अति पिछड़ों की हिस्सेदारी के लिए लड़ने वाले ओमप्रकाश राजभर ने कांशीराम से सीखा है राजनीति का पाठ
Om Prakash Rajbhar: अति पिछड़ों को हक दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले ओम प्रकाश राजभर ने राजनीति का पहला पाठ बीएसपी (BSP) के संस्थापक कांशीराम से सीखा है।
Om Prakash Rajbhar: राजनीति और सत्ता में अति पिछड़ों को हक दिलाने के लिए संघर्ष की राह चुनने वाले ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने राजनीति का पहला पाठ बीएसपी (BSP) के संस्थापक कांशीराम से सीखा है। तीन दशक से लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने चुनाव में भागीदारी और सत्ता में हिस्सेदारी के फार्मूले पर काम किया है। पिछले तीन साल से भाजपा के खिलाफ झंडा उठा रखा है। आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2021) में भाजपा को सत्ता से बेदखल करना ही उनका लक्ष्य है।
कांशीराम से राजनीति का ककहरा सीखने वाले ओमप्रकाश राजभर ने लंबे समय तक बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संगठन में काम किया। अति पिछड़ों को हक के मुद्दे पर उनकी मायावती (Mayawati) से ठन गई तो बसपा छोड़ दी। सोनेलाल पटेल (Sone Lal Patel) की अपना दल पार्टी (Apna Dal) में रहे लेकिन 2002 में उन्हें महसूस हुआ कि अति पिछड़ा वर्ग के लिए संघर्ष को धार तब मिलेगी जब अति पिछड़ों का राजनीतिक संगठन होगा। वह खुद बताते हैं कि इस बात का अहसास होने के बाद उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) का गठन किया। इस पार्टी का मकसद अति पिछड़ों को संगठित कर उन्हें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर मजबूत बनाना। उनका हक दिलाना है।
इसी राह पर वह दो दशक से अकेले चल रहे हैं। बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं ने मजाक बनाया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। जिस भारतीय जनता पार्टी के साथ सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर उन्होंने अपनी पार्टी के चार सदस्यों को विधानसभा तक पहुंचाया उसके शीर्ष नेतृत्व से भी ऐसे लड़ते रहे मानों विपक्ष के नेता हों। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद अपने जिले गाजीपुर में आयोजित प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में न शामिल होकर राजनीतिक संदेश भी दे दिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भर जाति समाज को संगठित कर राजनीति का नया अध्याय शुरू करने वाले ओम प्रकाश राजभर का दावा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी ताकत सभी को देखने को मिलेगी।
न्यूजट्रैक से कही खास बात
सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने न्यूज ट्रैक से बातचीत में कहा कि जिला पंचायत के चुनाव ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की हैसियत दिखा दी है। कई जिलों में पंचायत के भाजपा से ज्यादा सदस्य हमारी पार्टी से जीत कर आए हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर वह छोटे राजनीतिक दलों के साथ तालमेल कर रहे हैं। भाजपा को हराने के लिए उन्हें किसी भी राजनीतिक दल के साथ जाना स्वीकार है।
भाजपा नेतृत्व पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस पार्टी पर गुजरातियों ने कब्जा कर लिया है। इसमें सभी प्रमुख पद पर गुजराती बैठे हैं और वह देश को बेचने में लगे हैं। ऐसे लोगों से देश बचाने और गरीब-पिछड़ों की रक्षा करने के लिए मैंने भाजपा सरकार से अलग होना स्वीकार किया है। पिछड़े समाज के बच्चों को छात्रवृत्ति देने में भी योगी सरकार ईमानदारी नहीं कर रही थी।
ओमप्रकाश राजभर का राजनीतिक सफर
बहुजन समाज पार्टी में गांव, ब्लॉक स्तर की राजनीति से शुरुआत , 1996 में बसपा के वाराणसी जिलाध्यक्ष बने। मायावती ने भदोही जिले का नाम संत रविदासनगर कर दिया जबकि ओमप्रकाश इसे सुहेलदेव के नाम पर चाहते थे। मायावती के मुख्यमंत्री रहने के दौरान पिछड़ों के आरक्षण व नौकरी के मुद्दे पर टकराव बढ़ा। बसपा छोडक़र सोनेलाल पटेल के अपना दल को ज्वाइन किया।
