मुर्दों पर भी महंगाई की मार, अंतिम संस्कार के लिए चुकानी पड़ रही है दोगुनी रकम

Update:2018-11-16 14:00 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी: महंगाई को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। पेट्रोल, डीजल और गैस की बढ़ी कीमतों ने सरकार की नींद उड़ा दी है। सत्ताधारी नेताओं को जवाब देते नहीं सूझ रहा हैं तो विरोधी हमलावर हैं। सिर्फ पेट्रोल-डीजल ही क्यों, इसका असर खाने पीने की चीजों पर भी साफ असर देखा जा रहा है। महंगाई को कैसे कंट्रोल किया जाए, सरकार अब तक समझ नहीं पा रही है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में महंगाई की एक दिलचस्प तस्वीर देखने को मिली है। शहर की प्रमुख मंडियों, बाजारों के साथ यहां के श्मशान घाटों पर भी महंगाई ने डेरा डाल दिया है। नतीजा ये है कि मोक्ष की तलाश में यहां आने वाले मुर्दों को भी महंगाई से दो चार होना पड़ रहा है। अंतिम संस्कार के लिए अब पहले की तुलना में लगभग दो गुनी रकम चुकानी पड़ रही है।

दोगुना हो गया अग्निदाह कर

अंतिम संस्कार के दौरान अग्निदाह को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। चिता में अग्नि लगने के साथ ही मृतक अपने अनंत सफर पर निकल पड़ता है। श्मशान घाट पर चिता को अग्नि देने की व्यवस्था चौधरी समाज (डोम) करता है। इसके एवज में मृतक के परिजन एक तय रकम देते हैं। वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर ये रकम पहले 301 रुपए थी, लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते चौधरी समाज ने कुछ दिन पहले बैठक कर अग्निदाह कर की रकम बढ़ाने का फैसला लिया। इसमें डेढ़ गुना से ज्यादा का इजाफा किया गया है। अब अग्निदाह कर की निश्चित रकम 501 रुपए कर दी गई है। यही नहीं चिता सजाने और जलाने की रकम में भी इजाफा किया गया है। पहले चिता सजाने की रकम 50 रुपए थी। उसे अब 100 रुपए कर दिया गया। इसी तरह चिता जलाने की रकम सौ रुपए थी। अब उसे 150 रुपए कर दिया गया है। चौधरी समाज के लोगों का कहना है कि महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है।

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ऐसे में इतने कम पैसे में अग्निदाह कर पाना संभव नहीं है। इतने पैसे में गुजारा नहीं चल पा रहा है। इन लोगों का तर्क है कि जैसे अन्य चीजों के दाम बढ़ रहे हैं,नौकरीपेशा लोगों के वेतन में बढ़ोतरी हो रही है, उसी तरह हमारे पेशे की भी मजबूरी है। हालांकि समाज के लोगों का दावा है कि अगर कोई गरीब अंतिम संस्कार के लिए आता है तो उसके ऊपर ये कानून लागू नहीं होगा। गरीब व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से जो दे दे, वही मंजूर रहेगा। चौधरी समाज के मुताबिक सदियों से चली आ रही परंपरा को हम लोगों ने जीवित कर रखा है। ऐसे में वर्तमान सरकार को भी हमारी ओर ध्यान देना चाहिए।

लोग कर रहे मनमानी की शिकायत

दूसरी ओर स्थानीय लोगों का कहना है कि लकड़ी दुकानदारों की मनमानी हमेशा से देखने को मिलती है। आए दिन दुकानदार कोई न कोई बहाना बनाकर लकड़ी के दामों में इजाफा करते रहते हैं। दुकानदार घाट पर आने वाले लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। ये कोई पहली बार नहीं है जब लकड़ी के दामों में इजाफा हुआ है। लगभग छह महीने पहले भी दामों में बढ़ोतरी देखने को मिली थी। वैसे भी फिक्स रेट के अलावा ये दुकानदार अंतिम संस्कार में आने वाली पार्टी को देखकर अपना रेट बढ़ा देते हैं।

अगर पार्टी आर्थिक रूप से मजबूत दिखती है तो उसके लिए अलग रेट रख देते हैं। दामों में इजाफा सिर्फ लकड़ी के दामों में ही नहीं दिख रहा है, बल्कि अंतिम संस्कार के पहले बाल उतारने वाले नाई समाज ने भी अपनी मजदूरी बढ़ा दी है। दरअसल अंतिम संस्कार के पहले मुखाग्नि देने वाले शख्स को अपना बाल उतरवाना पड़ता है। इस काम को घाट पर मौजूद नाई समाज के लोग करते हैं, लेकिन हाल के दिनों में नाई समाज ने भी अपना रेट बढ़ा दिया है। बाल उतारने का रेट पहले 25 रुपए था, लेकिन अब वो 50 रुपए हो गया है। नाई समाज इसके पीछे महंगाई को कारण बता रहा है।

