'टाइमपास होते हैं लिव-इन रिलेशनशिप, फूलों का बिस्तर न समझें', इलाहाबाद HC ने टिप्पणी के साथ खारिज की याचिका

Allahabad HC News: लिव-इन रिलेशनशिप के एक मामले पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, 'ऐसे रिश्ते टाइमपास होते हैं। ये मामला मथुरा के रहने वाले एक प्रेमी जोड़े की थी, जिसने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सुरक्षा की मांग की थी।

Report :  aman
Update:2023-10-23 20:30 IST

Allahabad HC on Live-in Relationship (Social Media)

Allahabad HC on Live-in Relationship : इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad HC) ने 'लिव-इन-रिलेशनशिप' पर गंभीर टिप्पणी करते हुए इसे 'टाइम पास' जैसा करार दिया। उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप (SC on Live-in Relationship) को मान्यता जरूर दी है, लेकिन ऐसे रिश्तों में ईमानदारी से ज्यादा एक-दूसरे का आकर्षण ही होता है। लिव-इन रिलेशनशिप के रिश्ते बेहद नाजुक और अस्थाई होते हैं।'

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, 'जिंदगी कठिनताओं और संघर्षों से भरी होती है। इसलिए इसे फूलों का बिस्तर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।' दरअसल, उत्तर प्रदेश के मथुरा की रहने वाली एक युवती और युवक ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर सुरक्षा की मांग की थी। इसी पर हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी की।

क्या है मामला?

ये मामला मथुरा के एक प्रेमी जोड़े का है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम युवक के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship in India) में रह रही हिंदू युवती को सुरक्षा दिए जाने की अर्जी को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, '22 साल की उम्र में सिर्फ दो महीने किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह लेने से रिश्तों की परिपक्वता का आकलन नहीं हो सकता।' हिन्दू लड़की का नाम राधिका (22 वर्ष) है। ये युवती घर छोड़कर साहिल नाम के एक मुस्लिम शख्स के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी थी।

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शादी के लिए अगवा करने का आरोप

दरअसल, 17 अगस्त, 2023 को राधिका के परिजनों ने साहिल के खिलाफ मथुरा रिफाइनरी थाने में IPC की धारा- 366 के तहत केस दर्ज कराया था। राधिका के परिवार वालों का आरोप है कि साहिल ने उनकी बेटी से शादी के लिए उसे अगवा किया। साथ ही, उसे जान का खतरा भी बताया था।

प्रेमी जोड़े ने की सुरक्षा की मांग

वहीं, लिव-इन में रह रही राधिका और साहिल ने मुकदमा रद्द करने की मांग के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। राधिका ने अपनी पिटीशन में परिवार वालों से अपनी और प्रेमी साहिल की जान को खतरा बताते हुए मथुरा पुलिस से सुरक्षा की मांग की थी।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दी दलील

याचिका में हाई कोर्ट से आरोपी साहिल की गिरफ्तारी पर रोक लगाने की भी मांग की गई थी। साहिल की ओर से उसके रिश्तेदार एहसान फिरोज ने भी याचिका दाखिल की। उस याचिका पर जस्टिस राहुल चतुर्वेदी (Justice Rahul Chaturvedi) और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी (Justice Mohammad Azhar Hussain Idrisi) की दो सदस्यीय बेंच में सुनवाई हुई। अदालत में सुनवाई के दौरान राधिका और साहिल की तरफ से दलील दी गई कि दोनों बालिग हैं। अतः अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे हैं। हाई कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी दलील में शामिल किया गया, जिसके तहत दोनों को साथ रहने का अधिकार है। किसी को उनके जीवन में दखल देने का कोई हक नहीं।'

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सुरक्षा की मांग नामंजूर, याचिका ख़ारिज

हाईकोर्ट में राधिका और साहिल की इस याचिका का उसके घर वालों ने विरोध किया। कोर्ट को बताया कि साहिल का आपराधिक इतिहास रहा है। साल 2017 में मथुरा के छाता थाने में उसके खिलाफ गैंगस्टर का मुकदमा भी दर्ज है। राधिका के परिजनों ने ये भी कहा कि साहिल के साथ राधिका का भविष्य बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है। हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए FIR रद्द किए जाने तथा राधिका के साथ साहिल को सुरक्षा दिए जाने की मांग को नामंजूर कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

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