देश भर में बिजली कर्मियों का विरोध, काली पट्टी बांध कर किया प्रदर्शन

केंद्र सरकार नए बिल के अनुसाए इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन कर रही है।

Update:2020-06-01 17:13 IST
bijli vibhaag

लखनऊ। विद्युत (संशोधन) बिल-2020 को वापस लेने की मांग को लेकर सोमवार को देश भर के बिजली कर्मियों और इंजीनियरों ने नेशनल कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एन्ड इंजीनियर्स (एनसीसीओईई) के आह्वान पर काली पट्टी बांध कर विरोध दर्ज कराया। इस विरोध में यूपी के बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों ने भी उप्र. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले विरोध जताया।

बिजली कर्मचारियों व् इंजीनियरों के संगठनों ने विद्युत (संशोधन) बिल-2020 के उपभोक्ता और किसान विरोधी प्राविधानों से सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और संसद सदस्यों को पत्र भेजकर अवगत कराया है और उनसे मांग की है कि वे इस बिल का प्रबल विरोध करे और इसे वापस कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालें ।

उपभोक्ताओं के साथ हुआ धोका

इस संबंध में उप्र.विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कोविड -19 संक्रमण के दौरान लाकडाउन का फायदा उठाते हुए निजीकरण करने की निंदा करते हुए देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। समिति ने केंद्र सरकार द्वारा निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने के वायदे को खारिज करते हुए कहा कि निजीकरण, किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है और निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी।

इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महँगी

संघर्ष समिति के शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि विद्युत (संशोधन) बिल-2020 में कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में सब्सिडी और क्रास सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी और किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।

उन्होंने आंकड़े देते हुए बताया कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत 06.78 रूपए प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद 08 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा।

नई योजना लायंगे

उन्होंने कहा कि अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है लेकिन निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर प्रीपेड मीटर लगाए जाने की योजना लाई जा रही है। उन्होंने कहा कि सब्सिडी समाप्त होने से किसानों और आम जनता को भारी नुक्सान होगा जबकि क्रास सब्सिडी समाप्त होने से केवल उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाभ होगा।

बिजली संविधान की समवर्ती सूची

दुबे ने बताया कि बिजली संविधान की समवर्ती सूची में है, जिसका अर्थ यह होता है कि बिजली के मामले में राज्यों को केंद्र के समान बराबर का अधिकार है। लेकिन विद्युत (संशोधन) बिल 2020 के जरिये बिजली के मामले में केंद्र एकाधिकार जमाना चाहता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून के अनुसार राज्य सरकार के कहने पर राज्य का विद्युत् नियामक आयोग किसानों, गरीबों और कम बिजली उपभोग करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी को सम्मिलित करते हुए बिजली की तर्कसंगत दरें तय करता है।

नए बिल में यह प्राविधान किया गया है कि नियामक आयोग बिजली की दरें तय करने में सब्सिडी को सम्मिलित नहीं कर सकता और सभी उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी। इस प्रकार बिजली की दरें तय करने में गरीब उपभोक्ताओं को सब्सिडी देने के राज्य के अधिकार को छीना जा रहा है।

नई अथॉरिटी का गठन

उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार नए बिल के अनुसाए इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन कर रही है। यह अथॉरिटी बिजली वितरण कंपनियों और निजी क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों के बीच बिजली खरीद के करार के अनुसार भुगतान को सुनिश्चित करने का कार्य करेगी और इस अथॉरिटी के पास यह अधिकार होगा कि अगर निजी उत्पादन कंपनी का भुगतान सुनिश्चित नहीं किया गया है तो राज्य को केंद्रीय क्षेत्र और पावर एक्सचेंज से एक यूनिट बिजली भी न मिल सकें।

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नए बिल का प्रावधान लागू

करार का पालन कराने के अधिकार आज भी राज्य के नियामक आयोग के पास हैं लेकिन इस नई अथॉरिटी के बनने के बाद राज्य में बिजली देने (शिड्यूलिंग) का अधिकार अब केंद्र सरकार के पास चला जाएगा। इसके साथ ही नए बिल में यह प्राविधान किया जा रहा है कि राज्य विद्युत् नियामक आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार अब केंद्र सरकार के पास चला जायेगा और इनके चयन के लिए अब केंद्र सरकार की चयन समिति होगी जिसमे राज्य का कोई प्रतिनिधि भी नहीं होगा।

टोरेंट पावर कंपनी की लूट जारी

दुबे ने बताया कि नए बिल में एक निश्चित प्रतिशत तक सौर ऊर्जा खरीदना राज्य के लिए बाध्यकारी होगा और ऐसा न करने पर राज्य को भारी पेनाल्टी देनी होगी। ध्यान रहे कि बिजली की जरूरत न होने पर भी यह बिजली खरीदनी पड़ेगी जिसके लिए राज्य को अपनी बिजली उत्पादन इकाइयों को बंद करना पडेगा जिससे सबसे सस्ती बिजली मिलती है। उन्होंने बताया कि विद्युत (संशोधन) बिल 2020 में बिजली वितरण का निजीकरण करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेन्चाइजी के जरिये निजी क्षेत्र को विद्युत् वितरण सौंपने की बात है जिससे बिजलीकर्मियों में भारी गुस्सा है।

उन्होंने कहा कि फ्रेन्चाइजी का प्रयोग पूरे देश में विफल हो चुका है और वांछित परिणाम न दे पाने के कारण लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में भी आगरा में टोरेंट पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तों का उल्लंघन कर रही है। सीएजी ने भी टोरेंट कंपनी पर घपले के आरोप लगाए हैं।

रिपोर्टर - मनीष श्रीवास्तव, लखनऊ

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