इतिहास की निशानी: इस किले में छिपे हैं कई राज और रहस्यमयी कहानियां
इस किले में पौराणिक कथा में इस स्थान का जिक्र मिलता है। जैसे प्राचीन साहित्य में चरणाद्रि, नैनागढ़ आदि नामों से मिलता है। यहां एक बहुत सुंदर आकर्षण है गंगा-तटवर्ती व पहाड़ी भव्य किला, जिसे राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तृहरि के लिए बनवाया था।
नई दिल्ली : इतिहास के चुनार किले का तो नाम कई बार आपने सुना होगा। गौरवमयी इतिहास का साक्षी रहा है ये चुनार का किला। ये किला मीरजापुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर गंगा तट पर स्थित है। मीरजापुर के टैकोर इलाके में स्थित चुनार किला आकर्षण का उत्कृष्ट केंद्र है।
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इस किले में पौराणिक कथा में इस स्थान का जिक्र मिलता है। जैसे प्राचीन साहित्य में चरणाद्रि, नैनागढ़ आदि नामों से मिलता है। यहां एक बहुत सुंदर आकर्षण है गंगा-तटवर्ती व पहाड़ी भव्य किला, जिसे राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तृहरि के लिए बनवाया था।
ये है रोचक बात
चुनार के किले के अंदर 52 खंभों की छतरी एवं सूर्य घड़ी भी बनी हुई है। जलवायु की दृष्टि से चुनार एक आदर्श स्थान है। पौराणिक कहानियों और बड़े-बुजुर्गों का ऐसा कहना है कि जब भी भयंकर बाढ़ का सामना हुआ, तब इसी किले में लोगों ने शरण ली है।
इसके साथ ही यह बेहद आश्चर्यजनक बात है कि गंगा घाट से लगे होने के कारण गंगा का पानी दुर्ग से टकराकर उत्तरामुखी हो जाता है। इसके बाद गंगा सीधे काशी की ओर चली जाती है।
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पुराणों में कहते हैं यह दुर्ग हजारों वर्ष पुराना है। बाद में इस दुर्ग का जीर्णोद्धार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने कराया था। चुनार का ऐतिहासिक किला नगर की सुरक्षा का दायित्व निभाने के साथ ही नगर के अस्तित्व को भी बचाये हुए है।
पुराण एवं प्राचीनतम इतिहास में वर्णित
चुनार तहसील क्षेत्र में चुनार गढ़ के किले का संदर्भ पुराण एवं प्राचीनतम इतिहास में वर्णित राजा भर्तृहरि (बोलचाल में भरथरी) से है। कालांतर में इसका वर्णन अकबर कालीन इतिहासकार शेख अबुल फजल के आइने अकबरी में भी मिलता है।
ये भी माना जाता है कि देवकीनंदन खत्री ने अपने लोकप्रिय उपन्यास 'चंद्रकांता' में रहस्य-रोमांच-ऐयारी की पृष्ठभूमि इन इलाकों के अनुभवों से ओत-प्रोत होकर दी थी।
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