New UP BJP President: भूपेंद्र सिंह चौधरी के जरिये जाट समीकरण पर भाजपा का बड़ा सियासी दांव
New UP BJP President: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी पर मजबूत पकड़ रखने वाले प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी को उत्तर प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
New UP BJP President: 2024 की सियासी जंग में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समीकरण को साधने के लिए भाजपा ने बड़ा सियासी दांव खेल दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी पर मजबूत पकड़ रखने वाले प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी को उत्तर प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी मगर किसान आंदोलन के बावजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा शानदार प्रदर्शन करने में कामयाब रही थी। अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने लंबे समय तक मंथन करने के बाद भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपने का फैसला दिया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद भूपेंद्र सिंह चौधरी की ताजपोशी को जाट समीकरण को साधने में भाजपा का बड़ा कदम माना जा रहा है।
अटकलों ने इस कारण पकड़ी तेजी
चौधरी बुधवार को आजमगढ़ में थे और उनका पहले से ही कई कार्यक्रम निर्धारित था। इसी बीच उन्हें शीर्ष नेतृत्व की ओर से दिल्ली तलब कर लिया गया। चौधरी आजमगढ़ के सारे कार्यक्रम छोड़कर तत्काल दिल्ली रवाना हो गए। दिल्ली पहुंच कर उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद ही चौधरी को भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाने की अटकलों ने तेजी पकड़ ली थी। आखिरकार दिल्ली के सियासी हलकों में लगाई जा रही अटकलें सच साबित हुई और आज दोपहर चौधरी की उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी का अधिकारिक ऐलान कर दिया गया।
लंबी कवायद के बाद चौधरी के नाम पर मुहर
उत्तर प्रदेश में नए भाजपा अध्यक्ष को लेकर लंबे समय से कवायद चल रही थी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी नए अध्यक्ष को लेकर जातीय और सामाजिक समीकरण के आधार पर नफा-नुकसान को तोलने में जुटा हुआ था। यही कारण था कि ब्राह्मण, दलित, ओबीसी और जाट बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले कई नेताओं के नाम चर्चा में थे। पिछले दिनों राज्य के दो डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और केशव देव मौर्य की पार्टी अध्यक्ष नड्डा से मुलाकात के बाद भी चर्चाओं ने तेजी पकड़ी थी। मौर्य के संगठन को सरकार से बड़ा बताने वाले ट्वीट के बाद मीडिया में उनका नाम सबसे ऊपर उभरकर सामने आया था। लंबे समय से चल रही इस कवायद के बाद अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने पत्ते खोल दिए हैं।
2024 की जंग में यूपी की भूमिका अहम
भूपेंद्र सिंह चौधरी की ताजपोशी के पीछे भाजपा का बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है। दिल्ली की सत्ता की लड़ाई में उत्तर प्रदेश की भूमिका सियासी नजरिए से सबसे महत्वपूर्ण होती है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सत्ता पर भाजपा की मजबूत पकड़ बनाने में उत्तर प्रदेश ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अब भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों पर नजरें गड़ा रखी हैं। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें दिल्ली की सत्ता का फैसला करने में एक बार फिर प्रमुख भूमिका निभाएंगी।
धनखड़ के बाद अब चौधरी पर दांव
किसान आंदोलन के कारण भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधने पर ज्यादा जोर दे रही है। भाजपा ने पिछले दिनों जाट बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का चुनाव जिताने में कामयाबी हासिल की थी। धनखड़ की उम्मीदवारी के जरिये भी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली में जाट समीकरण को साधने की सोच थी। अब उसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जाट चेहरे भूपेंद्र सिंह चौधरी की ताजपोशी करके जाट बिरादरी का समर्थन हासिल करने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति
यदि 2022 के विधानसभा चुनावों को देखा जाए तो किसान आंदोलन और जाटों की नाराजगी की खबरों के बीच भाजपा शानदार प्रदर्शन करने में कामयाब रही थी। हालांकि 2017 की अपेक्षा भाजपा को 15 सीटों का नुकसान सहना पड़ा मगर सपा-रालोद गठबंधन के बावजूद विपक्ष भाजपा को भी पिछाड़ने में विफल साबित हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 24 जिलों की 126 में से 100 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और पार्टी की सफलता का स्ट्राइक रेट 79 फ़ीसदी था।
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 126 में से 85 सीटें जीतने में कामयाब रही। 2022 में भाजपा की सफलता का स्ट्राइक रेट 67 फ़ीसदी रहा। 2022 के चुनाव में भाजपा आगरा, मथुरा, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर जैसे कुछ जिलों में सभी सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस जीत के पीछे भूपेंद्र सिंह चौधरी की मेहनत को भी बड़ा कारण माना जाता रहा है।
सपा-रालोद गठबंधन को जवाब
भूपेंद्र सिंह की ताजपोशी को सपा-रालोद गठबंधन को करारा जवाब देने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। सपा और रालोद के बीच गठबंधन होने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका लगने की उम्मीद जताई जा रही थी मगर ऐसा नहीं हो सका। सपा-रालोद ने मिलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 126 में से 41 सीटों पर जीत हासिल की। इस गठबंधन की सफलता का स्ट्राइक रेट सिर्फ 32 फ़ीसदी रहा।
जयंत चौधरी की अगुवाई वाला रालोद 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर सिमट गया था मगर सपा से गठबंधन के बावजूद रालोद 2022 में भी कमाल नहीं दिखा सका। पिछले विधानसभा चुनाव में रालोद ने 33 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे मगर उसे सिर्फ 8 सीटों पर ही कामयाबी मिल सकी।
चौधरी की ताजपोशी के पीछे 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा-रालोद गठबंधन को पटखनी देने की सोच छिपी हुई है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि जाट बिरादरी को एकजुट रखकर 2014 और 2019 वाली कहानी 2024 में भी दोहराई जा सकती है। भाजपा के इस कदम के जरिए जाट प्रभाव वाली करीब डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटों पर पार्टी को फायदा हो सकता है।
जाट नेता के रूप में चौधरी की पहचान
भूपेंद्र चौधरी के पहचान प्रमुख जाट नेता के रूप में होती रही है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती रही है। यही कारण है कि 2017 के बाद 2022 में भाजपा की जीत के बाद भूपेंद्र चौधरी को लगातार दूसरी बार प्रदेश में मंत्री बनाया गया। भूपेंद्र चौधरी को संगठन के काम में भी कुशलता हासिल है। लंबे समय तक संगठन में काम करने के साथ ही वे क्षेत्रीय अध्यक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं।
मुरादाबाद जिले के महेंद्री सिकंदरपुर गांव के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले चौधरी ने शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद के लिए काम किया और बाद में उन्होंने 1991 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। चौधरी 1999 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं। वे फिलहाल यूपी विधान परिषद के सदस्य हैं और अब भाजपा ने भूपेंद्र चौधरी को सियासी नजरिए से सबसे अहम राज्य में पार्टी की जिम्मेदारी सौंपकर बड़ा सियासी दांव खेला है।
पश्चिमी यूपी में हो सकता है बड़ा फायदा
इस कदम के जरिए भाजपा ने पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संतुलन साधने की भी कोशिश की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ताल्लुक पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से है तो अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले चौधरी को संगठन मुखिया बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की गई है।
सियासी जानकारों का मानना है कि 2024 की सियासी जंग के मद्देनजर भाजपा ने गहन मंथन के बाद चौधरी को जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है और वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं।