Purushottam Das Tandon: नमन हिंदी के राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन

Purushottam Das Tandon: 1930 में उन्होंने महान समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव के साथ गिरफ्तारी दी थी। वे स्वदेशी के महाव्रती थे।

Written By :  Deepak Mishra
Update: 2024-08-02 02:51 GMT

पुरुषोत्तम दास टंडन को माल्यार्पण करते तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू (Pic: Newstrack)

Purushottam Das Tandon: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार, संपादक और मनीषी पुरुषोत्तम दास टंडन जी की एक अगस्त को जन्म जयंती मनाई जाती है। सभी भारतीयों विशेकर हिंदी भाषी लोगों को उन्हें वैसे याद और नमन करना चाहिए जैसे हम रामनवमी और कृष्णाष्टमी मनाते हैं। उन्होंने साहित्य सम्मेलनों की परम्परा को सशक्त किया। हिंदी के लिए संविधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा देने से नहीं हिचके। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश विधान सभा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने के बावजूद उनकी सादगी उन्हें ऋषि बनाती है।

"स्वदेशी के महाव्रती"

वे हिंदी की मजबूती के लिए ही राजनीति में पदार्पित हुए। वे स्वदेशी के महाव्रती थे। उन्होंने महामना मालवीय के साथ हिंदी साहित्य सम्मेलन का गठन किया। इंदौर में 1918 में हिंदी सम्मेलन का आयोजन महात्मा गांधी की अध्यक्षता में की। 1930 में उन्होंने महान समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव के साथ गिरफ्तारी दी थी। 1939 में उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन करवाया था जिसमें आचार्य नरेंद्र देव, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय, मैथिली शरण गुप्त ने सहभाग किया था। इसके संकल्प अभी भी अधूरे हैं ,जिन्हें पूरा करना हमारा लोकधर्म और पितृऋण है। उन्होंने आजाद हिंद फौज के सेनानियों के मुकदमे को लड़ने और न्याय दिलाने के लिए फंड एकत्र किया, यह बात मुझे आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल और नेताजी बोस के सहयोगी रहे बाबा भारद्वाज ने बताई थी। भारतरत्न देकर भी हमारा इतिहास अपनी इस अनमोल रत्न की कद्र करने में विफल रहा है। आइए , राजर्षी की महान परंपरा को जीवंत रखने और हिंदी को और मजबूत करने का प्रतिबद्ध प्राण लें ।

पुनाश्च- संलग्न तस्वीर पुरुषोत्तम दास के 75वें जन्मदिन की है, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू माल्यार्पण कर रहे हैं और सर्वपल्ली बगल में बैठे हैं। यह चित्र उन विचित्र लोगों को देखना चाहिए जो राजर्षि का नाम लेकर पंडित नेहरू पर निशाना साधते हैं। राजर्षि हिंदी और हिंदुत्व के समर्थक थे, उर्दू और इस्लाम के विरोधी नहीं। वे समावेशी, समाजवादी सोच के व्यक्तित्व के कारण साम्प्रदायिकता के खिलाफ थे।  

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