RIP Mulayam Singh Yadav: नेताजी को पहली बार इस तरह मिला था टिकट, ऐसे दिग्गज को किया था चित
Mulayam Singh Yadav Latest News : 1960 के दशक में जब मुलायम सिंह सियासी मैदान में उतरे, उस समय डॉ राम मनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे।
Mulayam Singh Yadav Latest News: देश के बड़े सियासी दिग्गजों में गिने जाने वाले मुलायम सिंह यादव जमीन से उठकर सत्ता के शिखर पर पहुंचने में कामयाब हुए थे। वे 1967 में 28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जनता से जुड़े मुद्दों की लड़ाई लड़ने के कारण उन्होंने आठ बार विधायक का चुनाव जीता जबकि सात बार वे सांसद का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली जबकि केंद्र सरकार में भी रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई।
1960 के दशक में जब मुलायम सिंह सियासी मैदान में उतरे, उस समय डॉ राम मनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। मुलायम सिंह के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले नत्थू सिंह ने लोहिया से मुलायम को जसवंतनगर से चुनावी अखाड़े में उतारने की पैरवी की थी। 1967 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरने के समय मुलायम सिंह के पास कोई भी संसाधन नहीं थे मगर मतदाताओं के समर्थन से वे चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
अखाड़े में पड़ी नत्थू सिंह की नजर
दरअसल मुलायम सिंह ने 1960 के दशक में डॉ राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की। वे अपने क्षेत्र के किसानों और गरीबों से जुड़े हुए मुद्दों को प्रमुखता से उठाते थे। मुलायम सिंह में इतनी गजब की प्रतिभा थी कि उन्होंने मास्टरी, पहलवानी और राजनीति तीनों में संतुलन बनाए रखा था।
उस दौरान जसवंतनगर के एक अखाड़े में कुश्ती का आयोजन किया गया। इस आयोजन में क्षेत्र के तत्कालीन विधायक नत्थू सिंह भी मौजूद थे। कुश्ती के दौरान मुलायम सिंह ने क्षेत्र के मशहूर भारी-भरकम पहलवान को अखाड़े में चित कर दिया। नत्थू सिंह मुलायम सिंह की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और इसके बाद मुलायम की नत्थू सिंह से नज़दीकियां लगातार बढ़ती गईं। नत्थू सिंह ने मुलायम को अपना शागिर्द बना लिया।
इस तरह मिला पहली बार टिकट
मुलायम सिंह ने बीए करने के बाद शिकोहाबाद से टीचिंग का कोर्स किया था। 1965 में उन्हें एक इंटर कॉलेज में मास्टर की नौकरी मिल गई। उन्हें करहल के जैन इंटर कॉलेज में नियुक्ति मिली थी। मास्टरी की नौकरी करने के दो साल बाद 1967 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे थे।
मुलायम सिंह के सियासी गुरु नत्थू सिंह उन्हें जसवंतनगर से चुनाव मैदान में उतारने के उत्सुक थे। उन्होंने डॉक्टर लोहिया से मुलायम सिंह को टिकट देने की वकालत की और लोहिया की मंजूरी के बाद मुलायम सिंह को जसवंतनगर से लड़ाने का फैसला किया गया। नत्थू सिंह ने खुद करहल सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया।
गांव वालों ने उपवास रखकर की मदद
जसवंतनगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मिलने के बाद मुलायम सिंह यादव चुनाव प्रचार में जुट गए। मुलायम सिंह के लिए सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह थी कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए संसाधन नहीं थे। ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने पहले चुनाव में मुलायम की काफी मदद की थी। वे अपनी साइकिल पर बिठाकर मुलायम को तमाम गांवों में चुनाव प्रचार के लिए ले जाते थे।
आर्थिक दिक्कत होने के कारण मुलायम सिंह ग्रामीणों के बीच एक वोट और एक नोट का नारा दिया करते थे। वे लोगों से एक रुपए चुनावी चंदे के रूप में देने की अपील करते थे। उन्होंने लोगों से वादा किया कि चुनाव जीतने पर भी ब्याज सहित रकम लौटाएंगे।
इसी दौरान लोगों की मदद के बाद मुलायम सिंह ने एक पुरानी एम्बेसडर कार तो जरूर खरीद ली मगर फिर ईंधन का संकट पैदा हो गया। तब मुलायम सिंह के गांव वालों ने बैठक बुलाकर पैसे की किसी भी प्रकार की कमी न होने देने का फैसला किया। उन्होंने हफ्ते में एक दिन सिर्फ एक टाइम भोजन करने का फैसला किया ताकि बचे हुए पैसे से मुलायम की मदद की जा सके।
पहली जीत के बाद लगातार कामयाबी
जसवंतनगर क्षेत्र के लोगों की मदद से मुलायम ने पहले चुनाव में ही बड़ी कामयाबी हासिल की थी। 1967 के पहले चुनाव में मुलायम सिंह का मुकाबला उस समय के दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस प्रत्याशी लाखन सिंह से हुआ था। एडवोकेट लाखन सिंह हर मामले में मुलायम सिंह से बीस थे मगर पहलवानी के शौकीन मुलायम सिंह ने उन्हें इस सियासी अखाड़े में चित करके सबको हैरान कर दिया था।
28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनने के बाद मुलायम सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते रहे और 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाली। उनके सियासी जीवन में एक बार प्रधानमंत्री बनने का मौका भी आया था मगर लालू प्रसाद यादव की वजह से वे देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब नहीं हो सके।