भर समाज को संगठित करने के लिए 2002 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन सारनाथ स्थित महाराजा सुहेलदेव राजभर पार्क में किया। पार्टी गठन के बाद बिहार और पूर्वांचल के जिलों में उनकी पार्टी ने चुनाव लडऩा शुरू कर दिया।
लोकसभा चुनाव 2004 उनकी पार्टी ने यूपी की 14 और बिहार की एक सीट पर लड़ा। इस चुनाव में यूपी से कुल दो लाख 75267 वोट हासिल करने में कामयाब रहे। बिहार की एक सीट पर भी 16639 वोट मिले। 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव भी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने लड़ा। इसमें उन्हें एक प्रतिशत से भी कम मत मिले। इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2007 में हुए। इस चुनाव में भी उन्होंने कुल 97 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकर यूपी की राजनीति में हलचल उत्पन्न कर दी। इस चुनाव में हालांकि बहुजन समाजपार्टी को जीत मिली और पांच साल तक मायावती सरकार चलती रही। इस चुनाव में उन्हें चार लाख 91 हजार 347 वोट मिले जो एक प्रतिशत से भी कम था।
दो साल बाद 2009 में सुभासपा ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन इस बार उनके साथ अपना दल का गठबंधन रहा। इस चुनाव में उन्हें तीन लाख 19 हजार 307 मत मिले। एक साल बाद बिहार विधानसभा चुनाव में छह सीटों पर चुनाव लड़ा और 15347 मत हासिल करने में कामयाब रहे। 2012 में विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ चुनाव लड़े। 52 सीट पर चुनाव लड़े और चार लाख 77 हजार 330 मत मिले लेकिन एक भी सीट जीत नहीं सके। 2014 के लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी 13 सीट पर चुनाव लड़ी और कुल एक लाख 18947 वोट पाने में सफल रही।
ओमप्रकाश राजभर ने भी देवरिया जिले की सलेमपुर सीट पर चुनाव लड़ा और 66068 वोट पाकर चुनाव हार गए। 2017 में भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग का नारा देते हुए सुभासपा के साथ गठबंधन किया और विधानसभा चुनाव में उन्हें आठ सीटें दीं। इनमें से चार सीट जीतने में सुभासपा कामयाब रही। ओमप्रकाश राजभर ने जहूराबाद विधानसभा सीट तो उनके साथियों रामानंद बौद्ध ने रामकोला, त्रिवेणी राम ने जखनिया और कैलाशनाथ सोनकर ने अजगरा सीट पर जीत दर्ज कराई। इस चुनाव में पार्टी को छह लाख सात हजार 911 वोट मिले।
भाजपा से टूटे संबंध तो बने विद्रोही
भाजपा से संबंध खराब होने के बाद ओमप्रकाश राजभर ने लोकसभा चुनाव 2019 में विद्रोही की भूमिका निभाई। चुनाव में अपने 39 प्रत्याशी उतार दिए। इनमें भी सात स्थानों पर प्रत्याशियों का पर्चा खारिज हो गया। बिहार में भी 14 लोकसभा सीट पर प्रत्याशी उतारे।
राजभर वोट बैंक
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का मानना है कि अति पिछड़ी जातियों में आने वाला राजभर समाज पूरे देश में बिखरा है। इसकी कुल आबादी देश मे चार प्रतिशत है जबकि उत्तर प्रदेश में यह 12 प्रतिशत आबादी वाला बड़ा समाज है। एक जुट नहीं होने की वजह से समाज को अपनी हैसियत के मुताबिक भागीदारी नहीं मिल रही है। उनका मानना है कि पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समाज की तादाद 12 से 22 प्रतिशत तक है।
ओमप्रकाश राजभर के अनुसार, घाघरा नदी के दोनों छोर पर राजभर समाज की आबादी है। गाजीपुर, चंदौली, घोसी में ढाई से चार लाख मतदाता हैं और घाघरा के उत्तर में स्थित जिलों में डेढ़ से दो लाख की आबादी हर जिले में मौजूद है। बहराइच से लेकर देवरिया तक राजभर समाज बिखरा हुआ है। पूर्वांचल की दो दर्जन लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां राजभर समाज के मतदाता 50 हजार से लेकर ढाई लाख तक हैं। घोसी, बलिया, चंदौली, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सलेमपुर, गाजीपुर, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, आजमगढ़, लालगंज, वाराणसी में राजभर समाज के लोग अच्छी-खासी तादाद में हैं।
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