लखनऊ /पटना : 'अतुल्य भारत' योजना के तहत चयनित गांव अब भी पर्यटकों के लिए टकटकी बांधे हैं। पर्यटन मंत्रालय ने साल 2009 में अतुल्य भारत ब्रांड के तहत ग्रामीण पर्यटन योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत 2011 तक विभिन्न राज्यों के कुल 172 गांवों को 'पर्यटन ग्राम' का तमगा दिया गया। इसके अलावा 52 कमीशंड साइट्स को भी चिह्नित कर योजना का हिस्सा बनाया गया। लेकिन इन गांवों तक पर्यटक नहीं पहुंचे।
क्या कह रही है वेबसाइट
पर्यटन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट- tourism.gov.in/ rural-tourism आज भी कह रही है कि 'पर्यटन की क्षमता वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास की मौजूदा योजना के तहत सहायता दी जा रही है। इसका उद्देश्य ग्रामीण जीवन, कला, संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करना है ताकि इससे स्थानीय ग्रामीण समुदायों को आर्थिक लाभ दिलाया जा सके और पलायन को रोका जा सके।'
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ग्रामीण पर्यटन विकास योजना के तहत चयनित 52 गांवों में शामिल है बिहार का पर्यटन ग्राम नेपुरा, जिसे सिल्क नगरी के रूप में जाना जाता है और यूपी के सहारनपुर का भागूवाला गांव, जो काष्ठकला के लिए मशहूर है। लेकिन इन दोनों गांवों में सरकार की अच्छी योजना का बुरा हाल है। यहां बुनकर और काष्ठकार पर्यटकों की राह ही तकते रहते हैं।
नालंदा जिले में राजगीर की खूबसूरत वादियों-पहाडयि़ों में घूमने और नालंदा की ऐतिहासिक विरासतों का दर्शन करने को आने वाले पर्यटक नेपुरा में रुक कर मनपसंद रेशमी वस्त्रों को खरीदना चाहते हैं, परंतु यहां खाने और ठहरने के इंतजाम न होने से वे घंटे-दो घंटे में खरीदारी कर लौट जाते हैं। यह हालात तब है, जब गांव को 2009 में पर्यटन मंत्रालय ने ग्रामीण पर्यटन विकास योजना के तहत विकसित करने को चुन रखा है। इस योजना के तहत विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण परिवार में एक रात ठहरने और भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था विकसित की जानी थी। बुनकर बहुल इस गांव में विकास के नाम पर 2011 में 30 लाख की राशि से विशालकाय बुनकर भवन का निर्माण कराया गया तो लगा कि बुनकरों के दिन फिरेंगे, लेकिन अब तो ये मवेशियों का तबेला बन कर रह गया है।
अब तो बहुत घट गए सैलानी
नेपुरा में श्रीलंका, चीन, उत्तर एवं दक्षिण कोरिया, ताइवान, अमेरिका तथा दूसरे बुद्ध देशों के सैलानियों की पहले खूब आमद होती थी। गांव के एक बुनकर चमरू प्रसाद ने बताया कि पिछले दो-तीन साल से पर्यटकों की संख्या में बहुत कमी आई है। वर्ष में अब दो-तीन बार ही सैलानी आते हैं। पहले बड़ी संख्या में आकर कपड़े की खरीदारी करते थे, जिसका हमें प्रत्यक्ष लाभ मिलता था।
भागूवाला को भूल गया 'भुलक्कड़' निजाम
काष्ठ कला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध यूपी के सहारनपुर के भागूवाला गांव को नौ साल पहले पर्यटन गांव के रूप में चयनित किया तो लोगों की उम्मीदों को पंख लगे थे, लेकिन इसके बाद हाकिम और हुक्मरान, दोनों ही इसे भूल गए। न गांव बदला न गांव वालों की जिंदगी का ढर्रा। भागूवाला के बुजुर्ग टीकाराम सैनी ने बताया कि गांव के चयन की घोषणा के बाद पर्यटन विभाग के कुछ अफसर गांव में आए थे। उन्होंने एक दो दिन गांव का सर्वे किया और ग्रामीणों को बताया कि गांव में पार्क आदि बनेंगे। अन्य विकास कार्य भी होंगे, लेकिन इसके बाद कोई अधिकारी गांव में नहीं लौटा।
संयुक्त पर्यटन निदेशक, उत्तर प्रदेश पीके सिंह ने बताया कि इस योजना के तहत केंद्र और प्रदेश सरकार को अपना-अपना अंशदान देना था। केंद्र ने अपने हिस्से का अंशदान दिया, पर प्रदेश सरकार ने नहीं। ऐसे में काम नहीं शुरू हो सका।