नागरिकता कानून से खुश हैं ये लोग

बांग्लादेश के पटुयाखाली से यहां आई पूजा मंडल का परिवार बीते चार दशकों से यहां रह रहा हैं। पूजा नागरिकता कानून के बारे में पूरी जानकारी तो नहीं रखतीं, लेकिन इसे अच्छा मानती हैं। उनका कहना है कि हिंदू हो या मुसलमान जो भी इस देश में लम्बे समय से रह रहा है, उसे बाहर नहीं करना चाहिए।

Update:2019-12-19 20:23 IST

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में एक बड़ी आबादी ऐसी भी है जिसे यही नहीं मालूम कि वह भारत की नागरिक हैं भी या नहीं। दशकों पहले पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से विस्थापित हुए इन लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र व आधार कार्ड तक सभी कुछ है, लेकिन फिर भी नागरिकता संशोधन कानून बनने और उसके हिंसक विरोध से सभी सहमे हुए हैं। इन लोगों में इस बात की तो खुशी है कि भारत सरकार विभिन्न देशों में उत्पीड़त हो रहे हिंदू, बौद्ध, सिख व ईसाई लोगों को नागरिकता दे रही है, लेकिन इनके दिल में यह भी आशंका है कि कही उन्हें भी देश से बाहर न कर दिया जाए।

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नए कानून को अच्छा बताया

बांग्लादेश के पटुयाखाली से यहां आई पूजा मंडल का परिवार बीते चार दशकों से यहां रह रहा हैं। पूजा नागरिकता कानून के बारे में पूरी जानकारी तो नहीं रखतीं, लेकिन इसे अच्छा मानती हैं। उनका कहना है कि हिंदू हो या मुसलमान जो भी इस देश में लम्बे समय से रह रहा है, उसे बाहर नहीं करना चाहिए। वैसे पूजा हिंसा और दंगे से काफी डरी हुई हैं और कहती हैं कि दंगा नहीं होना चाहिए वरना गेहूं के साथ घुन भी पिस जाएगा।

मोदी के कदम को सही बताया

कोमिला जिले से करीब आधी सदी पहले हिंदुस्तान आए बिरजू दास नागरिकता कानून को पूरी तरह से जायज ठहराते हैं। वे कहते हैं कि जब हमारे हिंदू भाई-बहन दूसरे देशों में सुरक्षित नहीं हैं और मोदी सरकार उन्हें यहां शरण देने को तैयार है तो इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। दूसरे देशों में सताए जा रहे ये लोग आखिर कहां जाएंगे।

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जल्दबाजी वाला कदम

बांग्लादेश के फेनी जिले से आए गोपी दास नागरिकता कानून को सरकार द्वारा जल्दबाजी में उठाया गया कदम मानते हैं। उनका मानना है कि सरकार को पहले इन लोगों के रहने और रोजगार आदि का प्रबंध करना चाहिए। इसके बाद ही इन्हें यहां बुलाना चाहिए। वे कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी हमें यहां बसाया था, लेकिन उन्होंने इसके लिए पहले पूरी तैयारी की थी।

बांग्लादेश में प्रताडि़त किया गया

ढाका से आईं ओनिमा दास कहती हैं कि मुस्लिमों यहां से चले जाना चाहिए। उनका कहना है कि उन्होंने अपने बड़े-बुजुर्गों से उस समय की कहानी सुनी है कि कैसे बांग्लादेश में उन्हें प्रताडि़त किया गया और उन्हें वहां से अपना सबकुछ छोडक़र भागने पर मजबूर होना पड़ा। वह कहती हैं कि मुस्लिमों ने जब हम पर कोई दया नहीं की तो हम क्यों करें।

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कानून देश के लिए अच्छा

बांग्लादेश के खुलना क्षेत्र से यहां पहुंचे डे परिवार के प्रदीप डे कहते हैं कि यह कानून हिंदुस्तान के लिहाज से बहुत अच्छा है। वह कहते हैं कि जो मुसलमान यहां रह रहे हैं उन्हें यहां रहने दिया जाए, क्योंकि उन्होंने उस समय इस देश को चुना था जब उनके पास इस्लामिक देश बनने जा रहे पाकिस्तान में रहने का मौका था। लेकिन अब जो घुसपैठ करके यहां आ रहे हैं उन्हें हर हाल में बाहर निकालना चाहिए। किसी भी देश में घुसपैठ करना कानूनी अपराध होता है। इस कानून पर हो रहे हंगामे और हिंसा पर वह कहते हैं कि यह तो नहीं मालूम कि इन्हें कौन भडक़ा रहा है, लेकिन यह तय है कि इसके पीछे केवल राजनीति है।

हिंसा फैलाने वालों के चेहरे साफ

खुलना क्षेत्र के ही अभिजीत दास कहते हैं कि इस कानून को लेकर तमाम विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए विरोध में किसी भी तरह की हिंसा की कोई खबर नहीं सुनने को मिली। इससे साफ है कि आंदोलनों को हिंसक कौन बना रहा है और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर कौन दहशत पैदा करना चाहता है।

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