लखनऊ: यूपी में घपले-घोटालों की जांच के अधिकांश मामले में आरोपी साफ बच निकलते हैं। इसकी एक खास वजह जांच प्रक्रिया का सही ढंग से पालन न होना है। जिससे जांच की रिपोर्ट डिफेक्टिव (दोषपूर्ण) हो जाती है और इसी की आड़ में आरोपी को लोक सेवा अधिकरण अथवा हाईकोर्ट से राहत मिल जाती है।
इसको देखते हुए शासन ने वित्त विभाग के सभी विभागाध्यक्षों से साफ कहा है कि जांच कार्यवाही में नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाए।
जांच अधिकारियों को इन बातों का रखना होगा ध्यान
-आरोप पत्र में दस्तावेजों के साक्ष्यों को सिद्ध करने के लिए प्रस्तावित गवाहों के नाम मौखिक साक्ष्यों के साथ दर्ज किए जाएं।
-प्रतिदिन की कार्यवाही संबंधित पत्रावली में आर्डर शीट के तौर पर दर्ज होनी चाहिए।
-आरोपी सरकारी सेवक से लिखित बयान लिया जाएगा।
-तय समय पर उपस्थित न होने पर एक पक्षीय कार्यवाही की जाएगी।
-जांच के समय आरोपी सरकारी सेवक का गवाहों से आमना-सामना कराया जाएगा।यह भी पढें...VIDEO: अधिकारी ले रहे AC का मजा, स्कूलों में बच्चे ऐसे कर रहे पढ़ाई
-प्रस्तावित साक्षी से जिरह कर सकता है आरोपी सरकारी सेवक।
-शिकायती प्रार्थना पत्र कोई साक्ष्य नहीं है।
-कुछ मामलों में शिकायती पत्रों के आधार पर आरोप-पत्र निर्गत कर दिया गया।
-बिना प्रारम्भिक जांच के निर्गत न किया जाए आरोप पत्र।
-विभागीय जांच में भी इन बिन्दुओं का रखना होगा ध्यान।
सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में स्पष्ट कर चुका है स्थिति
सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में स्थिति स्पष्ट कर चुका है। कोर्ट ने उप्र राज्य बनाम अन्य एवं संजय कुमार सिन्हा मामले में जांच अधिकारी की भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा है कि आरोपी अधिकारी की गैरमौजूदगी में जांच अधिकारी ही तय करता है कि आरोपी दोषी है या नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि जांच अधिकारी अर्ध न्यायिक प्राधिकारी है।