Lucknow News: ‘जो मानवता की राह दिखाए, वही असली संत’, साहित्यकारों के समागम में हुई ‘संत साहित्य’ पर चर्चा

Lucknow News: संत साहित्य की शुरुजात 11वीं शताब्दी से मानी जाती है। नाथ सम्प्रदायों ने संत साहित्य को आगे बढ़ाने में बढ़ी भूमिका निभाई।

Update: 2023-07-26 14:28 GMT
आचार्य परशुराम चतुर्वेदी स्मृति समारोह के अंतर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित अतिथि।   Pic: Newstrack Media

Lucknow News: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे यानी आखिरी दिन कई बड़े साहित्यकारों का जमघट लगा। जिन्होंने ‘हिन्दीतर भाषा भाषी क्षेत्रों में संत परम्परा विषय’ पर अपने विचार व्यक्त किए। इसी के साथ आचार्य परशुराम चतुर्वेदी स्मृति समारोह का समापन किया गया।

इन विशिष्ट साहित्यकारों ने की शिरकत

(आचार्य परशुराम चतुर्वेदी स्मृति समारोह के अंतर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित अतिथि। Pic: Newstrack Media)

आचार्य परशुराम चतुर्वेदी स्मृति समारोह के अंतर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन के सत्र का आयोजन हिंदी भवन के निराला सभागार में हुआ। जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. सुमनलता रुद्रावझला, डॉ. जाशभाई पटेल, डॉ. सीमा बंदोपाध्याय और डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने हिस्सा लिया। जिनका उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक उत्तरीय आरपी सिंह ने स्वागत किया। इसके बाद साहित्यकारों ने विषय पर अपने उद्गार व्यक्त किए।

‘नाथ सम्प्रदायों ने संत साहित्य को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाई’

नागपुर से आए डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने कहा कि भारत संतों की धरती है। संत साहित्य की व्यापकता उसकी सहज मानवता है। संत साहित्य की शुरुआत तनाव व संघर्ष से होती है। संत साहित्य की शुरुजात 11वीं, 12वीं शताब्दी से मानी जाती है। नाथ सम्प्रदायों ने संत साहित्य को आगे बढ़ाने में बढ़ी भूमिका निभाई। संत नामदेव उसे संत मानते हैं, जो सभी प्राणियों में परमात्मा को देखता है, जिसकी वाणी सदा भगवान का नाम लेती रहती है। संत समाज को संकट से उबारने का कार्य करता है। सत सत्य का आराधक हुआ करते हैं।

बांग्ला संत साहित्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने का करता है कार्य!

राष्ट्रीय संगोष्ठी में कोलकाता से आईं डॉ सोमा बन्द्योपाध्याय ने कहा कि मनुष्य होने के लिए उसमें मनुष्यता का गुण होना चाहिए। मानवता को जो राह दिखाये वही संत होता है। बांग्ला संत साहित्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने का कार्य करता है। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु का स्थान संतों में प्रमुखता से लिया जाता है। वैष्णव धर्म में राधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम की व्याख्या की गई है। चंडीदास ने अपने साहित्य में रावा के चरित्र का व उनका श्रीकृष्ण के प्रति प्रेमाभाव का सुन्दर चित्रण किया है।

'हर कवि संत नहीं होता, लेकिन संत में अवश्य कवि के गुण मिलते हैं'

संगोष्ठी में गांधीनगर से आए डॉ. जशभाई पटेल ने गुजराती साहित्य में संत परंपरा पर बोलते हुए कहा कि संत किसी की निन्दा नहीं करता है। नरसी मेहता कृष्ण भक्ति में हमेशा लीन रहते थे। कृष्ण भक्ति काव्य में नरसी मेहता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जशभाई पटेल ने नरसी मेहता की रचित संतवाणी का भी पाठ किया। गुजरात प्रदेश संत कवियों से भरा पड़ा है। हैदराबाद से पधारी डॉ. सुमनलता रुद्रावझला ने तेलगु साहित्य में संत साहित्य परंपरा पर बोलते हुए कहा कि संत वह होता है, जो अपने वाणी को अनहद नाद तक ले जाता है। एकोअहम से अहम ब्रहारिम तक स्वयं को ले जाता है। हर कवि संत नहीं होता है, लेकिन हर संत हमेशा कवि होता है। रामानुचार्य जी का नाम संतों में प्रमुखता से लिया जाता है। भारतीय संस्कृति मानवतावादी दृष्टिकोणों से भरी है सत कवि अपने नाद को बहुत अच्छी से समझता है।

मिथिला संत परम्परा में सूफी परम्परा भी सम्मिलित

अपने व्याख्यान में हैदराबाद से आईं डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि मिथिला में ज्ञान संवाद-विवाद की परम्परा बढ़ी प्राचीन रही है। ज्ञान व भक्ति की विचारधारा का जन्म मिथिला प्रदेश से होता हुआ आगे बढ़ा है। मिथिला संत परम्परा में सूफी परम्परा भी सम्मिलित होती गई। संत साहित्य में साधना प्रधान रही है। विद्यापति की रचनाएं प्रेम से ओत-प्रोत है। उनकी रचनाएं प्रेम की पराकाष्ठा को प्राप्त करती है। विद्यापति का काव्य स्वरूप भक्तमय है। संत साहित्य में ज्ञान व भक्ति का सम्मिश्रण है।

संगीतमय प्रस्तुति से बांधा समां

(राष्ट्रीय संगोष्ठी में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते अतिथि व संगतकार। Pic: Newstrack Media)

इस अवसर पर प्रदीप अली एवं आकांक्षा सिंह द्वारा तुलसीदास, कबीरदास, रैदास, मीराबाई व नरसी मेहता की कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति की गई। साथ में तबलावादक नितीश भारती, गिटार वादक मनीष कुमार द्वारा ‘गणेश वंदना’, पायो जी मैंने राम..., ढुमक चलत राम चंद्र..., वैष्णव जन..., सहित अन्य प्रस्तुतियां दी गईं। जिन्होंने अतिथियों का मन मोह लिया।

कार्यक्रम में इनकी रही उपस्थिति

राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन उप्र हिन्दी संस्थान की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे ने किया। इस अवसर पर समस्त साहित्यकारों, विद्वतजनों एवं मीडियाकर्मियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में माननीय उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अस्ति चतुर्वेदी व अधिवक्ताओं में प्रशान्त कुमार श्रीवास्तव, रूपेश कुमार कसौधन, धर्मेन्द्र कुमार दीक्षित आदि उपस्थित रहे।

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