Shardiya Navratri 2021: यहां है माता ब्रह्मचारिणी का मंदिर, ऐसे जातकों के लिए वरदान है माता की आराधना

Shardiya Navratri 2021: नवरात्रि के नौ दिन में दुर्गा जी के नव स्वरूपों में ब्रह्मचारिणी देवी का स्थातन दूसरा है। इसीलिए इनकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है।

Report :  aman
Published By :  Monika
Update:2021-10-06 13:47 IST

माता ब्रह्मचारिणी (photo : सोशल मीडिया ) 

Shardiya Navratri 2021: शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा ( Maa Brahmacharini roop ki pooja) होती है। जातक इस दिन पूरी आस्था से मन माता रानी के चरणों में लगाते हैं। 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या और 'चारिणी' यानी आचरण करने वाली। इसलिए ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। माता के ब्रह्मचारिणी रूप में इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है। इस दिन माता के कई भक्त कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। इस साधना से उनका जीवन सफल हो जाता है। जातक अपने सामने आने वाली हर प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर लेता है।

काशी में है मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर (kashi me Maa Brahmacharini mandir)

क्या आपको पता है, माता भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप का मंदिर कहां है। यह प्रसिद्ध मंदिर है शिव नगरी काशी यानि वाराणसी में। काशी के सप्तसागर, कर्णघंटा क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। नवरात्रि के नौ दिन में दुर्गा जी के नव स्वरूपों में ब्रह्मचारिणी देवी का स्थातन दूसरा है। इसीलिए इनकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। नवरात्रि वाराणसी में गंगा किनारे बालाजी घाट पर स्थित माता ब्रह्मचारिणी के इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है। इस मंदिर में माता को नारियल, लाल चुनरी, अरहुल फूल की माला आदि चढ़ाया जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी का मंदिर (फोटो : सोशल मीडिया )

नि:संतान भक्तों को संतान प्राप्ति

इस मंदिर में मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप भव्य है। ऐसी मान्य ता है कि इस मंदिर में देवी की आराधना करने से साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है। यहां माता के दर्शन करने वालों को यश और कीर्ति का आर्शिवाद भी प्राप्त होता है। इस मंदिर में वाराणसी ही नहीं, बल्कि उसके आसपास के क्षेत्रों से भी भक्त माता रानी के दर्शन को आते हैं। लोगों का विश्वास है कि मां ब्रह्मचारिणी के इस मंदिर में दर्शन करने वाले नि:संतान भक्तों को संतान प्राप्ति होती है।

शादी में रुकावट है, तो करें पूजा

मंदिर के पुजारी का कहना है कि जिस लड़की की शादी नहीं हो रही है या किसी प्रकार की विघ्न, रुकावट आ रही है तो इस मंदिर में पूजा-अर्चना और माता के दर्शन के साथ ही उसके दोष कट जाते हैं। ऐसे ही जिस बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता है, वह अगर नियमित माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करे तो उसकी मन्नत पूरी होगी। वाराणसी के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि जब से काशी है तब से ये मंदिर है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि (Maa Brahmacharini pooja vidhi)

नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त को सुबह जगकर नित्यक्रिया से निवृत होकर स्नान के बाद सफेद या पीले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद स्थापित किए गए कलश में मां ब्रह्मचारिणी का आह्वान करना चाहिए। माता को सफेद रंग की पूजन सामग्री, मिश्री, शक्कर या पंचामृत अर्पित करना चाहिए। साथ ही घी का दिया जलाकर माता की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद दूध, दही, चीनी, घी और शहद का घोल बनाकर माता को स्नान करवाना चाहिए। इसके बाद माता की पूजा करें। उन्हें अरहुल का फूल, रोली, चन्दन और अक्षत अर्पित करना चाहिए। भक्त को हाथ में सुपारी और पान लेकर संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद नवरात्र के लिए स्थापित कलश और मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए।

माता ब्रह्मचारिणी की कथा (Maa Brahmacharini katha) 

पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। नारद जी के उपदेश से देवी ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप किया। इसी तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम मिला। कथानुसार, एक हजार वर्षों तक देवी ने केवल फल-फूल खाकर और 100 वर्षों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

कुछ समय कठिन उपवास रखे। फिर खुले आकाश के नीचे बारिश और धूप के घोर कष्ट भी सहे। 3,000 वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और केवल भगवान भोलेनाथ की आराधना की। बाद में देवी ने सूखे बिल्व पत्र खाना तक छोड़ दिया। हजारों वर्षों तक बिना जल के और बिना आहार के रहकर तपस्या करती रहीं। देवी ने पत्तों को भी खाना छोड़ दिया था जिससे इनका नाम 'अपर्णा' पड़ा। जल और भोजन छोड़ देने की वजह से इनका शरीर काफी कमजोर हो गया।

देवी की इस कठिन तपस्या से देवता, ऋषि-मुनि, सिद्ध गण आदि ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व बताते हुए उनकी सराहना की। देव गणों ने कहा, "हे देवी आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की। यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी आपको पति रूप में प्राप्त होंगे। अब आप तपस्या छोड़ घर लौट जाएं। जल्द ही आपके पिता बुलाने आ रहे हैं।"

माता ब्रह्मचारिणी की इस कथा का सार यही है:कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गापूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

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