DGP और IPSएसोसिएशन का विरोध पुलिस एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ

यूपी में हालिया आईएएस और आईपीएस अफसरों के अधिकारों को लेकर मचे रार पर रिटायर आईएएस एसएन शुक्ल ने खेद जताते हुए कहा है कि किसी भी संवर्ग के दबाव में

Update: 2017-12-14 16:46 GMT

लखनऊ: यूपी में हालिया आईएएस और आईपीएस अफसरों के अधिकारों को लेकर मचे रार पर रिटायर आईएएस एसएन शुक्ल ने खेद जताते हुए कहा है कि किसी भी संवर्ग के दबाव में निर्णय नहीं होना चाहिए। जिस शासनादेश को लेकर डीजीपी और आईपीएस एसोसिएशन द्वारा विरोध किया जा रहा है, उसे उचित नहीं कहा जाएगा। यह पुलिस एक्ट व पुलिस रेग्यूलेशन के स्पष्ट प्राविधानों के विरूद्ध है, पहले के समय में भी डीएम आफिस में कानून व्यवस्था की नियमित मासिक समीक्षा बैठक होती थी। उसके लिए उन्हें पुलिस लाइन जाने की जरूरत नहीं होती थी। वह खुद आईपीएस कैडर रूल में हुए संशोधन को प्रभावी बनाने के लिए दो साल से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। दोनों संवर्ग में सामंजस्य के लिए उन्होंने चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर सुझाव भी दिए हैं।

यह दिए सुझाव

लोक प्रहरी संस्था के महामंत्री एसएन शुक्ल ने आईएएस और आईपीएस संवर्ग में सौहार्द बना रहे। इसके लिए चीफ सेक्रेटरी को लिखे पत्र में जो सुझाव दिए हैं। उसमें कहा गया है कि जिला मजिस्ट्रेट के कानून व्यवस्था की समीक्षा बैठक एसएसपी/एसपी और क्षेत्राधिकारियों तक सीमित रखी जाए। थानाध्यक्षों की बैठक एसएसपी/एसपी के स्तर पर की जाए। जिला मजिस्ट्रेट की समीक्षा बैठक पुलिस लाइन की बजाए जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में की जाए।

डीएम की बैठक पर नहीं होनी चाहिए आपत्ति

पहले फौजदारी वादों के निस्तारण की नियमित मासिक समीक्षा जिला मजिस्ट्रेट अपने कार्यालय में ही करते थे। उन्हें पुलिस लाईन जाने की जरूरत नहीं होती थी। आज उस व्यवस्था के कड़ाई से पालन की जरूरत है। ताकि यह तय हो सके कि पुलिस अपने दायित्व का निर्वहन सही ढंग से कर रही है। इसके अलावा जब जिला मजिस्ट्रेट को थानों के निरीक्षण का अधिकार प्राप्त है और थानाध्यक्षों के तबादले पर उनकी सहमति जरूरी है तो उनके कामों की समीक्षा के लिए जिला मजिस्ट्रेट के बैठक पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हमारे समय में इन दोनों बातों का विशेष ध्यान रखा जाता था।

आईपीएस कैडर रूल में संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट में दो साल से कर रहा हूं पैरवी

श्री शुक्ल ने कहा है कि वर्चस्व की निरर्थक बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जा रहा है। इसके लिये आईएएस अधिकारियों को दोषी बताया जा रहा है। जबकि दिसम्बर 2013 में केंद्र सरकार ने आईपीएस कैडर रूल 7 में संशोंधन कर 2 वर्ष के सामान्य कार्यकाल की व्यवस्था की थी। इसे उच्चतम न्यायालय ने 6 मई 2014 में स्थगित कर दिया था। नतीजतन पिछली सरकार में आईपीएस अधिकारियों को फुटबाल की तरह आए दिन इधर से उधर किया जा रहा था। पर इस विषय को लेकर आईपीएस एशोसियेशन न्यायालय नहीं गया बल्कि लोक प्रहरी के महामंत्री के रूप में उस स्थगन आदेश को निरस्त कराने के लिये मैं दो वर्षों से स्वयं उच्चतम न्यायालय में निरन्तर पैरवी कर रहा हूँ।

डीएम के अधिकार से जनपदीय अधिकारी को मुक्त करने से कमजोर होगा शासन

उन्होंने कहा है कि जिला मजिस्ट्रेट जनपद में शासन के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है और जिला प्रशासन की धुरी है। इसलिए किसी जनपदीय अधिकारी को जिलाधिकारी के अधिकार क्षेत्र से पूर्णतः मुक्त करना प्रशासन एवं स्वयं शासन को कमजोर करेगा। जिलाधिकारी की संस्था को कमजोर करने वाला कोई भी निर्णय प्रदेश एवं देश हित में न होने के कारण स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

किसी संवर्ग के दबाव में नहीं हो निर्णय

एसएन शुक्ल ने कहा है कि मुख्य मुद्दा प्रदेश की चरमराई कानून व्यवस्था में सुधार का है जो जनपदीय अधिकारियों के एक टीम के रूप में कार्य करने पर ही सम्भव है। इस बारें में किसी संवर्ग के दबाव में निर्णय लिया जाना प्रदेश की जनता के हित में नहीं होगा।

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