UP Transport Corporation: उत्तर प्रदेश परिवहन निगम पर मंडराते निजीकरण के बादल, किससे फरियाद करें
UP Transport Corporation: परिवहन निगम (transport corporation) के अधिकारियों के मुताबिक, जनवरी-22 में पीपीपी माडल (PPP model) के तहत बस अड्डे को विकसित करने का कार्य शुरू होने की उम्मीद है।
UP Transport Corporation: मेरठ, लगता है योगी सरकार (Yogi Adityanath government) ने परिवहन निगम कर्मचारी यूनियनों (Transport Corporation Employees Unions) के लाख विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) प्रदेश परिवहन निगम (state transport corporation) को धीरे-धीरे सही, लेकिन निजी हाथों में सौंपना तय कर लिया है। हाल के कुछ फैसले सरकारी की नीयत साफ करने के लिए काफी हैं, जिनके अनुसार सरकार द्वारा पहले परिवहन निगम में निजी अनुबंधित बसों की संख्या बढ़ाई, फिर राष्ट्रीयकृत राजमार्गों पर रोडवेज बसों के अलावा निजी बसों को भी परमिट देने का निर्णय लिया गया।
बस अड्डे को विकसित करने का कार्य शुरू होने की उम्मीद
पिछले महीनें परिवहन निगम (transport corporation) के 23 बस अड्डों को प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत विकसित करने का निर्णय लेते हुए सरकार ने टेंडर प्रक्रिया बकायदा शुरु कर दी है। परिवहन निगम (transport corporation) के अधिकारियों के मुताबिक जनवरी-22 में पीपीपी माडल (PPP model) के तहत बस अड्डे को विकसित करने का कार्य शुरू होने की उम्मीद है। सरकार के इस कदम ने परिवहन निगम कर्मियों के दिल की धड़कनें और तेज कर दी है। उनकी समझ में नही आ रहा है कि आखिर किसके समक्ष फरियाद करें। क्योंकि सत्ता पक्ष तो सता पक्ष विपक्षी दलों के रवैये से भी निगम कर्मचारियों को इस मामले में मदद की उम्मीद नही लग रही है।
निजीकरण को परिवहन निगम (privatization transport corporation) और कर्मचारियों के हितों के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के महासचिव और रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के मंत्री गिरीश चन्द्र मिश्र (Uttar Pradesh Minister Girish Chandra) कहते हैं, "सरकारें परिवहन निगम को सीधे निजी हाथों में सौंपने के बजाय टुकड़ों में ऐसा कर रही हैं। पिछली सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार बहुत तेजी से निजीकरण की दिशा में फैसले लेकर निगम के हितों को नजरअंदाज कर रही है." निगम से ही जुड़े मजदूर संघ के क्षेत्रीय मंत्री राजीव के मुताबिक राज्य सरकार मिलीभगत करके अरबों की जमीन को कौड़ियों के भाव बेचने पर लगी है।
17 बस अड्डों के लिए जारी किये गये टेंडर
दरअसल, यात्री सुविधा के मामले में कर्नाटक परिवहन निगम के बाद यूपी परिवहन निगम देश में, सबसे ज्यादा बस बेड़े वाला है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम कर्मचारियों में ताजा घबराहट और बैचेनी की वजह पिछले दिनों उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के कौंशाबी (गाजियाबाद), कानपुर सैन्ट्रल(झकरकटी), ट्रांसपोर्टनगर (आगरा) मथुरा (ओल्ड) गाजियाबाद लखनऊ के तीन बस अड्डों समेत 17 बस अड्डों के लिए जारी किये गये टेंडर हैं,जिनमें साफ कहा गया है कि जो निवेशक इन बस अड्डों का निर्माण कराएंगे तो उनको यह 60 साल की लीज पर मिल जाएंगे।
बड़े पैमाने पर पर लोगों की छंटनी की जाएगी
निगम कर्मचारियों (corporation employees) का कहना है कि इस कदम से सरकारी राजस्व में और कमी आएगी। बड़े पैमाने पर पर लोगों की छंटनी की जाएगी। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत परिवहन निगम के बस अड्डों के संचालन निजी हाथों में जाने के बाद इसमें परिवहन निगम (transport corporation) के साथ ही निजी बसों को भी खड़ा किया जायेगा। निजी कंपनी लीज पर प्राधिकरण से लेने के बाद इसे मनमाने तरीके से चलाएगी।
परिवहन निगम की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही
निगम से जुड़े कर्मचारी संगठनों की मानें तो बीजेपी सरकार की कोशिश पहले तो परिवहन निगम को घाटे का निगम साबित करने की है ताकि फिर आराम से घाटे के नाम पर निगम को निजी हाथों में बेचा जा सके। यही वजह है कि सालों साल निगम को बिना एमडी के चलाया जाता है। सरकारी उपेक्षा के चलते ही परिवहन निगम की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है। पिछले कई महानों से बसों की मरम्मत के पार्ट्स (पुर्जे) नहीं हैं। काफी संख्या में ऐसी बसें हैं , जो टायर और पार्ट्स की समस्या के कारण खड़ी हैं। हालत यह है कि वर्कशाप में जगह नहीं बची। कई बसों में सरेंडर की जा चुकीं बसों के टायर लगाकर संचालन किया जा रहा है।
