ये धाकड़ बेटियां भी अखाड़े में दुश्मन को धूल चाटाती हैं, 'दंगल ' की तरह ही है इनकी कहानी

Update: 2016-12-27 12:04 GMT

कई खिताबों से नवाजी जा चुकी हैं, ये बेटियां...

आगर: बेटियां लड़कों से कम नहीं इस बात को आगे लेकर आई आमिर की फिल्म दंगल जो इस बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। फिल्म दंगल में आमिर खान अपनी बेटियों को अखाड़े में उतरा था। तो वहीं आगरा में दंगल की बेटियों की तरह ही अखाड़े पर अपनी पहलवानी दिखती है। सहारा गांव में विशम्भर सोलंकी ने भी अपनी सात बेटियो को दंगल का पहलवान बनाया है।

क्या कहानी ?

-पिता खुद कुस्ती में नाम कमाना चाहते थे।

-लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो सका।

-जिसके बाद उन्होंने सोचा कि आगे चलकर उनका बेटा यह सपना पुरा करेगा।

-लेकिन बेटे की चाहत रखने वाले सोलंकी के घर सात बेटियों ने जन्म लिया।

-जिसके बाद उन्होंने बेटियों को कुस्ती के काबिल बनाया।

-अब उनकी बेटिया सोलंकी सिस्टर के नाम से मशहूर है।

-जो स्टेट से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक का पदक जीत चुकी है।

-उनकी सात बेटियों में से अब सीमा सोलंकी, नीलम सोलंकी और पूनम सोलंकी पहलवानी कर रही हैं।

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देश के लिए ओलम्पिक में मेडल जीतने सपना

-आगरा के साहरा गांव की बेटियों के लिए कुस्ती लड़ना आसान नहीं था।

-उन्होंने अपने घर है बेटियों के लिए आखाडा बनाया है।

-ये बेटिया पढ़ती भी हैं और कमाती भी है।

-सुबह कुस्ती लड़ने के बाद सोलंकी सिस्टर घर में किराने की दुकान चलाती है।

-जो पैसे मिलते है, उससे वह पहलवानी की खुराक तैयार करती है।

-पिता भी बेटियों की कामयाबी में हिस्सा बनने के लिए काम करते है।

आगे की स्लाइड में क्या कहा विश्म्भर सोलंकी ने ...

-उनकी सात बेटियां हैं जिसमें चार की शादी हो चुकी है।

-लेकिन वो आज भी कुस्ती लड़ने जाती है।

-उनकी बेटीयो ने हरिद्वार में पतंजलि द्वारा दंगल में जलवा दिखाया था।

-तीनों बहनों ने अपने विरोधी पहलवानों को धूल चटाई थी।

-इस पर बाबा रामदेव की ओर से उन्हें 51 हजार रुपये और पांच कनस्तर देशी घी भेंट किया गया था।

आगे की स्लाइड में नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता ...

 

-नीलम सिंह ने 2015 में कर्नाटक में हुई नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर शहर का नाम रोशन किया।

-उनकी बड़ी बहन सीमा और छोटी बहन पूनम भी स्टेट में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं।

-अब वह ओलम्पिक में अपना दम दिखाना चाहती है।

नीलम सिंह के मुताबिक

-आगरा की पहलवान बेटियों को अगर एक अच्छा कोच और सरकारी मदद मिलेगी।

-तो ये निश्चित देश के लिए ओलम्पिक में पदक की उम्मीदवार बन सकती हैं।

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