इस जवान को जंग में जाने से पहले ही हो गया था अपनी मौत का आभास, ऐसे हुआ था शहीद
लखनऊ: पूरे देश में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा। इस खास मौक पर newstrack.com बताने जा रहा है शहीद आर्मी मैन टिंकू कुमार के बारे में। शहीद टिंकू अपनी मां से वादा करके गया था कि वह वापस आकर उन्हें अमरनाथ यात्रा पर ले जाएगा। लेकिन वह घर नहीं आया और जब आया तो तिरंगे में लिपटकर। उन्हें अपनी मौत का काफी समय पहले ही आभास हो गया था। ये बात उन्होंने अपने दोस्तों को भी बताई थी। टिंकू के घरवालों की आंखे आज भी उन्हें याद करके नम हो जाती है।
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बचपन में देखा था ये सपना
पिता सुंदर सिंह बताते है "टिंकू कुमार का जन्म 22 दिसम्बर 1982 को पुणे के मिलिट्री हॉस्पिटल में हुआ था। उसकी शुरूआती पढ़ाई लखनऊ के सेंट्रल पब्लिक स्कूल में हुई थी।
उसके बाद इंटर तक की पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय में हुई थी। वह बचपन से ही आर्मी में जाना चाहता था। मैं आर्मी में हवलदार था। मुझें देखकर उसका मन भी आर्मी में जाने का करता था।
वह जब मुझसे आर्मी में जाने की बात करता था, तब मैं हसंकर उसकी बात को टाल दिया करता था। घर में दो भाई और एक बहन थे। टिंकू उनमें सबसे छोटा था”।
मां सेना की नौकरी से नहीं थी खुश
टिंकू दौड़ में काफी अच्छा था। एक बार उसने आर्मी के अफसरों के सामने दौड़ में काफी अच्छा परफार्म किया था। तब आर्मी के अधिकारियों ने बोला था कि ये लड़का दौड़ में काफी अच्छा है। देखना एक दिन आर्मी में जरुर जाएगा।
साल 2000 में टिंकू ने सेना में भर्ती के लिए एग्जाम दिया था और 17 साल की उम्र में आर्मी में रायफलमैन की नौकरी ज्वाइन की थी। आर्मी में नौकरी पाकर उस टाइम वह बेहद खुश था। लेकिन उसकी मां नौकरी से खुश नहीं थी।
वह चाहती थी बेटा अभी आगे और पढ़ाई करे। 2001 में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसकी सबसे पहले पोस्टिंग जम्मू के कुपवाड़ा इलाके में हुई थी। नौकरी ज्वाइन करने के बाद बीच में एक बार वह छुट्टी पर घर भी आया था।
जंग में जाने से पहले दोस्तों से कही थी ये बात
मां सुंदरी देवी बताती है "टिंकू को पहले ही अनहोनी के बारे में एहसास हो गया था। जब वह घर से छुट्टियां बिताकर ड्यूटी पर वापस लौटने वाला था। तब उसने अपने दोस्तों से एक बात कही थी।
उसने कहा था कि ऐसा लगता है मैं जिस जगह पर जा रहा हूं। वहां से मेरा वापस लौटना शायद मुश्किल होगा। इसलिए तुम लोग मेरी मां और घरवालों सभी का बराबर ख्याल रखना। ये बात कहकर टिंकू वापस अपनी ड्यूटी पर कुपवाड़ा लौट गया।
लेकिन तब उसके दोस्तों ने हंसकर उसकी बात टाल दी थी। उसने तब मुझसे ये वादा किया था कि मैं अगर वापस आया तो अमरनाथ की यात्रा पर चलूंगा।
किसी को भी इस बात का एहसास नहीं था कि ये जो कहकर रहा है, वही कल सच होने वाला है। सभी को तब उसकी बातें हंसी मजाक लगती थी।
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ऐसे हुए थे शहीद
एक दिन उसके कैंप पर कुछ आतंकवादियों ने अचानक से हमला बोल दिया। तब उन्हें हमले के बारे में पहले से तनिक भी आभास न था। दोनों तरफ से तब खूब गोलाबारी हुई थी। मेरे बेटे ने दुश्मनों का बहादुरी से सामना किया था।
उस दौरान ही एक गोली मेरे बेटे को आकर लगी थी। गोली लगने के बाद भी वह दुश्मनों से लड़ता रहा। बाद में जंग लड़ते हुए 18 अक्टूबर 2001 को वह शहीद हो गया।
उस टाइम नवरात्र का महीना चल रहा था। मैं लखनऊ में थी और किसी काम से बाहर गई हुई थी। जब वापस लौट कर आई तो देखा मेरे घर के बाहर सेना के अफसरों की भारी भीड़ जमा थी। सेना के अधिकारियों ने मेरे एक जानने वाले को बेटे के शहीद होने के बारे में बताया। तब जाकर टिंकू के बारे में पता चला।