UP Election 2022: मेरठ में टिकट वितरण के बाद चुनावी महाभारत जीतने से पहले शुरु हुई नई महाभारत
UP Election 2022: लेकिन सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी समेत विपक्षी दलों के उम्मीदवारों के लगातार फजीहत और विरोध के मामले सामने आने शुरु हो चुके हैं।
UP Election 2022: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में चुनावी महाभारत जीतने से पहले मेरठ में एक नई महाभारत शुरु हो गई है। दरअसल,विधानसभा चुनाव 2022 के पहले चरण के चुनाव के लिए चुनाव आयोग की बंदिशों के चलते फिलहाल पार्टी द्वारा घोषित उम्मीदवारों ने अपने-अपने क्षेत्रों में घर-घर जाकर युद्धस्तर पर चुनाव प्रचार शुरु तो कर दिया है।
लेकिन सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी समेत विपक्षी दलों के उम्मीदवारों के लगातार फजीहत और विरोध के मामले सामने आने शुरु हो चुके हैं। लगातार हो रही ऐसी घटनाओं ने घोषित उम्मीदवारों के साथ ही पार्टी नेतृत्व को चिंता में डाल दिया हैं। इनमें सत्ताधारी पार्टी यानी भाजपा को तो कहीं-कहीं दो मोर्चो पर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पहली चुनौती अपनी पार्टी के बागियों से सुलटने की हैं तो दूसरी चुनौती मंहगाई,बेरोजगारी आदि को लेकर पार्टी से नाराज मतदाताओं को समझाकर अपने पाले में लाने की है।
टिकट वितरण को लेकर अभी तक भाजपा खेमे में ही गुस्सा दिख रहा था। लेकिन सोमवार को राष्ट्रीय लोकदल भी उसकी चपेट में आ गया। रालोद में सबसे ज्यादा संग्राम सिवालखास सीट को लेकर मचा है। रालोद का इस सीट पर पुश्तैनी दावा है। चौधरी चरण सिंह के समय से ही सिवाल की सीट उसके खाते में रही है। मेरठ में सिवालखास विधानसभा सीट से रालोद के सिंबल पर सपा के पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद को चुनाव लड़ाए जाने की घोषणा के बाद पूरे सियासी हल्के में भूचाल आ गया है।
दिल्ली से लेकर सिवालखास तक लोग खुलकर विरोध में आ गए हैं। लोगों में गुस्सा इतना है कि कई गांवों में जयंत के खिलाफ नारेबाजी करते हुए रालोद के झंडे में आग लगा दी गई। पूर्व जिलाध्यक्ष राहुल देव ने आहत होकर पार्टी ही छोड़ दी है। जाट महासंघ की तरफ से भी एलान कर दिया है कि अगर सिवालखास से जाट प्रत्याशी नहीं बनाया गया तो वे किसी भी विधानसभा सीट पर गठबंधन को वोट नहीं देंगे। रालोद में गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि मेरठ जिले में एक भी सीट पर जयंत अपनी पार्टी से सजातीय को टिकट नहीं दिला पाए।
सत्ताधारी भाजपा की बात की जाए तो मेरठ में बीजेपी की शहर सीट बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की मानी जाती थी। 2017 में वाजपेयी हार गए थे। इस बार उहोंने खुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इस बार पार्टी ने कमलदत्त शर्मा को टिकट दिया है,लेकिन कमलदत्त शर्मा के विरोध में राज्यमंत्री सुनील भराला के समर्थक आ गए।
घोषित उम्मीदवार के खिलाफ दर्जा प्राप्त मंत्री के समर्थक राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर दिल्ली में विरोध दर्ज करने जा पहुंचे। वहीं, मेरठ की हस्तिनापुर सीट से कैंडिडेट बनाए गए राज्यमंत्री दिनेश खटीक के खिलाफ तो बीजेपी के एक पूर्व विधायक गोपाल काली ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान तक कर डाला। गोपाल काली बीजेपी के पुराने नेता है और संघ में भी सक्रिय रहे हैं। गोपाल काली बीजेपी से 1991 में विधानसभा और 1994 में उपचुनाव लड़े थे।
वहीं सिवालखास सीट पर बीजेपी ने मौजूदा विधायक जाट जितेंद्र सतवाई का टिकट काटकर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष मनिंदर पाल सिंह को टिकट दिया है। उनको लेकर पार्टी में विरोध शुरू हो गया। दो दिन के अंदर कई जगह मनिंदर पाल के पुतले तक जलाए गए। बीजेपी के मेरठ में बने पश्चिम क्षेत्रीय कार्यालय पर पर धरना प्रदर्शन भी किया गया।