UP MLC Election: राजनीति की हर परीक्षा में अखिलेश फेल, विधान परिषद में SP का पत्ता हुआ साफ
Lucknow: सपा के मुखिया अखिलेश यादव को विधान परिषद के चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा है। विधान परिषद की 36 सीटों पर हुए चुनावों में सपा को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है।
Lucknow: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को विधानसभा चुनाव हारने के बाद मंगलवार को विधान परिषद के चुनावों में भी करारी हार का सामना करना पड़ा है। विधान परिषद की 36 सीटों पर हुए चुनावों में सपा को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व में सपा की ऐसी शर्मनाक पराजय से पार्टी के कार्यकर्ता भी हतप्रभ हैं।
वहीं, राजनीति के जानकारों का कहना है कि बीते पांच वर्षों से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) चुनावी राजनीति में लगातार फेल हो रहे हैं. लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि राजनीति में असफलता का दूसरा नाम अखिलेश ही है। हालात अगर यही रहे और अखिलेश अपनी चलाते हुए सीनियर पार्टी नेताओं को साथ लेकर चलने का प्रयास नहीं किया तो जल्दी ही आजम खां (azam khan) और शफीकुर्रहमान बर्क जैसे बड़े नेता पार्टी से नाता तोड़ लेंगे। अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) तो सपा से दूरी बनाने का संकेत खुलकर दे ही चुके हैं.
अखिलेश यादव की सियासी सोच पर होने लगी चर्चा
पार्टी की भीतर ऐसे चुनौतियों का सामना कर रहे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए विधान परिषद में हुई करारी हार ने उनसे नाराज पार्टी नेताओं को बोलने का मौका दे दिया है, जिसके चलते अब अखिलेश यादव की सियासी सोच पर चर्चा की जाने लगी है. ऐसी चर्चाओं में यह कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने पिछले पांच साल में तीन बार गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. इसके पहले जब सपा की बागडोर अखिलेश के पिता मुलायम सिंह के हाथों में थी तब वर्ष 2012 में सपा ने अकेले चुनाव लड़ा था और सरकार बनाई थी। इसके बाद वर्ष 2017 में अखिलेश यादव ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ली और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की राजनीति को किनारे रखते हुए अखिलेश ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। तब यूपी के दो लड़के का नारा बहुत बुलंद हुआ और चुनाव जिताने की गारंटी करने वाले रणनीतिकार प्रशांत किशोर की देखरेख में सपा-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यह गठबंधन कामयाब नहीं हुआ।
2019 में चर्चा में रहा बुआ-भतीजे का गठबंधन
सपा (SP) और कांग्रेस (Congress) दोनों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके बाद अखिलेश ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को छोड़ कर धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया मायावती (Mayawati) के साथ चुनावी तालमेल कर लिए. तब बुआ-भतीजे का गठबंधन बहुत चर्चा में रहा। मुलायम सिंह और मायावती के गिले-शिकवे दूर हुए और मुलायम की बहू डिंपल यादव ने मंच पर मायावती के पैर छुए। इस गठबंधन में अपने कोटे से सीटें देकर अखिलेश (Akhilesh Yadav) ने राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया। लेकिन इस बार भी गठबंधन फेल हो गया, लेकिन इस गठबंधन के चलते बसपा तो फिर भी शून्य से 10 सीटों पर पहुंच गई लेकिन सपा पांच की पांच पर अटकी रही।
इसके बाद बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने बसपा (BSP) और कांग्रेस (Congress) को छोड़ कर कई छोटी पार्टियों से गठबंधन किया, जिसके तहत अखिलेश ने राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के जयंत चौधरी, भाजपा के पूर्व सहयोगी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) और संजय चौहान की जनवादी पार्टी से भी तालमेल किया. अखिलेश का यह गठबंधन भी कामयाब नहीं हुआ. हालांकि सपा के वोट बैंक में बड़ा इजाफा हुआ है लेकिन अखिलेश यूपी की सत्ता से दूर ही रहे.
अखिलेश यादव का चुनावी अभियान रहा असफल
ऐसे में अब जब विधान परिषद के चुनावों में भी अखिलेश यादव का चुनावी अभियान असफल रहा और आ रहे हैं अखिलेश (Akhilesh Yadav) और जीतेंगे अखिलेश का नारा पोस्टर और गानों तक ही सीमित रह गया। तो अब यह सवाल उठ रहा है कि अखिलेश का चुनावी अभियान क्यों विफल हुआ है ? वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि अखिलेश के लगातार चुनाव हारने की मुख्य वजह उनका पार्टी के सीनियर नेताओं के प्रति अविश्वास करना है, जिसके चलते अखिलेश यादव की गठबंधन राजनीति असफल साबित हुई। यहीं नहीं अखिलेश अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव, पार्टी की मुस्लिम लीडर आजम खां और सांसद शफीकुर्रहमान बर्क का विश्वास भी अखिलेश यादव खोने की कगार पर पहुंच गए।
गिरीश पांडेय कहते हैं कि अब अगर अखिलेश यादव ने पार्टी में इन नेताओं की अनदेखी करने का सिलसिला जारी रखा तो आजम खां भी पार्टी के नाता तोड़ लेंगे और शिवपाल सिंह यादव भी अपर्णा यादव के रास्ते पर चलते हुए भाजपा का दामन थाम कर सपा के यादव वोटबैंक में सेंध लगाएंगे। अब देखना यह है अखिलेश यादव लगातार हार का सिलसिला तोड़ने के लिए पार्टी के सीनियर नेताओं को पार्टी से जोड़े रखने का प्रयास करते हैं या फिर नाराज सीनियर नेताओं की अनदेखी करते है।
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