शिक्षक को सलाम: पिता के श्राद्ध पर नहीं, स्कूली बच्चों के लिए बनवाया फर्नीचर

आज हम आपकों यूपी के शाहजहांपुर के सरकारी स्कूल के एक टीचर के उस जज्बे के बारे में बताएंगे जिसे सुनकर शायद आप भी उसके जज्बे के कायल हो जाएंगे। यहां प्राथमिक विद्यालय के एक टीचर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद श्राद्व (बरसी) पर खर्च होने वाले पैसे को श्राद्व पर खर्च करने के बजाए अपने स्कूल के बच्चों के लिए फर्नीचर बनवा डाला। अपने टीचर के इस कदम से स्कूल के बच्चे अपने टीचर को शुक्रिया अदा कर रहे है। वहीं उनके इस जज्बे से खुश होकर शिक्षा अधिकारी उन्हे सम्मानित करने की बात कर रहे हैं।

Update: 2018-02-02 12:31 GMT

शाहजहांपुर: आज हम आपको यूपी के शाहजहांपुर के सरकारी स्कूल के एक टीचर के उस जज्बे के बारे में बताएंगे जिसे सुनकर शायद आप भी उसके जज्बे के कायल हो जाएंगे। यहां प्राथमिक विद्यालय के एक टीचर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध (बरसी) पर खर्च करने के बजाए अपने स्कूल के बच्चों के लिए फर्नीचर बनवाया। इस कदम से स्कूल के बच्चे अपने टीचर को शुक्रिया अदा कर रहे है। वहीं उनके इस जज्बे से खुश होकर शिक्षा अधिकारी उन्हे सम्मानित करने की बात कर रहे हैं।

बहादुरगंज उच्च प्राथमिक विद्यालय में अपनी क्लास के छात्रों को तालीम दे रहे इन टीचर का नाम इमरान सईद है। आज नाम से ज्यादा लोग इनके जज्बे के बारे ज्यादा जानते है। बच्चें जिस फर्नीचर पर बैठकर पढ़ाई कर रहे है वो किसी सरकार बजट से नहीं, बल्कि अपने वेतन से खरीदा है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, इमरान के शिक्षक पिता की 1997 में मृत्यु हो गई थी। अपने पिता की जगह पर ही उन्हें भी शिक्षक पद पर नौकरी मिल गई। इमरान के परिवार वालों ने इस साल पिता की बरसी यानि श्राद्ध मनाने की बात कही। श्राद्ध पर खाने और दान दक्षिणा में लगभग 25 से 30 हजार का खर्च आना था। लेकिन इमरान ने फैसला किया कि वो पिता के श्राद्ध के लिए जमा किए गए पैसों को अपने क्लास के बच्चों के लिए फर्नीचर बनाएंगे। उनकी यही सोच जज्बे में तब्दील हो गई और उन्होंने जमीन पर पट्टी पर बैठने वाले अपने क्लास के बच्चों के लिए फर्नीचर तैयार करवा दिया, जिस पर बैठकर आज बच्चे पढ़ाई करते हैं। इमरान की मानें तो इन्हीं बच्चों की बदौलत उनके परिवार को रोटी मिलती है और यही उनके पिता के लिए सबसी बड़ी श्रद्धांजली है।

क्या कहना है छात्र का?

छात्र जितिन ने कहा कि अपने टीचर के इस कदम से क्लास के बच्चें भी बेहद खुश है, क्योंकि इससे पहले वो सर्दी की ठंडी में जमीन पर पढ़ते थे, लेकिन आज उन्हे बेहतरीन फर्नीचर पर बैठकर पढ़ना का मौका मिल रहा है। वो इसके लिए अपने टीचर को थैक्यू बोल रहे।

क्या कहना है शिक्षक का?

इमरान का कहना है कि वो हर साल अपने पिता की बरसी मनाते थे और दान पुण्य करते थे, लेकिन अब उन्होंने फैसला किया है कि वो बरसी पर खर्च होने वाले पैसों को अपने क्लास के बच्चों की जरूरत के लिए खर्च करेंगे। उनके इसी जज्बे को देखते हुए अब बेसिक शिक्षा विभाग उन्हे कार्यक्रम के जरिए सम्मानित करने की बात कर रहा है। उनका कहना है कि वैसे जब बरसी मनाई जाती है तो लोग अपने रिश्तेदारों और नातेदारो को बुलाकर दावत करते है। लेकिन ये मेरे हिसाब से गलत है।

मजबूत जज्बा इंसान को बुलन्दियों पर ले जाता है। ऐसे में अपने स्कूल के बच्चों को लिए इमरान का ये जज्बा उन्हें सलाम करने के लिए काफी है। ऐसे में जरूरत है बेसिक शिक्षा विभाग के टीचरों को प्रेरणा लेने की ताकि इमरान जैसे और शिक्षक स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों की मदद को आगे आ सकें। क्योंकि इमरान की ये सोच एक आदर्श प्रेरणा से कम नहीं है।

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