पार्ट्स और नये टायर नहीं मिलने के कारण प्रदेश में खराब होने वाली बसों की संख्या काफी बढ़ गई है। यहां काम करने वाले लोग दिनभर यह देखते कि आखिर ज्यादा खराब बसें कौन सी हैं, जो आसानी से नहीं बन सकतीं। इन बसों के पार्ट्स कम खराब बसों में लगाकर काम चलाया जा रहा है। कलपुर्जों से लेकर टायर तक की कमी से प्रदेश के सभी रीजन हलकान हैं। कर्मचारी संगठन से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं,प्रदेश में निगम की 9020 वाहनों में से एक हजार से अधिक बसें सिर्फ टायर की कमी से खड़ी हैं। वहीं, पार्ट्स और बैटरियों की कमी से 1500 से अधिक बसें कार्यशाला में खड़ी हैं।
संविदा कर्मीःकम मानदेय ज्यादा काम,ऊपर से जान हथेली पर
वर्तमान में परिवहन निगम की बसों का संचालन पूरी तरह से संविदाकर्मियों पर निर्भर है। लेकिन उनके बाद परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है। यही नही दुर्घटना होने की स्थिति में निगम प्रशासन की तरफ से मदद तो दूर की बात है घटना के शिकार संविदा कर्मचारी से पल्ला छुड़ाने की कोशिश की जाती है। जैसा कि मंशा देवी के पति के मामले में हुआ। मंशा देवी के पति नीरज की मौत 11 अगस्त, 2020 को एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी । मंशा देवी कहती है,"मेरे पति नीरज परिवहन निगम देवरिया डिपो में ड्राइवर के तौर कार्य करते थे। उनकी बस दिल्ली मार्ग पर सीतापुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। बस जब दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस समय 53 लोग सवार थे। अगर यात्रियों की चिंता छोड़ वह बस से कूद गये होते तो अधिक से अधिक हाथ-पैर टूटता, उन्होंने ऐसा नहीं किया। बीमा राशि के लिए मैंने परिवहन निगम के अधिकारियों से मुलाकात की तो उन्होंने नीरज के लाइसेंस को ही फर्जी बता दिया। सरकारी होने के इंतजार में उन्होंने 15 वर्षों तक परिवहन निगम की बस चलायी, फर्जी लाइसेंस से?" संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव मोहम्मद जमाल के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के अंतर्गत कार्य करने वाले संविदाकर्मियों की संख्या करीब 35,000 है। सबसे अधिक 17,500 परिचालक, 11,500 चालक और शेष 6,500 वर्कशॉप या अन्य पदों पर काम करने वाले कर्मचारी हैं.।परिवहन निगम के मातहत अनुबंधित बसें भी चलती हैं जिनके चालक बस मालिक रखते हैं। परिचालक निगम के ही होते हैं। यही कारण है कि चालकों की तुलना में परिचालकों की संख्या अधिक है।
15-16 वर्षों से सेवा देने के बाद भी रोजगार सुरक्षित नहीं
संविदा चालक व परिचालकों को भी तीन अलग-अलग श्रेणियों उत्कृष्ट, उत्तम और सामान्य के तहत नियुक्त किया गया है। उत्कृष्ट चालक और परिचालकों को 10,000 रुपये और लगातार 22 दिनों तक काम करने पर 7,000 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। उत्तम श्रेणी के कर्मियों को 10,000 रुपये और 4,000 प्रोत्साहन राशि दी जाती है। वहीं सामान्य श्रेणी के कर्मियों को प्रति किलोमीटर 1.5 रुपये की दर से भुगतान किया जाता है और 22 दिन काम करने और 5,000 किमी तक चलने पर 3,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। जमाल कहते हैं, "कम यात्री होने पर हमे प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है। लेकिन अधिक यात्री मिलने पर संविदाकर्मियों को इसका कोई लाभ नहीं होता है।" यही नही, संविदाकर्मियों का, "15-16 वर्षों से सेवा देने के बाद भी रोजगार सुरक्षित नहीं है। मामूली बातों पर भी अधिकारी कर्मियों की संविदा समाप्त कर देते हैं और कहीं भी सुनवाई नहीं होती है।"
निजीकरण के खिलाफ एकजुट हो रहे कर्मचारी
परिवहन निगम के निजीकरण की ओर सरकार के बढ़ते कदम से भी निगम के कर्मचारी चिंतित हैं। निजीकरण की प्रक्रिया के संगठित विरोध के लिए निगम के कर्मचारियों और अधिकारियों ने कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा का गठन किया है। मोर्चा स्थायी, संविदा व आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने के सख्त खिलाफ है। निजीकरण को परिवहन निगम और कर्मचारियों के हितों के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के महासचिव और रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के मंत्री गिरीश चन्द्र मिश्र कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में लगभग 2.5 लाख किलोमीटर सड़क मार्ग पक्के व मोटरयान चलाने योग्य हैं । जिसमें राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई मात्र 17,729 किमी ही है, जो कि कुल पक्की सड़कों का लगभग 7 प्रतिशत है। गत कई दशकों से प्रदेश में नवनिर्मित मार्गों की लंबाई में वृद्धि होने के उपरांत भी राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई में वृद्धि नहीं हुई है। प्रदेश की शेष लगभग 2.32 लाख किमी (प्रदेश में कुल पक्की सड़कों का करीब 93 प्रतिशत) निजी संचालन हेतु पहले से ही उपलब्ध है।
