Mahakumbh Ka Itihas: कुम्भ का अमृत, सबके लिए कुछ न कुछ
Mahakumbh Ka Itihas: कुम्भ एक आध्यात्मिक अनुभव है, मेला तो इससे जुड़ी एक भौतिक चीज है। जनमानस समुद्र मंथन से निकली अमृत की बूंदों की तलाश में और अपना जीवन तारण करने के लिए त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं।;
Mahakumbh Ka Itihas: यह कुम्भ का समय है। दुनिया का सबसे बड़ा समागम। भारत के अलावा कहीं भी इस तरह का न आयोजन होता है, न लोगों की स्वतः स्फूर्त भागीदारी होती है। जरा सोचिए एक दिन में करोड़ों लोगों का एक ही जगह एकत्र होना। वह भी बिना बुलावे के। अद्भुत बात है न।यह सिलसिला आज के संचार तथा ट्रांसपोर्ट युग का नहीं बल्कि तबसे चला आ रहा है जब न कोई सुविधा थी और न कोई साधन। यही कुम्भ है। भारत की विस्मयकारी रीतियों, परंपराओं और मान्यताओं का प्राकट्य अनुभव।
कितने ही संकट आये, कुंभ हमेशा नियत समय और स्थान पर हुआ। सूखा, भुखमरी, बीमारियां, आपदा, कोरोना क्या क्या नहीं हुआ परंतु कुंभ वैसे ही हुआ जैसे अनंत काल से होता आया है।
करोड़ों लोगों के लिए कुंभ मेले में भाग लेना महज़ तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि सनातन आध्यात्मिकता की जड़ों की ओर लौटना है, जो एकता, शुद्धि और मोक्ष की ओर यात्रा का प्रतीक है - परम मुक्ति। कुंभ मेले का समृद्ध इतिहास प्रतिभागियों के लिए इसके महत्व को बढ़ाता है।
कुम्भ एक आध्यात्मिक अनुभव है, मेला तो इससे जुड़ी एक भौतिक चीज है। जनमानस समुद्र मंथन से निकली अमृत की बूंदों की तलाश में और अपना जीवन तारण करने के लिए त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं। उस क्षण के सामने विशाल मेला क्षेत्र का कोई भी आकर्षण कोई मायने नहीं रखता। पर अब धीरे धीरे आध्यात्मिकता में आकर्षण ठूँसा जा रहा है। आकर्षण को आध्यात्मिकता पर तरजीह दी जा रही है।
कुंभ मेले में अब बदलाव हैं। ठहरने के लिए लक्ज़री टेंट हैं। एक दिन का लाख रुपए तक किराया है। फाइव स्टार होटलों जैसी सुविधाएं हैं। पैदल न चलना पड़े इसके लिए गोल्फ कार्ट हैं। बेहतरीन व्यंजन के मेन्यू हैं। कोने कोने से फ्लाइट्स हैं। स्पेशल इंतज़ाम हैं। संगम में स्नान कराने की खास व्यवस्था है। मेले और अमृत कुम्भ के रसास्वादन में तनिक भी दिक्कत और तकलीफ न होने पाए, इसकी गारंटी है। रेलमपेल से दूर, आध्यात्मिक शांति के माहौल में रुकने, खाने और आराम करने के भरपूर इंतजाम हैं। बस पैसा चाहिए। या फिर वीआईपी का टैग, जिनके लिए सरकार बिल भरती है। बड़े सीईओ, बिजनेस क्लाइंट या जो भी काम का है, उनके इंतजाम तो कॉरपोरेट करते हैं। यह अलग मोहल्ला है। अमृत की अलग बूंदें हैं।
इस मोहल्ले से अलग एक दुनिया और भी है, जहां कुम्भ के कल्पवासी के लिए उनकी कुटियाएँ लाख रुपये प्रतिदिन किराए वाली लक्ज़री कॉटेज की तुलना में अलौकिक अनुभव देती हैं। उसे सर्द रातें, बर्फीली हवाएं, कुछ भी असर नहीं करतीं। संगम तट पर मौजूद व्यापक जन समूह के लिए किसी भी टेंट सिटी के गीजर से कहीं ज्यादा गर्म पानी और सुकून संगम की डुबकी का होता है।
रेतीले तट पर नंगे पैर कई कई किलोमीटर चलने का आनंद सिर्फ वही अनुभव कर सकते हैं। भंडारों की रोटी, पूड़ी या अखाड़ों की पंगत का दाल-भात जमीन से जुड़ने का एहसास देता है। कुम्भ में जुटने वाले ऐसे करोड़ों लोगों के लिए किसी आमंत्रण की जरूरत नहीं होती। गांव गांव कोई हाकिम हुक्काम इनविटेशन कार्ड लेकर नहीं जाते। कभी ऐसा नहीं हुआ। लोग खुद आते हैं, बुलाने की जरूरत नहीं होती। कुम्भ किसी एक का नहीं होता, यह सबका है। यहां बुलावा नहीं दिया जाता। जनसमूह अपना पैसा लगा कर, धक्के खा कर आता है और उसी तरह चला भी जाता है।क्योंकि कुम्भ कोई टूरिज्म नहीं बल्कि एक अलौकिक आध्यात्मिक यात्रा है।
आम और खास - दोनों की कुम्भ दुनिया भले अलग हों लेकिन कमाने वालों के लिए कुम्भ एक बहुत बड़ा बिजनेस अवसर है। इवेंट हैं। खुद ही सोचिए, करोड़ों लोगों का आना। कितनी ही चीजें इससे जुड़ी होती हैं, ट्रांसपोर्ट, रहना, खाना वगैरह बहुत कुछ। तभी तो भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि 2019 के कुंभ मेले से कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई थी,जबकि 2013 के कुम्भ से 12 हजार करोड़ की कमाई हुई थी। अब 2025 का कुंभ तो 2019 से भी बड़ा होने वाला है। जहां पिछली बार 25 करोड़ तीर्थयात्री शामिल हुए थे,वहीं इस बार 40 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है।
यही कारण है कि उद्योग जगत प्रयागराज में सिर्फ ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर कम से कम 3,000 करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी में है। ये बिजनेस का भी कुम्भ है जिसके अमृत से कोई वंचित नहीं रहना चाहता। यहाँ वजह है कि राजनेता हो, राजनैतिक दल हों, सरकारें हों या विपक्ष कुंभ के मार्फ़त अपनी अपनी ब्रांडिंग करने में जुटे हैं। इसी नज़र व नज़रिये का तक़ाज़ा है कि अर्ध कुंभ, कुंभ और कुंभ को महाकुंभ बना दिया जाता हैं। जबकि महाकुंभ के सनातन परंपरा से कोई लेना देना नहीं हैं। सनातन परंपरा कुंभ प्रख्यात आ कर ठहर जाता हैं। क्योंकि समुद्र मंथन में कुंभ निकला था। महा कुंभ नहीं।
कुम्भ जीवन को अनुभव करने का समय और अवसर देता है। यह पूरे भारत और सम्पूर्ण सनातन के साक्षात दर्शन देता है। कुम्भ को किसी शब्द, चित्र, वीडियो, इंटरनेट से व्यक्त नहीं किया जा सकता। कुम्भ से बिजनेस भले हो जाये लेकिन कुम्भ बिजनेस नहीं हो सकता।
( लेखक पत्रकार हैं।)