UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव में कुशीनगर की सात विधानसभा सीटों का क्या हाल है?

Up Election 2022 : कुशीनगर जिले में 2 संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं। पहली खुद कुशीनगर है और दूसरी आंशिक रूप से देवरिया लोकसभा है।

Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-01-25 13:51 IST

यूपी विधानसभा चुनाव (Social Media)

UP Election 2022 :  उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का एक जिला है कुशीनगर (Kushinagar) । बिहार (Bihar) की सीमा से सटा एक जनपद है। पहले यह देवरिया जिले का हिस्सा होता था। बाद में सन 1994 में यह एक अलग जिले के रूप में अस्तित्व में आया। प्रदेश के पूर्वी सीमा पर स्थित कुशीनगर जिले (Kushinagar assembly election) की पहचान गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) से है। लेकिन पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान राम (Goa ram) के बड़े पुत्र कुश यहां के राजा थे, इसलिए इस स्थान का नाम कुशावती (Kushinagar) पड़ा।

वर्तमान में कुशीनगर बौद्ध धर्म की एक पवित्र तीर्थ स्थली के रूप में प्रचलित है। यहीं पर भगवान गौतम बुद्ध को अंतिम ज्ञान यानी कि 'महापरिनिर्वाण' की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध देशों की दिलचस्पी को देखते हुए हाल ही में सरकार ने इस जिले में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का शुभारंभ किया है। इसके बाद से जिले के राजनीतिक समीकरण भी भाजपा के लिए मुफ़ीद बताये जा रहे हैं। 

राजनीतिक रूप से कुशीनगर

कुशीनगर जिले में 2 संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं। पहली खुद कुशीनगर है और दूसरी आंशिक रूप से देवरिया लोकसभा है। ‌इस जिले में कुल 7 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं- खड्डा, पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर, कुशीनगर, हाटा और रामकोला। जिसमें से 2 विधानसभा सीटें तमकुहीराज और फाजिलनगर देवरिया लोकसभा के अंतर्गत आती हैं। बाकी बची सीटें कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। 

क्या थे 2017 के विधानसभा परिणाम? 

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 7 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। रामकोला विधानसभा सीट पर तब भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा से रामानंद विधायक बने थे। वहीं तमकुहीराज विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसी विधानसभा सीट से कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू दो बार से चुनाव जीत रहे हैं। बाकी अन्य पांच सीटें- खड्डा, पडरौना, फाजिलनगर, कुशीनगर और हाटा भारतीय जनता पार्टी ने जीती थी। तो आइए एक-एक कर समझते हैं इन सभी सीटों का राजनीतिक गणित। 

कुशीनगर विधानसभा- वर्तमान में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। यहां से रजनीकांत मणि त्रिपाठी विधायक है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने बहुजन समाज पार्टी के बंटी भैया को 48000 से अधिक वोटों से चुनाव हराया था।

पूर्व में यह सीट दो बड़े नेताओं के सियासी जंग के लिए जानी जाती थी। इस सीट से समाजवादी पार्टी के दिग्गज ब्रह्माशंकर त्रिपाठी और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सूर्य प्रताप शाही चुनाव लड़ते रहे हैं। ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी इस सीट से तीन बार लगातार (2002, 2007 और 2012) विधायक रहे हैं। यह सीट ब्राह्मण बाहुल्य सीट बताई जाती है।

पहले यह सीट कसया विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। अबकी बार यहां मुख्य लड़ाई सपा और भाजपा के बीच ही है। अगर भाजपा प्रत्याशी बदलती है और सपा ब्राह्मण प्रत्याशी उतार देती है तो राजनीतिक समीकरण कड़े मुकाबले में बदल जाएंगे। 

तमकुहीराज विधानसभा- उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह सीट वर्तमान में अधिक चर्चा का विषय है। कारण है कि यहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू चुनाव लड़ते हैं। पिछले दो बार से वह इस सीट पर जीत हासिल कर रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जगदीश मिश्रा को यहां से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह 18000 वोटों से चुनाव हार गए। इस सीट पर पिछड़ी जाति के मतदाताओं का प्रभाव है और वर्तमान विधायक लल्लू पिछली वर्ग से आते हैं।

साथ ही लल्लू इस विधानसभा में अपने व्यक्तिगत जनाधार के लिए अधिक जाने जाते हैं। अपनी विधायक निधि से दूरदराज की सड़कों पर काम करने वाले अजय कुमार लल्लू अभी भी इस सीट पर मजबूत दिखाई पड़ते हैं।

लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर विशेष रणनीति के अंतर्गत कार्यकर्ताओं की टीम उतार रखी है। इस बार संभव है कि भाजपा इस सीट पर किसी पिछड़े उम्मीदवार को उतार सकती है। 2012 से यहां पर समाजवादी पार्टी काफी पीछे दिखाई पड़ती है। इसलिए इस बार भी मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में माना जा रहा है। 

 पडरौना विधानसभा- पडरौना विधानसभा सीट कभी कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व की सीट हुआ करती थी। यहां से कांग्रेस के आरपीएन सिंह कई दफा चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन वर्तमान में सीट आरपीएन सिंह से नहीं बल्कि भाजपा से सपा के नेता बन चुके स्वामी प्रसाद मौर्य के मजबूत किले के रूप में जानी जाती है।