गिरीश जोर देकर कहते हैं, "परिवहन निगम के कर्मी खुद की मेहनत की कमाई से वेतन ले रहे हैं, सरकार मदद नहीं करती। पिछले 6 वर्षों से निगम लगातार शुद्ध लाभ में है।विभिन्न कोषों के माध्यम से सरकार को 800 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में अदा कर रही है। फिर भी निगम को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं। प्रदेश के 7 प्रतिशत राष्ट्रीय राजमार्गों पर निजी बसों के संचालन की सरकार ने अनुमति देने के फैसले से निगम की आय में तेजी से गिरावट तो होगी ही साथ ही यात्रियों को भी कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा." बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम कोरोना काल से पहले 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में चल रहा था। रोडवेज कोरोना काल में घाटे में चला गया। कोरोना काल 2020 में 115 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कोरोना काल के 2021 में 140 करोड़ रुपये घाटे में चला गया।
निगम से जुड़े कर्मचारियों को सत्तारुढ़ बीजेपी से तो शिकायत हैं ही विपक्षी दलों से भी इस बात को लेकर शिकायत हैं कि जब वें सरकार में थे, तब निगम का अपने फायदे में इस्तेमाल तो बहुत किया । लेकिन जब आज निगम का अस्तित्व खतरे में हैं तब कोई भी विपक्षी दल निगम को बचाने के लिए खुलकर आगे नही आ रहा है। राजनैतिक दल निगम का इस्तेमाल कैसे करते हैं । इसको परिवहन निगम के एक अधिकारी ने कुछ यूं समझाया, लोक लुभावन नीतियों और बसों का राजनीतिकरण होने के कारण भी परिवहन निगम को नुकसान उठाना पड़ता है। कभी किसी राजनीतिक दल की तरफ से किसी ऐसे रूट पर बसों के संचालन की मांग की जाती है, जहां पर लोड फैक्टर नहीं आता है, फिर भी बस सेवा शुरू करनी होती है । जिससे सीधे तौर पर निगम को नुकसान होता है। वहीं, वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल बसों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। जैसा कि पूर्व में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मुख्यमंत्री मायावती ने 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' नाम से बस का संचालन कराया। इसके बाद जब समाजवादी पार्टी सरकार आई तो अपना हित साधने के लिए 'समाजवादी लोहिया' बसों का संचालन शुरू किया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तमाम बसों को भगवा रंग में रंग कर 'संकल्प बस' नाम से बसों की शुरुआत कर दी गई। इन बसों को उन रूटों पर भी भेजा गया, जहां से परिवहन निगम को नुकसान भी उठाना पड़ा। लेकिन राजनीतिक दलों को इसका फायदा जरूर मिला।
13 क्षेत्रों से 206 बसें नीलाम करेंगे
परिवहन निगम के मुख्य प्रधान प्रबंधक (प्राविधिक) संजय शुक्ला परिवहन के संभावित निजीकरण व स्पेयर पाटर्स व टायरों की कमी पर बोलने से बचते हुए केवल इतना ही कहते हैं कि रोडवेज दो साल बाद नई बसें खरीदने जा रहा है। 206 कंडम बसों को हटाकर 13 सौ नई बसें खरीदने की तैयारी है। इसके लिए 390 करोड़ रुपये खर्च होंगे। निगम प्रशासन ने शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। संजय शुक्ला के अनुसार शासन से नई बसों के प्रस्ताव को मंजूरी के बाद चेचिस खरीदकर बसों का निर्माण जल्द शुरू होगा। साधारण सेवा की आरामदायक 52 सीटर इन बसों से रोजाना डेढ़ से दो लाख यात्री सफर कर सकेंगे। इस रोडवेज अधिकारी के मुताबिक उम्र पूरी कर चुकी प्रदेश के 13 क्षेत्रों से 206 बसें नीलाम करेंगे। उन्होंने बताया कि परिवहन निगम के पास सौ से डेढ़ सौ बसें खरीदने के लिए पैसा है। 13 सौ नई बसें खरीदने के लिए शासन में बकाया 540 करोड़ रुपये मिले तो नई बसों की खरीद प्रक्रिया शुरू हो सके।
फैक्ट फाइल-
- मंडलीय क्षेत्र- 20।
- बस डिपो- 115।
- बस अड्डे- 293(स्वयं के 267 ,किराये के 26)
- बसों की संख्या (परिवहन निगम)- 9020॥
- बसों की संख्या (अनुबंधित)- 2411।
- नियमित कर्मी- 16500 हजार॥
- संविदाकर्मी- 35 हजार।
- प्रतिवर्ष सफर करने वाले यात्री- 65 करोड़।
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