Birsa Munda birth Anniversary: सनातन संस्कृति का मूल है 'जनजातीय संस्कृति'- डॉ. मनोज कांत
Birsa Munda birth Anniversary: बिरसा मुंडा की जयंती पर डॉ. मनोज कांत ने कहा, 'जनजातीय संस्कृति' ही सनातन संस्कृति का मूल है। उन्होंने जनजातियों की परंपरा को निराला बताया।
Birsa Munda birth Anniversary : जनजातीय संस्कृति भारतीय संस्कृति का मूल है, हम सभी विकास के अनुक्रम में विभिन्न भौतिक आयामों से आबद्ध होकर अपने मूल से भटक कर अपने वर्तमान स्वरूप में आ गए हैं जिसे हम आधुनिकता कहते हैं। ये बातें बप्पा श्री नारायण वोकेशनल स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित जनजाति गौरव दिवस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनोज कांत ने कही।
विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान एवं शिक्षा शास्त्र विभाग बप्पा श्री नारायण वोकेशनल स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में भगवान 'बिरसा मुंडा जयंती' के अवसर पर "जनजातीय गौरव दिवस" का आयोजन किया गया। आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं संघ के मुखपत्र राष्ट्र धर्म के निदेशक डॉ. मनोज कांत, विशिष्ट वक्ता के रूप में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सतीश पाल एवं डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो। संजय सिंह सम्मिलित हुए।
'धरती काबा' को नमन
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 से बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। शिक्षा मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों में यह दिवस पूर्ण उत्साह के साथ मनाने का निर्णय लिया गया। बीएसएनवी पीजी कॉलेज लखनऊ में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती पूजन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन कर रहे विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के प्रदेश सचिव डॉ मंजुल त्रिवेदी ने कहा, 'एक राष्ट्र के रूप में भारत के विकास यात्रा में विभिन्न समुदाय संस्कृतियों के महापुरुषों का अनन्य योगदान रहा है "धरती काबा" भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना कर देश आज उनके योगदान को याद करते हुए संपूर्ण जनजातीय समाज को आदर दे रहा है। विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के संयोजक प्रोफेसर जयशंकर ने मां सरस्वती जी की आराधना करते हुए भगवान बिरसा मुंडा को प्रणाम करते हुए कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया । सभी का स्वागत करते हुए इस विमर्श को महत्वपूर्ण बताया।
'जनजातियों का अस्तित्व दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में रहा है'
विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित हुए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सतीश पाल ने विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि, 'जनजातियों का अस्तित्व विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में रहा है जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति रही है। इस दौरान उन्होंने भारत के विभिन्न जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए उनके संरक्षण एवं संवर्धन की आशा व्यक्त की।'
डॉ. मनोज कांत- बिरसा मुंडा ने धर्म परिवर्तन को अपराध बताया
जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए डॉ मनोज कांत ने बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाए जाने पर हर्ष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, कि बिरसा मुंडा को शिक्षित करने के लिए उनके माता-पिता को अपना उनका धर्म परिवर्तित करना पड़ा। बिरसा मुंडा ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद असंतोष से अंग्रेजी विद्यालय से पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध एक मुहिम छेड़ दी। बिरसा मुंडा ने कहा था कि धर्म परिवर्तन अपराध है। चर्च वर्क चलाने वाले लोग हमें बदलना चाहते हैं हमें किसी भी प्रकार से हिंसा का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए तथा अपनी परंपराओं को संरक्षित करना चाहिए प्रकृति पूजा को भी उन्होंने विशेष प्रोत्साहन दिया इनकी लोकप्रियता से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें गिरफ्तार भी कर लिया था।'
डॉ. मनोज कांत ने बताया, कि जनजातियों की संस्कृति हमारी मूल संस्कृति रही है विकास के विभिन्न पड़ाव पर हम भौतिक समृद्धि प्राप्त करते चले गए और आज एक तथाकथित आधुनिक स्वरूप में स्वयं को परिमार्जित मानने लगे हैं जबकि यह विरोधाभास की स्थिति है।
मनोज कांत- जनजातियों की परंपरा निराली
जनजातीय समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं को बताते हुए मनोज कांत ने कहा, विभिन्न जनजातियों में आज भी किसी भटके राही के लिए भोजन रखने की परंपरा है जो कि अनुकरणीय है। जनजातियों के लिए प्रयुक्त होने वाले विभिन्न शब्द आदिवासी वनवासी आज के संदर्भ में अपने विचार देते हुए मनोज कांत ने कहा, कि या पश्चिम का षड्यंत्र है कि उन्हें यहां का मूल निवासी तथा अन्य को बाहर से आया हुआ बताकर यहां सामाजिक विद्वेष पैदा करें। जनजातीय समाज की विशिष्ट सांस्कृतिक विशेषताओं को बताते हुए उन्होंने "परंपरा" शब्द का अद्वितीय विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए इसे परा-अपरा शब्द के रूप में आधुनिकता को विश्लेषित करते हुए कहा कि परंपरा में आधुनिकता स्वयंमेव सम्मिलित है।
कार्यक्रम को इन्होंने भी संबोधित किया
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर संजय सिंह ने जनजातीय समाज की जनांकिकी पर आंकड़े प्रस्तुत करते हुए इनके विकास क्रम का रेखांकन किया। इसके साथ ही उन्होंने जनजातीय सामासिक संस्कृति के संरक्षण हेतु विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों का भी उल्लेख किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षा शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल कुमार पांडेय ने कहा कि भारत की मूल संस्कृति को नष्ट करने के लिए अंग्रेजों ने अनेक प्रयास किए लेकिन फिर भी जनजातीय समाज अपनी मौलिकता को कायम रखते हुए आज भी अपनी गौरवशाली परंपरा का निर्वहन कर रहा है। डॉ. पांडे ने धर्मपाल जी द्वारा लिखित पुस्तक ब्यूटीफुल ट्री का इस संदर्भ में उदाहरण देते हुए बताया कि हम क्या थे और कहां आ गए? इसे जानना है तो हमें यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षक प्रो० जय प्रताप सिंह, प्रो गीता रानी, प्रो सी एल बाजपेयी, प्रो रश्मि गुप्ता, प्रो वंदना कुमार, प्रो राजीव दीक्षित, डॉ प्रणव कुमार मिश्र, डॉ उमेश सिंह, डॉ प्रमिला पांडेय, डॉ मोहन लाल मौर्य, डॉ संजय शुक्ला , डॉ के सी चौरसिया, आदि सहित विभिन्न शिक्षक एवं विद्यार्थी गण उपस्थित रहे।