरा बेटा दोस्त की शादी में आना चाहता था। मेरे दूसरे बेटे ने बताया था कि मनोज को छुट्टी नहीं मिलेगी। क्या कहूं? मेरा कमाने वाला चला गया।
क्या है मनोज के दोस्त का कहना
मनोज के दोस्त प्रमोद कुमार का कहना है कि बचपन से ही उसे मिल्ट्री में जाने का शौक था। देश सेवा का जूनून और जज्बा उसमें था। घर-परिवार चलाने में मनोज अकेला कमाने वाला था। यहां तक पहुंचने के लिए उसने मेहनत मजदूरी भी की थी। बहादुरी और जूनून की खातिर आज वो सफल हो गया। मुझे बहुत ख़ुशी है कि उसे देश की सेवा के लिए वीरगति मिली। मनोज मेरे साथ इंटर तक पढ़ा था। मनोज ने अपनी तीन छोटी बहनों को पढ़ा लिखा कर उनकी शादी का सपना देखा था। मोदी जी हम कहना चाहते हैं कि मेरे गांव और मेरे दोस्त का नाम दुनिया में जाना जाए। जो उसका सपना था वो सरकार को पूरा करना चाहिए।
क्या है मनोज के भाई का कहना
छोटे भाई रमेश चंद का कहना है कि मुझे उसकी शाहदत पर बहुत गर्व है। 2011 में मनोज सीआरपीएफ में भर्ती हुआ था। अभी उसकी तैनाती छत्तीसगढ़ में थी। कल रात 12 बजे जानकारी मिली कि उसकी बटालियन पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया, जिसमें मनोज शहीद हो गया। कई दिन पहले उससे बात हुई थी। उसने घर का हालचाल जानने के लिए फोन किया था। जैसा मेरा भाई था, भगवान ऐसा भाई सब को दे। अब मेरी भी इच्छा है कि में सेना में भर्ती हो जाऊं और देश के लिए कुछ करूं।