दो या तीन नही, बल्कि 56 इमामबाड़े हैं लखनऊ में, जानिए पूरी कहानी

ये सारी इमारतें एवं बिल्डिंग्स मुगल आर्किटेक्ट पर बनी हुई हैं, जिन्हें अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पुत्र, तत्कालीन नवाब आसिफ-उद-दौला ने बनवाया था। उन्होंने अपने 22 साल के शासन काल में बहुत सारी इमारतों के निर्माण करवाये।

Update:2019-03-19 13:55 IST

लखनऊ: नवाबों की नगरी अपनी विरासती झलक के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, इस बात का सबूत देती है लखनऊ की मुगल काल में बनी हुई इमारतें।

जो अपनी खूबसूरती और बेहतरीन आर्किटेक्ट के लिए पूरे विश्व में एक अलग पहचान बनाये हुए हैं, इन इमारतों में बड़ा व छोटा इमामबाड़ा, रूमी गेट, क्लॉक टावर, अकबरी गेट के साथ हुसैनाबाद क्षेत्र की और विरासती बिल्डिंग्स हैं।

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ये सारी इमारतें एवं बिल्डिंग्स मुगल आर्किटेक्ट पर बनी हुई हैं, जिन्हें अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पुत्र, तत्कालीन नवाब आसिफ-उद-दौला ने बनवाया था। उन्होंने अपने 22 साल के शासन काल में बहुत सारी इमारतों के निर्माण करवाये।

'ऐक्सिडेंटल आर्किटेक्चर' कहा जाता है इन इमारतों को

दरअसल उस वक़्त लोगों को रोजगार देने के लिए नवाब आसिफ-उद-दौला ने इमारतों का निर्माण कराना शुरू किया, जिससे गरीबों को रोजगार मिल सके।

इस दौरान मजदूर दिन भर बिल्डिंग्स बनाते और रात में तोड़ते, जिससे इन इमारतों का निर्माण हो गया, इसका सबूत हुसैनाबाद स्थित भूलभुलैया है, जिसमें छत पर जाने को 1024 रास्तें हैं पर लौटने को मात्र एक रास्ता।

56 इमामबाड़ों वाला है लखनऊ शहर

इस हेडलाइन को पढ़कर काफी लोग सोच में पड़ जाएंगे लेकिन यह सच है, लखनऊ शहर में दो या तीन नही बल्कि पूरे 56 इमामबाड़े हैं।

इमामबाड़ा का अर्थ होता है- इमाम का घर, यानी जहां इमाम लोग रहते हों और ऐसे कई घर चौक, नक्कास की गलियों में हैं, जिन्हें आम लोग नही जानते।

जब इस पर हमने अपनी रिसर्च शुरू की तो हमने चौक एवं पुराने लखनऊ के इलाकों में बड़ा व छोटा इमामबाड़ा मिलाकर 56 इमामबाड़े ढूंढ निकाले।

लेकिन अभी भी यह संख्या अधूरी है, क्योंकि अभी और भी इमामबाडे होने की संभावना है।

काला इमामबाड़ा है बेहद खास

नवाब आसिफ उद दौला के शासनकाल में सन 1700 में बना यह इमामबाड़ा पुराने लखनऊ में स्थित है, इस इमारत का रंग काला होने की वजह से इसे काला इमामबाड़ा व काजल की कोठरी भी कहा जाता है।

इसकी खासियत यह है कि यह मस्जिद, इमामबाड़ा और दरगाह तीनो है, हुसैनाबाद रोड स्थित इस इमामबाड़े को मोहर्रम के समय ही खोला जाता है,

यह इमामबाड़ा फिलहाल सरकारी देख रेख में है, लेकिन यह इमामबाड़ा अपनी पहचान को ढूंढ रहा है, जो कि बेहद शर्मनाक है, क्योंकि इसमें ज्यादातर बच्चे खेलते हुए या पतंग उड़ाते हुए नज़र आते हैं।

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शहर के लोगों को भी नही पता 56 इमामबाड़ों का राज़

newstrack.com ने जब लोगों से पूछा कि लखनऊ में कितने इमामबाड़े हैं, तो राजाजीपुरम के निवासी अभिषेक सिंह, आई.टी. पर रहने वाले मंजीत सिंह के साथ चौक और पुराने लखनऊ के लोग भी इससे अनजान दिखे।

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