हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना, लोक निर्माण विभाग ने नहीं दी नियुक्ति

राजधानी में समाजवादी पार्टी की सरकार ने रविवार को अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करके यूपी की जनता को दोबारा सरकार बनने पर विकास और सुरक्षा के साथ साथ रोजगार का भी विश्‍वास दिलाया है। लेकिन प्रदेश का एक विभाग ही आम जनों के हितों का न सिर्फ हनन कर रहा है बल्कि कोर्ट के हस्‍तक्षेप के बाद भी गरीब के साथ न्‍याय करना उचित नहीं समझ रहा है।;

Update:2017-01-22 18:18 IST

लखनऊ : राजधानी में समाजवादी पार्टी की सरकार ने रविवार को अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करके यूपी की जनता को दोबारा सरकार बनने पर विकास और सुरक्षा के साथ साथ रोजगार का भी विश्‍वास दिलाया है। लेकिन प्रदेश का एक विभाग ही आम जनों के हितों का न सिर्फ हनन कर रहा है बल्कि कोर्ट के हस्‍तक्षेप के बाद भी गरीब के साथ न्‍याय करना उचित नहीं समझ रहा है।

हम बात कर रहें है प्रदेश के लोक निर्माण विभाग की, जिसमें विभाग के लिए होने वाली करीब डेढ़ दर्जन जूनियर इंजीनियर (जेई) की नियुक्ति में अधिकारियों ने बड़ा खेल कर दिया है। ऐसे में 17 साल से कई कैंडिडेट्स नौकरी की आस में विभाग के अलावा कोर्ट कचहरी के चक्‍कर लगाने को मजबूर हैंं। आलम यह है कि काेर्ट के आदेशों के बावजूद विभागीय अधिकारी पीड़ित के साथ न्‍याय करने के बावजूद कोर्ट को गुमराह करने में लगे हुए हैं।

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17 साल से विभाग के चक्‍कर काट रहे पीड़ित

-उपवन कंवल नाम के शख्‍स ने बताया कि अाज से 30 साल पहले लोक निर्माण विभाग में हजारों लोगों ने जूनियर इंजीनियर (जेई) के कई पदों पर अप्रेंटिसशिप की थी।

-अप्रेंटिसशिप के दौरान ही एक शासनादेश जारी हुआ जिसमें कहा गया कि ऐसे लोग जिन्‍होंने किसी भी सरकारी विभाग में अप्रेंटिसशिप की है, उन्‍हें स्‍थाई नियुक्ति के समय प्राथमिकता दी जाएगी और विभागो में इसके लिए नियुक्तियां भी हाेंगी।

-इस शासनादेश के बाद लोक निर्माण विभाग में कई नियुक्तियां की गईं लेकिन किसी भी पद पर अप्रेंटिसशिप करने वाले कैंडिडेट्स को शामिल नहीं किया गया।

-इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और साल 1996 में उत्‍तर प्रदेश बेरोजगार डिप्‍लोमा वेलफेयर एसोसिएशन का गठन किया गया।

-इसी संगठन ने 1998 में एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की।

-तबसे लेकर अब तक सिर्फ विभाग और कोर्ट के चक्‍कर काट रहे हैं।

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कैंडिडेट्स ने दायर किए मुकदमे

-इसमें लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग और लघु सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव और चीफ इंजीनियर के साथ-साथ लोक सेवा आयोग के सेक्रेटरी को भी पार्टी बनाया गया।

-इसके बाद कुछ अप्रेटिसशिप करने वाले कैंडिडेट्स ने अलग से भी नियुक्ति पाने के लिए मुकदमे दायर किए।

-इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च 2001 को लखनऊ हाईकोर्ट को आदेश दिया कि इस मामले से जुड़े़े सारे मुकदमों की एक साथ सुनवाई करके 3 महीने में निस्‍तारण किया जाए।

-लखनऊ हाईकोर्ट ने सारे मामले को एक साथ सुनवाई करना शुरू किया और 9 साल बाद इन्‍हें नौकरी के लिए उचित उम्‍मीदवार बताया।

-इसके बाद जब विभाग में नौकरी के लिए कैंडिडेट्स ने आवेदन किया तो उन्‍हें अधिक उम्र का बताकर विभाग ने आवेदन निरस्‍त कर दिए।

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विभाग ने दिया धोखा

-कैंडीडेट्स उपवन कंवल ने बताया कि 1998 से अब तक 17 साल से ज्‍यादा समय से एक नौकरी पाने के लिए चक्‍कर काट रहे हैं।

-कोर्ट के आदेश के बावजूद विभाग से पीडि़तों को केवल धोखा ही मिला है।

-जब विभाग ने अधिक उम्र बताकर आवेदन निरस्‍त किया तो हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई।

-इसमें कोर्ट ने मुकदमेबाजी में लगे समय को आयु में जोड़कर सेवा में लिए जाने का आदेश दिया।

-इस सुनवाई के दौरान लोक सेवा आयोग लोक निर्माण विभाग में अवर अभियंता के सिविल ट्रेड के पदों पर इंटरव्यू लेने लगा।

-इस पर कोर्ट ने 16 पद रोक लिए और निस्‍तारण होनेे तक प्रतीक्षारत कर दिए।

-इसके बाद शासन को लोक सेवा आयोग को पत्र लिखकर पीडि़त का इंटरव्यू लेने को कहा।

-उपवन कंवल का आरोप है कि आयोग में अप्रेंटिसशिप किए हुए करीब 18 कैंडिडेट्स इंटरव्यू देने पहुंचे लेकिन आयोग द्वारा उन्‍हें चयनित न करके अपने चहेते लोगों को नियुक्ति किया गया।

-इसके बाद लोक निर्मााण के चीफ इंजीनियर द्वारा उन्‍हीं लोगों को मान्‍य कर दिया गया।

-इस बारे में जब लोक निर्माण विभाग केे चीफ इंजीनियर वीके सिंह से संपर्क किया गया तो उन्‍होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा।

-लोक निर्माण विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आयोग से जो इंजीनियर चयनित होकर आते हैं, उनको ही विभाग मान्‍यता देता है।

-अगर चयन प्रक्रिया में काेई गड़बड़ी का आरोप लगाता है तो इसके लिए आयोग ही जिम्‍मेदार होगा।

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