Shyama Prasad Mukherjee Birth Anniversary: श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कानपुर से रहा गहरा नाता

Shyama Prasad Mukherjee Birth Anniversary: श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना पूरा जीवन कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए दे दिया।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Dharmendra Singh
Update: 2021-07-06 10:39 GMT

श्यामा प्रसदा मुखर्जी (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Shyama Prasad Mukherjee Birth Anniversary: आज पूरा देश डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी जयंती पर याद कर रहा है। वह एक ऐसे राजनेता थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए दे दिया। उस दौर में जब काश्मीर में ''दो विधान, दो निशान, दो प्रधान'' की व्यवस्था थी तो इसके खिलाफ सबसे पहले कांग्रेस के अंदर विरोध का सबसे पहला स्वर डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ही उठा था। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के धारा 370 हटाने का सपना पूरा किया तो उसके पीछे डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ ही कानपुर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। यहीं पर उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाने का संकल्प लिया था जिसके बाद उनका पूरे देश में आंदोलन छा गया। मुखर्जी का कानपुर से गहरा नाता रहा है।

दरअसल जब कांग्रेस से इस्तीफा देकर डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की तो उसके पीछे उनका उदेश्य कश्मीर में धारा 370 हटाने को लेकर था। डाॅ मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना ही कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए ही की थी। कानपुर के फूलबाग मैदान में जनसंघ का पहले सम्मेलन में इस बात की शपथ ली गयी थी कि कश्मीर से धारा 370 हटाकर ही दम लेंगे। इस अधिवेशन में बलराज मधोक, नानाजी देशमुख, अटल विहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, लालकृष्ण आडवाणी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी शामिल हुए थे।

कानपुर के फूलबाग मैदान की ऐतहासिक धरती पर हुए इस अधिवेशन में कहा गया था कि इस देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं होने चाहिये। तत्कालीन अध्यक्ष डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को आजाद कराने का संकल्प किया था। अधिवेशन में डाॅ मुखर्जी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू की नीतियों की जमकर बखिया उखाड़ी थी। अधिवेशन में डॉ. मुखर्जी ने कहा था कि नेहरू व शेख अब्दुल्ला जम्मू में भयंकर दमन की नीति चला रहे हैं, किंतु वो लोग इतना जान लें कि जितना दमन होगा, परिणाम उतने घातक होंगे।
उन्होंने कश्मीर से प्रजा परिषद के अध्यक्ष पंडित प्रेमनाथ डोगरा को भी बुलाया था। तीन दिवसीय अधिवेशन 29 से 31 दिसंबर 1952 तक चला जिस बरगद के पेड़ के नीचे यह अधिवेशन हुआ था वह पेड़ अभी कुछ साल पहले ही बूढ़ा होकर गिर चुका है। कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठाने के बाद जब डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कानपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे थेंतो उनके खूब जयकारे लगे थे। उन्होंने अपने कानपुर के अनुभवों का अपने जीवन में कई बार जिक्र किया।















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