Shravasti News: सीता द्वार झील में स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने की सात कोसी परिक्रमा, आकर्षक झांकियां रहीं आकर्षण
Shravasti News: इसमें बड़ी संख्या महिला और पुरुष परिक्रमार्थी शामिल हुए। परिक्रमा में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान व जटायु की आकर्षक झांकियां आकर्षण का केंद्र रहीं। अक्षय नवमी पर तीन बजे से सात कोसी परिक्रमा शुरू हुई।
Shravasti News: यूपी के श्रावस्ती जिले के थाना इकौना क्षेत्र अन्तर्गत ग्राम टंड़वा महंथ के सीताद्वार झील में स्नान के साथ बीती रात से ही कार्तिक शुक्ल पक्ष अक्षय नवमी के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने सात कोसी( 21 किलोमीटर) की परिक्रमा की। इसमें बड़ी संख्या महिला और पुरुष परिक्रमार्थी शामिल हुए। परिक्रमा में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान व जटायु की आकर्षक झांकियां आकर्षण का केंद्र रहीं। अक्षय नवमी पर तीन बजे से सात कोसी परिक्रमा शुरू हुई। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने झील की परिक्रमा कर माता जानकी मंदिर में पूजन कर अपने व कुटुंब के कल्याण की कामना की।
इकौना के ग्राम टंड़वा महंथ स्थित सीताद्वार झील का अयोध्या से सीधा नाता है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्रीराम द्वारा माता सीता का परित्याग करने के बाद इसी स्थान पर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रुकी थीं। जहां लव-कुश का जन्म हुआ था। यहीं लव-कुश ने प्रभु श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा भी रोका था। ऐसे में जो लोग अयोध्या नहीं जा पाते हैं, वे सीताद्वार झील की सात कोसी परिक्रमा कर पुण्य के भागी बनते हैं। इसी मान्यता के चलते हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने रात करीब दो बजे पवित्र सीताद्वार झील में स्नान किया। इसके बाद तीन बजे से सात कोसी परिक्रमा शुरू हुई। जिसे पूरा करने के बाद श्रद्धालुओं ने झील के किनारे स्थित माता जानकी मंदिर में माथा टेका। जहां लोगों ने पूजन कर अपने व कुटुंब के कल्याण की कामना की।
मंदिर के महंत संतोष दास तिवारी महाराज बताते हैं कि सीताद्वार जहां अयोध्या से करीब 40 कोस दूर है। यहीं पर भगवान श्रीराम के कहने पर लक्ष्मण ने मां सीता को कजरी वन में छोड़ा था और बाल्मीकि जी ने मां सीता को अपनी कुटिया में आश्रय दिया था। जहां सीता माता के दो पुत्र हुए और इन दो पुत्रों ने भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ कर राम की सेना को पराजित भी किया था।सीताद्वार का पौराणिक महत्व है। सीताद्वार झील लगभग 900 एकड़ में फैली है और मां सीता तथा महर्षि बाल्मीकि का मंदिर इस स्थान की ऐतिहासिकता को सिद्ध करता है। बताया है कि मान्यता है कि सीता का परित्याग करते समय यहां पर माता सीता को प्यास लगी थी। प्यास लगने पर लक्ष्मण ने तीर से सरोवर का निर्माण कर दिया था। जो आज भी सीताद्वार झील के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर मां सीता को रोता सुनकर महर्षि बाल्मीकि ने अपनी कुटिया में रहने की जगह दी थी। बताया कि सीताद्वार में मां सीता और महर्षि बाल्मीकि का पौराणिक मंदिर है। मंदिर के करीब एक पेड़ है जिसे लोग कल्पवृक्ष कहते हैं। यहां आने वाले लोग इस पेड़ में धागा बांधते हैं। बताया जाता है कि धागा बांधने से मनोकामना पूरी होती है। इसके बाद फिर आकर धागा खोल कर मंदिर में प्रसाद चढ़ाते हैं। यहां पूरे साल लोग पूजा पाठ करने आते हैं।
