Kashi Vishwanath Mandir: जानिए काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में, दर्शन कर लेने से होती है मोक्ष की प्राप्ति

Kashi Vishwanath Mandir: काशी अपने प्राचीन मंदिरों के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाता है। काशी के हर एक चौराहें पर छोटे से लेकर बड़ा मंदिर है।

Published By :  Divyanshu Rao
Update: 2021-12-06 14:37 GMT

काशी विश्वनाथ मंदिर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया) 

Kashi Vishwanath Mandir: काशी नगरी (Kasi Nagari) जिसका नाम सुनते ही मन में आस्था का भाव उत्पन्न हो जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे काशी आकर भगवान शिर के साक्षात दर्शन हो गए हैं। गंगा (Ganga) की गोद में बसा यह पावन शहर न सिर्फ काशी बल्कि वाराणसी बनारस के नामों से भी जाना जाता है। साथ ही इस शहर को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है।

काशी अपने प्राचीन मंदिरों के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाता है। काशी के हर एक चौराहें पर छोटे से लेकर बड़ा मंदिर है, जो किसी न किसी इतिहास पर आधारित है। वहीं, भगवान शिव को समर्पित काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा तट के किनारे बसा है। आज हम आपको काशी विश्वनाथ भगवान के कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में बताएंगे। जिनके बारे में शायद आप जानते न हो।

ऐसा कहा जाता है कि गंगा किनारे बसी काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोख पर बसी है। जहां 12 ज्योतिर्लिगों में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं।

दो भागों में विराजमान है ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिनी भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती हैं। वहीं दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। देवी भगवती की दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग सिर्फ काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

मोक्ष प्राप्त होता है

ऐसी मान्यता है कि अगर कोई इंसान एक बार काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर लें और गंगा में डूबकी लगा लें, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। अधिकतर लोग काशी में अपने जीवन का अंतिम वक्त बीताने के लिए आते हैं, और अपने प्राण भी यहीं त्यागते हैं। शास्त्रों के अनुसार जब किसी इंसान की मौत हो जाती है,तो मोक्ष के लिए उनकी अस्थियां यहीं पर गंगा में विसर्जित करते हैं।

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर को साल 1194 में मुहम्मद गौरी ने इस मंदिर को लूटने के बाद इसे तुड़वा दिया था. जिसे एक बार फिर से बनवाया गया था। लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तोड़वा दिया था। वहीं, वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा 1780 में कराया गया था। लेकिन बाद में महाराणा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में यह मंदिर एक हजार किलो शुद्ध सोने से बनवाया गया था। इसीलिए सोने का मंदिर भी कहा जाता है।

रंग भरी एकादशी

महाशिवरात्री के दिन मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा डोल नगाड़े के साथ बाबा विश्वनाथ के मंदिर तक जाती है। वहीं, काशी में रंग भरी एकादशी का भी काफी महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव माता गौरी का गौना करवाकर काशी लें आए थे।

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