Siddharthnagar: शिया बाहुल्य कस्बा हल्लौर का मोहर्रम की अपनी अलग पहचान, सवा दो माह तक रहता है शोक का माहौल
Siddharthnagar: शिया बाहुल्य कस्बा हल्लौर का मोहर्रम अपनी अलग पहचान रखता है। मोहर्रम का चांद दिखने के बाद से सवा दो महीना शोक के रूप में मनाया जाता है।
Siddharthnagar: मोहर्रम अपने देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में मनाया जाता है। मगर शिया बाहुल्य कस्बा हल्लौर का मोहर्रम (Muharram 2022) अपनी अलग पहचान रखता है। मोहर्रम (Muharram 2022) का चांद दिखने के बाद से सवा दो महीना शोक के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान करीब दस हजार की आबादी वाले इस कस्बे में सिर्फ गम का माहौल ही छाया रहता है। इस बार 31 जुलाई से मोहर्रम (Muharram 2022) प्रारंभ हुआ है 9 अगस्त को दसवीं मोहर्रम (Muharram 2022) मनाया जाएगा।
मोहर्रम पर नजर डालें, तो यहां ताजिया का निर्माण पूरे वर्ष चलता है। यहां से दूर दराज के लोग ताजिया ले जाकर अपनी मनौती पूरी करते है। यहां का ऐतिहासिक बीस फीट ऊंचा ताज़िया बकरीद पर्व (Bakrid festival) से पहले ही बनना शुरू हो जाता है। कस्बे में चांद रात से ही मजलिस का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है, जो पूरे सवा दो महीने तक चलता है।
- सात मोहर्रम को प्रात: हल्लौर की दो प्रसिद्ध अंजुमनें क्रमश: अंजुमन गुलदस्ता मातम व अंजुमन फरोग मातम के बैनर तले निकलने वाला जुलूस पूरे कस्बे में दिन भर घूमता है। रात में इमाम हसन के बेटे हजरत कासिम की याद में मेंहदी का जुलूस निकलता है।
- आठ मोहर्रम को दरगाह हजरत अब्बास से अलम के साथ मातमी जुलूस निकलता है, तो रात में ताबूत का जुलूस।
- नौ मोहर्रम की रात होते ही सभी घरों पर छोटे-बड़े ताजिये रखे जाते हैं। इमाम बाड़े की चौक पर रखा जाने वाला ताजिया पूरे क्षेत्र के श्रद्धालुओं लिए आकर्षक का केंद्र रहता है। सुबह की अजान के बाद आग पर मातम होता है, जलते हुए अंगारों पर मातमदार नंगे पैर या हुसैन-या हुसैन की सदाओं के बीच मातम करते हैं।
- इसके उपरांत अलम, जुलजनाह की शबीह के साथ जुलूस निकलता है जो कस्बे में गश्त करता है। सायं को लोग अपने-अपने ताजियों को कस्बे के पश्चिम स्थित कर्बला ले जाते हैं और उसको दफन कर देते हैं।
40 दिन बाद इमाम का चेहल्लुम
शाम को शामें गरीबां का कार्यक्रम होता है। चालीस दिन बाद इमाम साहब का चेहलुम मनाया जाता है जिसमें अमारी की शबीह निकाली जाती है। इस दरमियान कस्बे में ऐसी मजलिसों का भी आयोजन भी होता है जिसको खिताब करने मुल्क के मशहूर जाकिर व धार्मिक उलेमा पहुंचते हैं। सवा दो महीने के आखिरी दिन यानी आठ रबीअव्वल को अय्यामे अज़ा का अंतिम दिन मनाया जाता है। जिसमें अमारी, जुलजनाह की शबीह के साथ मातमी जुलूस निकाला जाता है। इस तारीख के बाद ही यहां शादी विवाह आदि खुशी के कार्यक्रम शुरू होते हैं। क्योंकि पूरे सवा दो महीने तक यहां किसी प्रकार शादी-विवाह अथवा खुशी वाला कोई भी कार्यक्रम नहीं होता है।