महंत ने बताया कि अयोध्या का चौदह कोसी परिक्रमा का याचक को तभी पूर्ण लाभ मिलता है जब वह श्रावस्ती सीताद्वार झील का सात कोसी परिक्रमा पूर्ण करता है। इसके पीछे कारण है कि माता सीता भगवान राम की पत्नी थी और सनातन संस्कृति में याचक को तभी पूर्ण फल प्राप्त होता है जब वह पति पत्नी दोनों की परिक्रमा करे।बताया कि एक समय मान्यता रही है कि सीताद्वार के झील में लगातार एक महीने तक स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग दूर हो जाते हैं। इसलिए लोग नहाते भी हैं। कार्तिक महीने में एक माह तक प्रात: काल नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोग दूर होने की बात बताई जाती है। सोमवार व गुरुवार को मंदिर पर भीड़ रहती है। इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर पांच दिनों तक मेला रहता है। जिसमें प्रदेश के कई जिलों के साथ ही नेपाल से भी लोग मेला देखने आते हैं। हालांकि प्रशासनिक उदासीनता के चलते इस झील में आज भी कुछ स्थानों को छोड़कर गंदगी के पेड लगे हैं जिसकी सफाई न होने से आधे अधूरे तैयारी के बीच याचक को स्नान करना पड़ा है।बता दें सीताद्वार में आगामी 15 नवंबर से 18 नवम्बर तक कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है। जिसमें प्रदेश के जनपदों के साथ पास के नेपाल राष्ट्र से श्रद्धालु आते हैं। इस दौरान लाखों श्रद्धालु आते हैं और यह देवी पाटन मंडल का सबसे बड़ा मेला होता है।
दूसरी तरफ श्रावस्ती भाजपा विधायक पंडित रामफेरन पाण्डेय और पुलिस अधीक्षक घनश्याम चौरसिया ने मेले के आयोजन स्थल का निरीक्षण कर सुरक्षा प्रबंधों की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने मेला समिति के सदस्यों के साथ बैठक कर संपूर्ण तैयारियों का जायजा लिया। इस दौरान अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मेले के शांतिपूर्ण संचालन के लिए यातायात प्रबंधन, पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती तथा फायर सर्विस को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने सुनिश्चित किया कि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं और नागरिकों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।इस अवसर पर, एडीएम अमरेंद्र कुमार वर्मा, अपर पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार यादव, क्षेत्राधिकारी यातायात आलोक कुमार सिंह और प्रभारी निरीक्षक इकौना अश्वनी दुबे व अन्य पुलिसकर्मी भी उपस्थित रहे।
इसी तरह से नवमी पर्व पर 14 कोसी परिक्रमा के लिए रजिया ताल से जल लेकर हजारों श्रद्धालु सिरसिया के पांडवकालीन विभूतिनाथ मंदिर भी पहुंचते रहे हैं और आज रविवार वहां भगवान शिव को जलाभिषेक किया है। इस दौरान जंगल और पहाड़ियों के दुर्गम रास्ते बोल-बम, हर-हर महादेव के जयकारों से गूंजते रहे। कार्तिक मास के अक्षय नवमी परिक्रमा के तीन दिन पहले सिरसिया के राम दुलारे सोनी का परिवार मां पार्वती को विभूतिनाथ मंदिर से विदा कराकर अपने घर लाते हैं। इसके बाद पूजन अर्चन कर पूर्ण श्रृंगार से सुशोभित कर अक्षय नवमी को गाजे बाजे के साथ डोली में बिठाकर उन्हें विदा करते है और इसी के साथ 14 कोसी परिक्रमा शुरू होती है। रविवार को अक्षय नवमी की भोर से ही पांडवकालीन विभूतिनाथ मंदिर की परिक्रमा के लिए श्रद्धालुओं की आस्था उमड़ती रही है। विभूतिनाथ मंदिर के महंथ शिवनाथ गिरि की अगुवाई में सिरसिया से मां पार्वती जी की प्रतिमा को डोली में लेकर गाजे-बाजे के साथ हजारों श्रद्धालुओं ने परिक्रमा शुरू की। सिरसिया से बालापुर, तकिया होते हुए जंगल व पहाड़ी के दुर्गम रास्तों से श्रद्धालु रजिया ताल पहुंचे। यहां श्रद्धालुओं ने रजिया ताल से जल भरा और पुष्प, बेलपत्र, अच्छत, धतूर, भांग आदि लेकर विभूतिनाथ मंदिर के लिए रवाना हुए। 14 कोसी परिक्रमा पूरा करते हुए विभूतिनाथ मंदिर पहुंचकर भगवान शिव को जलाभिषेक किया। सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर सिरसिया प्रभारी निरीक्षक गौरव सिंह टीम के साथ तैनात रहे। इसी तरह सिरसिया विकास क्षेत्र के दुधवनिया कुट्टी से श्रद्धालुओं की ओर से पंचकोसी परिक्रमा यात्रा निकाली गई।