UP Election 2022: सपा का गढ़ मानी जाती है मेरठ की किठौर सीट, साइकिल-कमल में जबरदस्त टक्कर

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh News) के मेरठ जनपद (Meerut) की किठौर विधानसभा सीट (Kithor assembly seat) पर इस बार समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में जबरदस्त टक्कर के आसार हैं।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-01-30 15:41 IST

Meerut News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh News) के मेरठ जनपद (Meerut Zile ki Aaj ki Taja Khabar) की किठौर सीट (Kithor assembly seat) इस बार जबरदस्त टक्कर के आसार हैं। सपा जहां यहां पुराने गढ़ किठौर में वापसी को बेताब है वहीं भाजपा (Bhartiya Janta Party) अपनी सीट को बचाने की पुरजोर कोशिश में लगी है। 2002 से सपा (Samajwadi Party) से हैट्रिक लगा रहे तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर (Cabinet Minister Shahid Manzoor) को 2017 के चुनाव में बीजेपी के सत्यवीर त्यागी (BJP leader Satyaveer Tyagi) ने शिकस्त दी थी।

वर्ष 1957 से 2017 तक भाजपा को दो बार और कांग्रेस (Congress Party) को तीन बार ही जीत मिली है। मंजूर परिवार ने इस सीट पर पांच बार जीत दर्ज की है। बसपा (Bahujan Samaj Party) को यहां एक बार भी जीत नहीं मिली है। किठौर विधानसभा में तीन नगर पंचायत किठौर, शाहजहांपुर और खरखौदा, तीन ब्लाक माछरा, खरखौदा और रजपुरा आते हैं। जिनके वोटर क्षेत्र का विधायक चुनते हैं। एक लाख 17 हजार मुस्लिम, 70 हजार दलित, जाटव, करीब 20-20 हजार त्यागी-ब्राह्माण, 30 से 40 हजार गुर्जर, जाट 15 हजार, ठाकुर करीब 25 हजार और करीब 50 हजार पाल, कश्यप, प्रजापति, आदि की विधानसभा हैं।

किठौर विधानसभा सीट सपा का गढ़ मानी जाती है

किठौर विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये मेरठ की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता शाहिद मंजूर और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बाबू मुनकाद किठौर क्षेत्र से ही आते हैं। शाहिद मंजूर के पिता मंजूर अहमद भी राजनीति में सक्रिय थे। ये सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। सपा के शाहिद मंजूर 2002, 2007 और 2012 में इस सीट से विधायक निर्वाचित हुए।

मेरठ शहर (Meerut City) से चार बार विधायक रहे मंजूर अहमद जैसे दिग्गज किठौर के ही मूल निवासी थे। बसपा से दो बार राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष रहे मुनकाद अली भी किठौर के हैं। किठौर की सियासी धुरी कई वर्षों तक अब्दुल हलीम और मंजूर अहमद परिवार के बीच घूमती रही। मंजूर अहमद कांग्रेस के टिकट पर यहां से विजयी हुए तो अब्दुल हलीम तत्कालीन खरखौदा सीट पर जीतकर मंत्री बने।

1989 में अब्दुल हलीम के बेटे परवेज हलीम यहां जनता दल से विधायक चुने गए।1993 में बीजेपी के रामकृष्ण वर्मा ने उन्हें हराया। जिसका बदला परवेज हलीम ने 1996 में रामकृष्ण वर्मा को हराकर लिया। 2002 में शाहिद मंजूर ने अपने पिता की विरासत संभालते हुए बसपा के केदारनाथ को हराया और 2017 तक सपा से जीत की हैट्रिक लगाई। प्रदेश में वह कैबिनेट मंत्री रहे।

भाजपा के सत्यवीर त्यागी ने शाहिद को हराया

2017 के चुनाव में समीकरण फिर बदले और भाजपा के सत्यवीर त्यागी शाहिद को हराकर विधायक चुने गए। इस बार सपा ने यहां फिर से शाहिद मंजूर को ही टिकट दिया है तो भाजपा ने विधायक सत्यवीर त्यागी में ही भरोसा जताया है। कांग्रेस ने धन सिंह कोतवाल की प्रपौती बबीता गुर्जर को और बसपा ने केपी मावी को प्रत्याशी बनाया है।

बीजेपी के सत्यवीर त्यागी का दावा है कि उनके कार्यकाल में इलाके का चहुंमुखी विकास हुआ

किठौर विधानसभा सीट से विधायक बीजेपी के सत्यवीर त्यागी का दावा है कि उनके कार्यकाल में इलाके का चहुंमुखी विकास हुआ है। जबकि विपक्षी उम्मीदवारों का कहना है कि काली नदी की सफाई, क्षेत्रीय विकास, अपराध, चिकित्सा सुविधा, सड़कें आदि जिन मुद्दों के बल पर सत्यवीर त्यागी जीत कर आये थे,वे समस्याएं आज भी ज्यों की त्यों हैं। 2022 के चुनाव में देखना दिलचस्प होगा कि इस सीट पर भाजपा अपना प्रदर्शन दोहरा सकेगी या फिर इस सीटपर सपा एक बार फिर अपना कब्जा जमाने में कामयाब होगी।

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