Shraddha Murder Case: श्रद्धा हत्या कांड जैसे घटनाओं को रोकने के लिए पैरेंटिंग जरूरी है: डॉ. अर्चना शुक्ला
Shraddha Murder Case: अभी जो भेदभाव हो रहा है, इसके लिए लड़कियों पर बहुत कार्य किए गए हैं, लेकिन लड़कों पर अभी किया जाना बाकी है।
Shraddha Murder Case: श्रद्धा के साथ जो घटना हुआ वह मानवता पर एक धब्बा है। भला ऐसा कोई कैसे कर सकता है। यह कृत्य करते हुए उसकी मन: स्थिति क्या होगी? उसने किन परिस्थितियों में यह कृत्य किया? इसके लिए परिवार जिम्मेदार है या समाज। जैसे तमाम विषयों पर जानने के लिए आज Newstrack की टीम अर्चना शुक्ला मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय के पास गई। जब newstrack ने अर्चना शुक्ला से पूंछा कि श्रद्धा जैसे क्रूर हत्या के क्या प्रमुख कारण हो सकते हैं? तो उन्होंने बताया कि मीडिया के माध्यम से पता चला कि आफताब नशा करता था और नशे की स्थिति में व्यक्ति निर्दयी हो जाता है । उसमें मानवता नाम की कोई चीज नहीं बचती। इन्ही परिस्थितियों में ऐसी घटनाएं होती हैं। ऐसी घटना ना हो इसके लिए पैरेंटिंग सबसे जरूरी है। यदि अभिभावक अपने बच्चों में यह विश्वास दिला दें कि हम हर परिस्थितियों में आपके साथ खड़े रहेंगे। तुम्हारी हर गलती के बाद भी हम तुम्हें स्वीकारेंगे। तो बच्चे अपने पैरेंट्स से कुछ नही छुपायेंगे। अपनी अच्छी और बुरी सभी बातों को पैरेंट्स के साथ शेयर करेंगे।
"हम लड़के लड़कियों में समानता चाहते हैं" जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता है। हम लड़कियों को वह सभी काम सिखाते हैं, जो लड़के करतें हैं । लेकिन लड़कों को लड़कियों द्वारा किए जाने वाले कार्य को नहीं सिखाते। अभी जो भेदभाव हो रहा है, इसके लिए लड़कियों पर बहुत कार्य किए गए हैं, लेकिन लड़कों पर अभी किया जाना बाकी है।
श्रद्धा जैसी घटना को रोकने के लिए बच्चों में विश्वास जगाना होगा
उन्होंने बताया कि श्रद्धा जैसी कोई दूसरी घटना ना हो इसके लिए जरूरी है कि पेरेंट्स अपने बच्चों में विश्वास जगाएं कि जिस तरह हम तुम्हारे साथ अच्छे कार्यों में खड़े रहते हैं, उसी तरह गलतियों में भी खड़े रहेंगे। विश्वास जगाने के लिए पैरेंट्स को हर परिस्थितियों में बच्चों के साथ उसी तरह खड़े रहना होगा जिस तरह अच्छे कार्य में खड़े रहते हैं। हम लोग जो बच्चों में अच्छाई और बुराई में भेद करते हैं "मम्माज गुड ब्वाय, मम्माज गुड गर्ल" यह एक मानसिक विकृति है। गुड ब्वाय, गुड गर्ल बनने में जिंदगी बीत जाती है और इसी चक्कर में पैरेंट्स और बच्चों में दूरियां भी बढ़ती जाती हैं।
श्रद्धा जैसी क्रूर हत्यारों की मनः स्थिति के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि साइकोलॉजी में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिसमें खुद को कष्ट देकर सुख का अनुभव होता है। पैरेंट्स यदि बचपन में ही इसका इलाज नहीं करवाते तो समय के साथ-साथ बीमारी बढ़ती जाती है और श्रद्धा जैसे क्रूर हत्या करते हुए आफताब जैसे लोगों का हाथ भी नहीं कांपता। इसके लिए जरूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ फ्रेंडली और अलर्ट रहें।
पैरेंटिंग एक कबड्डी का खेल
मनोविज्ञान में कहा जाता है कि पैरेंटिंग एक कबड्डी का खेल होता है । जिसमें बच्चों को अपने पाले में लाने के लिए उनके पाले में जाना पड़ता है। जब शाम को बच्चे पैरेंट्स के साथ बैठते हैं, तो उनके पास बात करने के लिए बहुत लिमिटेड टॉपिक होते हैं। यदि पैरेंट्स फ्रेंडली हैं, तो उनसे खुलकर बातें करेंगे। बच्चों के द्वारा बताए गए किसी नेगेटिव बात को लेकर पेरेंट्स के क्या रिएक्शन है, ये छोटी-छोटी बातें बच्चों में कॉन्फिडेंस विकसित करती हैं। पैरेंट्स में साहस होना चाहिए कि बच्चों की निगेटिव बात को भी हंस के सुने जिस तरह वे पॉजिटिव बात को सुनते हैं। इसके बाद बच्चों में कॉन्फिडेंस आता है कि वो अपने पिता या माता से कोई भी बात बिना हिचक के बता सके।
संस्कार मजबूत है, तो बच्चों पर सोशल मीडिया का प्रभाव नही पड़ता
उन्होंने कहा कि यदि घर के संस्कार मजबूत हैं, तो सोशल मीडिया बच्चों पर किसी भी प्रकार का बुरा प्रभाव नहीं डाल सकते। लेकिन अफसोस से कहना पड़ रहा है कि इस समय संस्कार तो गायब ही होते जा रहे हैं।