सियासी समीकरण: पुत्र मोह ने बिगाड़ी राजनीति

Update:2019-11-22 12:40 IST

लखनऊ: इन दिनों देश में महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा मीडिया में सुर्खियां बना हुआ है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे का पुत्र मोह माना जा रहा है। सियासी पंडितों का मानना है कि यदि उद्धव ठाकरे के मन मेें अपने पुत्र आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की लालसा न उठी होती तो आज महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की सरकार सत्तासीन होती।

पिछले पांच दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना का काफी असर रहा है। पूरे प्रदेश की राजनीति शिवसेना के आसपास ही घूमती रही है। पार्टी संस्थापक बाला साहब ठाकरे वैसे तो जनसंघ की विचारधारा के नजदीक रहे पर 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद वह इसके और नजदीक आ गए। इसके बाद 1984 में शिवसेना ने भाजपा के तत्कालीन शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ गठबंधन किया था। तब पहली बार शिवसेना प्रत्याशियों ने भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ा था। 1989 में दोनों दलों के बीच औपचारिक गठबंधन हुआ था। 1995 से 1999 तक शिवसेना के दो मुख्यमंत्री मनोहर जोशी व नारायण राणे सत्ता में रहे।

इस खबर को भी देखें: प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज: यहां मिट्टी, पानी और हवा है दवा

2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-शिवसेना में खटास इस कदर बढ़ गई थी कि दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। नतीजों के बाद दोनों दल एक साथ आ गए और महाराष्ट्र में एक बार फिर इस गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन इस बार हुए विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को ही विधानसभा चुनाव में उतार दिया। जब आदित्य ठाकरे चुनाव जीते और भाजपा-शिवसेना गठबंधन सत्ता पाने की स्थिति में आया तो शिवसेना कैम्प में आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी शुरू हो गयी। इस पर भाजपा हाईकमान तैयार न हुआ।

इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने की कोशिश की। काफी मशक्कत के बाद भी जब सरकार गठन की सूरत नहीं बनी तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया। ऐसा नहीं है कि पहली बार पुत्र मोह ने देश के ऐसे नेताओं की राजनीति की दिशा बदली हो। इसके पहले भी कई नेता पुत्र हुए जिनके कारण पार्टी के भीतर विवाद हुआ और पार्टी की वास्तविक हालत भी कमजोर होती गयी।

इस खबर को भी देखें: शाहरुख की लाडली का वीडियो आया सामने, इस तरह फ्रेंड्स के साथ कर रही हैं मस्ती

राहुल गांधी

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर पार्टी की कमान अपने बेटे राहुल गांधी को सौंपी तो पार्टी मजबूत होने के बजाय लगातार बेहद कमजोर होती चली गयी। राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को विभिन्न चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी की हालत यह हो गई कि इसके साथ गठबंधन करने वाले दलों की भी लुटिया डूबती गयी। दिसम्बर 2017 में पार्टी की कमान संभालने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई।

अखिलेश यादव

इसी तरह उत्तर भारत में ताकतवर राजनीतिक दलों में शुमार रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पार्टी का भी वही हश्र हुआ। 2012 में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया। यही नहीं बाद में पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया। कई लोगों को यह बात अखरी तो उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया। इसके बाद मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव और पुत्र अखिलेश यादव के बीच राजनीतिक टकराव के चलते 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गयी। शिवपाल यादव ने अपनी अलगी पार्टी बना ली। 2019 के लोकसभा में भी समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा।

इस खबर को भी देखें: महाराष्ट्र से अभी-अभी: ये नेता बनेगा सीएम, उद्धव नहीं इन पर बनेगी बात

तेजस्वी यादव

पुत्र मोह का एक और उदाहरण उत्तर भारत के राज्य बिहार में देखने को मिलता है जहां पर 2015 में आरडेजी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ ही बिहार विधानसभा में पार्टी विधायक दल का नेता मनोनीत किया। इसके बाद जब पार्टी अध्यक्ष लालू यादव जेल चले गए तब से सारा काम तेजस्वी यादव ही देख रहे हैं। लालू यादव के दूसरे बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के मतभेद के चलते पहले बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का साथ छूटा और राजद सत्ता से अलग हुआ। इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा।

चिराग पासवान

इसी तरह बिहार की राजनीति में केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान एक बड़ा नाम है। वह 2014 से एनडीए का हिस्सा बने हुए हैं, लेकिन खराब स्वस्थ्य के चलते हाल ही में उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौंप दी है। लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभालते ही चिराग पासवान अपने नए तेवर में आ गए हैं। उन्होंने पार्टी को विस्तार देते हुए कहा कि लोजपा झारखंड ही नहीं बल्कि दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में भी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। इसके बाद से एनडीए में भाजपा और लोजपा के बीच दरार बढ़ती नजर आ रही है।

जयंत चौधरी

वहीं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष कहने को तो चौ.अजित सिंह हैं पर सारा काम पार्टी उपाध्यक्ष और उनके बेटे जयन्त चौधरी ही देख रहे हैं। पार्टी का हाल यह है कि मौजूदा समय में लोकसभा और विधानसभा दोनों में पार्टी का एक भी सदस्य नहीं है। स्व.चौ चरण सिंह की परम्परागत अतरौली सीट से चुने गए रालोद के एकमात्र विधायक महेन्द्र रमाला अब भाजपा में हैं।

Tags:    

Similar News