1996 से पडरौना विधानसभा सीट पर चुनाव जीतते आ रहे आरपीएन सिंह सन 2009 में लोकसभा के लिए चुने गए। तब हुए उपचुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था। फिर 2012 में बसपा के टिकट पर और 2017 में भाजपा के टिकट पर वह यहां से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार संभावना है कि खुद वह या उनके पुत्र इस सीट से चुनाव लड़े।

आगामी विधानसभा चुनाव में यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है क्योंकि भाजपा हर हाल में दगा कर गए स्वामी प्रसाद मौर्य को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। इसलिए राजनीतिक अटकलें लगाई जा रही हैं कि आरपीएन सिंह भाजपा में शामिल हो सकते हैं और उनके प्रभाव का लाभ भाजपा को मिल सकता है। इस विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 84000 मुस्लिम मतदाता है।

इसके साथ ही मुख्य रूप से 76000 अनुसूचित जाति, 52 हजार ब्राह्मण, 48000 यादव, 46000 सैंथवार, 44,000 कुशवाहा जाति की मतदाता है। भाजपा की नजर 52000 ब्राम्हण और 46000 सैंथवार मतदाताओं पर है। लेकिन मुस्लिम और यादव गठजोड़ की वजह से यह सीट इस बार सपा के लिए मुफीद बताई जा रही है।

साथ में स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति का जुड़ना इस सीट को सपा के लिए और सुरक्षित बना देता है। कांग्रेस की तरफ से इस बार कभी स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी रहे मनीष जायसवाल उम्मीदवार होंगे। लेकिन इस सीट की सारी लड़ाई इस बात पर निर्भर करती है कि क्या आर पी एन सिंह भाजपा में शामिल होते हैं? 

फाजिलनगर विधानसभा- 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गंगा कुशवाहा ने 41 हजार से अधिक ऑटो से यहां जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के विश्वनाथ रहे थे। गंगा सिंह कुशवाहा इस सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। यह विधानसभा सीट कुशवाहा बाहुल्य सीट बताई जाती है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज की आबादी भी इस सीट पर निर्णायक है।

राजनीतिक सूत्रों की माने तो स्वामी प्रसाद मौर्य या उनके सुपुत्र इस सीट पर भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य की नजर उनके कुशवाहा बिरादरी के साथ यादव और मुस्लिम की कुल 19 फ़ीसदी वोट बैंक पर है। अगर कुशवाहा, यादव और मुस्लिम एक साथ इस सीट पर मतदान करें तो स्वामी प्रसाद मौर्या उनके सुपुत्र के लिए यह सीट आसान हो जाएगी। 

 हाटा विधानसभा- यह विधानसभा सीट कुशीनगर की बड़ी दिलचस्प बताई जाती है। 1985 से लेकर आज तक कोई भी प्रत्याशी या पार्टी यहां से दो बार लगातार नहीं जीता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के पवन केडिया ने समाजवादी पार्टी के राधेश्याम सिंह को तकरीबन 53 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हराया था।

इससे पहले भाजपा यह सीट 2007 और 1995 में भी जीत चुकी है। 2012 में समाजवादी पार्टी से राधेश्याम सिंह यहां से चुनाव जीते थे। ब्राह्मण बहुल्य इस विधानसभा सीट पर क्षत्रिय, यादव, कुशवाहा और मुसलमान भी अपना गहरा प्रभाव रखते हैं। इस बार भी यहां मुकाबला सपा बनाम भाजपा होता दिखाई पड़ रहा है। 

खड्डा विधानसभा- 2012 से पहले यह विधानसभा सीट नौरंगिया के नाम से जानी जाती थी। 2012 में इसका नाम बदलकर खड्डा विधानसभा कर दिया गया। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के जटाशंकर त्रिपाठी ने बसपा के विजय प्रताप कुशवाहा को 44 हजार से अधिक मतों से चुनाव हराया था। यह विधानसभा सीट कभी भी किसी एक पार्टी के वर्चस्व की सीट नहीं रही है। हालांकि पूर्णमासी देहाती यहां से तीन दफा चुनाव जीत चुके हैं।

इस सीट पर सबसे अधिक ब्राम्हण (17%) मतदाता बताए जाते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान बताई जा रही है। जाति समीकरण और स्थानीय जनता दोनों ही भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दिखाई पड़ते हैं। 

रामकोला विधानसभा- रामकोला विधानसभा उत्तर प्रदेश विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने तत्कालीन सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को यह सीट समझौते के अंतर्गत दी थी। इस सीट पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रामानंद बौद्ध विधायक है। खड्डा विधानसभा से चुनाव लड़ते रहे पूर्णमासी देहाती ने 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था।

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में सुभासपा का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हो चुका है। अब यहां देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा फिर गठबंधन के अंतर्गत यह सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को देगी? पूर्व में इस सीट पर राधेश्याम सिंह दो बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। इस विधानसभा सीट पर सैंथवार क्षत्रिय, मुस्लिम और हरिजन निर्णायक माने जाते हैं।

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