दुर्योधन की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा के अधर्म की कहानी है 'अंधायुग'

Update: 2019-03-19 04:55 GMT

शाश्वत मिश्रा

लखनऊ: सोमवार को कैसरबाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में धर्मवीर भारती द्वारा लिखित नाटक अंधायुग का मंचन हुआ। इस नाटक का मंचन संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से कलामंडपम, भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय और आपुलेंट स्कूल ऑफ एक्टिंग एंड फाइन आर्ट्स के माध्यम से सम्पन्न हुआ।

नाटक का सार-

लेखक धर्मवीर भारती द्वारा कृत अंधायुग सशक्त काव्य नाटक का प्रारंभ दो प्रहरियों की वेदना से होता है जो अट्ठारह दिनों तक चले युद्ध से उत्पन्न पीड़ा को बयां करते हैं। धृतराष्ट्र अपने अंधेपन से उत्पन्न संसार को ही सच मानते हैं और जानबूझकर असत्य का साथ देते है। माता गांधारी भी पुत्र मोह में असत्य का साथ देती है।

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दुर्योधन की पराजय को देखकर अश्वत्थामा आर्तनाद करता हुआ वन में भटक रहा है और जब उसे पता कि उसका पिता जो अपराजय थे, उनकी हत्या धर्मराज युधिष्ठिर के अर्धसत्य से कर दी गई है तो वह अपनी वेदना (पीड़ा) को व्यक्त करता है और वहीं से एक अंध बरबर पशु का उदय होता है जो संपूर्ण पांडव परिवार का नाश करता है। दुर्योधन के मारे जाने के बाद माता गांधारी का पुत्र मोह में श्रीकृष्ण को श्राप देना और उस श्राप को श्री कृष्ण द्वारा बड़ी विनम्रता से स्वीकार करना कृष्ण के चरित्र को बड़ा आयाम देता है।

युद्धोपरांत अश्वत्थामा द्वारा अर्जुन को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना तथा ब्रह्मास्त्र व्यास द्वारा रोका जाना बड़ा ही रोचक है। भीम और दुर्योधन का यह युद्ध और उस युद्ध में श्री कृष्ण के इशारे पर दुर्योधन का वध और उस वध को बलराम द्वारा अधर्म बताना और इस घटना से प्रेरणा लेते हुए अधर्म से अश्वत्थामा द्वारा पांडव पुत्रों का वध करना। नाटक स्थापना और समापन(गांधारी का श्राप) को लेकर कुल आठ भागों में विभाजित है, सम्पूर्ण नाटक काव्य में लिखा गया है जो कि नाटक को और अधिक आकर्षक बनाता है।

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इस नाटक में प्रहरी-1 और प्रहरी-2 के रूप में प्रिंस पांडेय और अभिषेक सिंह, विदुर(नवल किशोर), धृतराष्ट्र(अस्तित्व कृष्णा), गांधारी(शीलू मलिक), याचक(मनीष यादव), संजय(अमन आर्या), कृतवर्मा(मोहित कुमार), वृद्ध याचक(रवि प्रकाश), युयुत्सु(प्रियांक श्रीवास्तव), गूंगा सैनिक(विकास त्रिपाठी), बलराम(अभिषेक सिंह बाहु), व्यास(रवि प्रकाश), और कृष्ण(आयुष पटेल) थे। वहीं इस पूरे नाटक का निर्देशन अलोपी वर्मा का रहा।

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