घाट पर होता है करोड़ों का कारोबार

कहते हैं कि काशी में मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि मरने के बाद मोक्ष की कामना लिए लोग काशी में अंतिम संस्कार के लिए पहुंचते हैं। काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इन दोनों घाटों पर औसतन 200 शव अंतिम संस्कार के लिए प्रति दिन पहुंचते हैं। कभी-कभी संख्या 500 के पार भी हो जाती है। खासतौर से गर्मियों और प्रचंड ठंडी के दिनों में तो घाटों पर शवों की लाइन लगी रहती है। कई बार तो हालत यह हो जाती है कि शवों को अंतिम संस्कार के पहले घंटों इंतजार करना पड़ता है। लिहाजा अंतिम संस्कार से जुड़े लोगों के लिए ये दोनों घाट रोजी-रोटी का बड़ा जरिया बन चुके हैं। लगभग दो सौ परिवार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। मतलब एक हजार लोगों की रोजी-रोटी का जरिया शवों के अंतिम संस्कार पर निर्भर करता है। एक अनुमान के मुताबिक दोनों घाटों पर औसतन हर साल लगभग 10 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होता है। इसमें अग्नि देने वालों के अलावा लकड़ी, नाई और कफन बेचने वाले लोग शामिल हैं। हाल के दिनों में इसमें तेजी से इजाफा देखने को मिल रहा है।

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नाई समाज और लकड़ी दुकानदारों ने बढ़ाए दाम

अंतिम संस्कार करने वाले लोगों की मुश्किलें यही खत्म नहीं होती है। अग्निदाह कर के अलावा अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक लकडिय़ों के लिए भी उन्हें पहले की तुलना में अधिक रकम चुकानी पड़ रही है। आमतौर पर एक शव को जलाने में 7 मन, 9 मन या फिर 11 लकड़ी की जरुरत पड़ती है। मणिकर्णिका घाट पर आमतौर पर मिलने वाली लकडिय़ों की कीमत 400 से लेकर 600 रुपए प्रति मन होती है। ऐसे में एक शव को जलाने में औसतन चार हजार रुपए खर्च होते हैं। महंगाई के इस दौर में मौका देख लकड़ी व्यवसायियों ने भी दामों में इजाफा कर दिया है। लकड़ी के दामों में प्रति मन 25 से 40 रुपए का इजाफा हुआ है। इसे लेकर घाट पर आने वाले लोगों और दुकानदारों में बहस देखने को मिल रही है। दुकानदारों का तर्क है कि पेड़ों की कटाई पर रोक के कारण लकड़ी के दामों में इजाफा हुआ है। नियमों में सख्ती के कारण अब आसानी से लकड़ी कटाई नहीं हो पा रही है। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट का किराया भी पहले की तुलना में बढ़ गया है। लिहाजा हमारे सामने दाम बढ़ाने की मजबूरी है।

महाश्मशान की धार्मिक मान्यता

देश में श्मशान घाट हर शहर में मिलेंगे, लेकिन महाश्मशान सिर्फ काशी में ही है, जिसे मणिकर्णिका घाट कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर शव जलाने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिल जाता है। मान्यता है कि महाश्मशान पर दाह संस्कार के लिए लाए जाने वाली हर लाश को माता पार्वती भोजन आदि कराने के बाद खुद शिव लोक भेजती हैं। यही वजह है कि इस महाश्मशान पर पूर्वांचल से लेकर बिहार व मध्य प्रदेश तक से प्रतिदिन सैकड़ों शव आते हैं। कहा जाता है कि महाश्मशान पर सदियों से चिता की राख ठंडी नहीं हुई है। चाहे सर्दी हो या गर्मी या फिर झमाझम बरसात। घाट पर हर वक्त चिता जलती रहती है। यहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता। मणिकर्णिका घाट की इसके अलावा भी कई अन्य विशेषताएं है जो भारत के किसी अन्य श्मशान घाट में नहीं है। मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच भस्म की होली खेली जाती है तो दूसरी ओर चैत्र में सेक्स वर्कर पूरी रात यहां डांस करती है।

काशी के घाट

  • डोम राजा का परिवार ही देता है शवों को अग्नि
  • डोम राजा के अलग-अलग परिवारों में करीब 800 सदस्य
  • डोम राजा के परिवार में शवों की अधजली लकडिय़ों पर बनते हैं खाने
  • श्मशान घाटों पर लगभग 15-20 करोड़ रुपए का होता है कारोबार
  • श्मशान घाटों पर प्रतिदिन पहुंचते हैं लगभग 200-250 शव
  • सदियों से श्मशान घाटों की चिता नहीं पड़ी है ठंडी

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