Meerut Municipal Corporation: जनता को कभी नहीं मिला सामान्य महापौर चुनने का मौक़ा

Meerut Municipal Corporation: पूर्व के चुनावों पर नजर डालें तो अभी तक नगर निगम के गठन के बाद से जनता ने सामान्य वर्ग का महापौर नहीं चुना है। 1995 में महानगर पालिका के चुनाव में पहली बार जनता को सीधे अपना नगर प्रमुख चुनने का अवसर मिला। त

Update: 2023-04-10 18:14 GMT
सहारनपुर महापौर चुनाव, टिकट के लिए दावेदारों ने झोंकी ताकत- Photo- Newstrack

Meerut Municipal Corporation: नगरीय निकाय चुनाव की तारीखों का रविवार की शाम को एलान होने के बाद राजनीतिक के साथ ही प्रशासनिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं। मेरठ जिले में 11 मई को दूसरे चरण में मतदान होगा। इसके लिए 17 से 24 अप्रैल तक नामांकन दाखिल होंगे। जिला निर्वाचन अधिकारी एवं डीएम दीपक मीणा का कहना है कि निकाय चुनाव सकुशल संपन्न कराए जाएंगे।

पूर्व के चुनावों पर नजर डालें तो अभी तक नगर निगम के गठन के बाद से जनता ने सामान्य वर्ग का महापौर नहीं चुना है। 1995 में महानगर पालिका के चुनाव में पहली बार जनता को सीधे अपना नगर प्रमुख चुनने का अवसर मिला। तब से 2017 तक हुए नगर निगम चुनाव में महापौर सीट सामान्य वर्ग के लिए रही। और महापौर पिछड़े वर्ग के ही विजयी होते रहे।

इतिहास की बात करें तो मेरठ में नगर पालिका का गठन 1892 में हुआ था। नगर महापालिका गठन 1982 में हुआ। नगर महापालिका का चुनाव 1989 में हुआ। उस समय कुल 30 वार्ड थे। एक वार्ड में दो सभासद चुने जाते थे। नगर प्रमुख को तब सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता था। बल्कि चुने गए सभासद नगर प्रमुख को चुनते थे। इसलिए नगर प्रमुख का चुनाव पैसे वाला ही लड़ सकता था। यही वजह रही कि नगर प्रमुख के पहले चुनाव में शहर के दो बड़े उद्योगपति अरुण जैन और दयानंद गुप्ता खड़े हुए। इनमें जीत अरुण जैन को मिली, जिन्होंने मात्र एक वोट से दयानंद गुप्ता को हरा दिया।

जनता द्वारा सीधे नगर प्रमुख चुने जाने की व्यवस्था लागू की गई

31 मई, 1994 को नगर निगम का गठन हुआ। 1995 में जनता द्वारा सीधे नगर प्रमुख चुने जाने की व्यवस्था लागू की गई। साथ ही एक वार्ड से एक ही पार्षद के चुनाव की व्यवस्था लागू की गई थी। तब महानगर पालिका के 60 वार्ड थे। इस चुनाव में मेरठ की सीट सामान्य कोटे से थी। इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी अयूब अंसारी नगर प्रमुख चुने गए।

हालांकि बाद में नगर निगम बनने पर नगर प्रमुख का पद महापौर के नाम से जाना गया। वर्ष 2000 में सीमा विस्तार हुआ और 70 वार्ड बन गए। इस चुनाव में भी महापौर की सीट सामान्य कोटे से थी। जनता ने बसपा के हाजी शाहिद अखलाक को महापौर चुना। 2006 के चुनाव में निगम के 80 वार्ड हो गए और सीट ओबीसी महिला कोटे की हो गई। पिछड़े वर्ग से भाजपा की मधु गुर्जर ने महापौर का चुनाव जीता।

वर्ष 2012 में ओबीसी पुरुष सीट पर भाजपा के हरिकांत अहलुवालिया को महापौर चुना गया। 2017 में 90 वार्डों में चुनाव हुआ। तो एससी वर्ग से बसपा की सुनीता वर्मा को जनता ने अपना महापौर चुना। इस बार महापौर ओबीसी वर्ग का होगा। कुल वार्ड इस बार भी 90 ही हैं।

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