Unnao News: 'या गौस अलमदद' के नारों से गुंजा शहर, सुरक्षा के बीच शान-ओ-शौकत से निकला जुलूस-ए-गौसिया

Unnao News: मंगलवार को जिले भर में जुलूस-ए-गौसिया का जुलूस बड़ी शानो-शौकत के साथ निकाला गया। जुलूस के दौरान दी गई तकरीरों में गौस-ए-आजम की विलादत पर रोशनी डाली गई।

Update:2024-10-15 23:09 IST

Unnao News (Pic- Newstrack)

Unnao News: हजरत सैयद अब्दुल कादिर जिलानी सरकार गौस-ए-आजम की याद में मंगलवार को जिले भर में जुलूस-ए-गौसिया का जुलूस बड़ी शानो-शौकत के साथ निकाला गया। जुलूस के दौरान दी गई तकरीरों में गौस-ए-आजम की विलादत पर रोशनी डाली गई। पूरा शहर 'या गौस अलमदाद' के नारों से गूंज उठा। मंगलवार शाम मगरिब के बाद शहर की जामा मस्जिद से जुलूस-ए-गौसिया का जुलूस शुरू हुआ। शहर काजी मौलाना निशार अहमद मिस्बाही के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया। जुलूस जामा मस्जिद से शुरू हुआ और यहां से शहर के चिपियाना चौराहा, कसाई चौराहा, कहारों का अड्डा, भूरी देवी, कंजी, भरत मिलाप, सिद्धनाथ मंदिर और तालिब सराय में वापस आकर समाप्त हुआ।

इस दौरान शहर काजी मौलाना निशार ने गौस-ए-आजम की जिंदगी पर विस्तार से रोशनी डालते हुए कहा कि गौस-ए-आजम अल्लाह के प्यारे बंदे और संतों के सरदार हैं। गौस-ए-पाक जिंदा चमत्कारों में से एक चमत्कार थे। लोगों को उनकी जिंदगी से सबक लेना चाहिए। इसके अलावा मौलाना अमन ने भी गौस-ए-आजम की जिंदगी के बारे में बताया। जुलूस का कई स्थानों पर भव्य स्वागत किया गया। जुलूस में कई जगह लंगर के स्टॉल भी लगाए गए थे, जहां लोगों ने कोल्ड ड्रिंक, शर्बत, मिठाई, बिरयानी, जूस, बिस्कुट, चिप्स, पानी, बिरयानी आदि कई चीजें बांटी। जुलूस में सबसे आगे कई युवा नारा-ए-तकवीर, गुलाम हैं गुलाम हैं गौस के गुलाम हैं आदि नारे लगाते और झंडे लहराते हुए चल रहे थे। उनके पीछे कई अकीदतमंद चल रहे थे। इस अवसर पर गुलाम गौस और अंजुमन गुलाम-ए-गौस के साथ-साथ सभी आशिकाने गौस के लोग शामिल हुए।

जुलूस का जगह-जगह हुआ भव्य स्वागत

ग्यारहवीं शरीफ के इस अवसर पर निकलने वाले जुलूस-ए-गौसिया का जगह-जगह स्वागत हुआ। विभिन्न स्थानों पर मिठाइयां, हलवा, खीर, छुआरे और अन्य सामग्रियों का वितरण कर लोग एक-दूसरे को ग्यारहवीं शरीफ की मुबारकबाद देते है। इस जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। जुलूस में बड़े-बड़े झंडे और डीजे ट्रॉली पर मौलाना नात पढ़ते हुए रहे।

रबिउस्सानी के महीने का धार्मिक महत्व

गौरतलब है कि 11वीं शरीफ का महीना रबिउस्सानी का महीना होता है, जिसे गौस-ए-आजम का महीना भी कहा जाता है। इस महीने के चांद दिखने के साथ ही मस्जिदों में मिलाद का आयोजन शुरू हो जाता है। इसके अलावा, जगह-जगह न्याज-ए-गौसिया का आयोजन होता है। हर साल मुस्लिम समाज की ओर से उर्दू चांद की 11 तारीख को जुलूस-ए-मोहम्मदी की तर्ज पर जुलूस-ए-गौसिया नगर में निकाला जाता है।

गौस-ए-आजम ने बचपन मे किया था इल्म हासिल

दुनिया ने गौस-ए-आजम के चमत्कारों को उनके बचपन से ही देखा है। जब वे बच्चे थे, तो उनकी मां ने उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए 40 दीनार (रुपये) देकर एक काफिले के साथ बगदाद भेजा था। रास्ते में 60 डाकुओं ने काफिले को रोक लिया और लूटपाट की। डाकुओं ने किसी को नहीं छोड़ा और सभी का सामान और पैसा लूट लिया। बच्चा होने के कारण किसी ने गौस-ए-आजम को नहीं छेड़ा। चलते समय एक डाकू ने उनसे यूं ही पूछ लिया कि उनके पास क्या है। गौस-ए-आजम ने ईमानदारी से कहा कि उनके पास 40 दीनार हैं। उन्हें यह मजाक लगा और वे आगे बढ़ गए। ऐसा ही कुछ दूसरे डाकू के साथ हुआ। जब डाकू लूटे गए सामान के साथ अपने नेता के पास पहुंचे और छोटे बच्चे का जिक्र किया, तो नेता ने बच्चे को बुलाया और उससे मिलना चाहा। नेता ने भी जब वही सवाल पूछे, तो गौस-ए-आजम ने जवाब में वही बात दोहराई कि उनके पास चालीस दीनार हैं। जब उनकी तलाशी ली गई, तो 40 दीनार मिले। डाकुओं ने जानना चाहा कि उसने ऐसा क्यों किया।

गौस ए आजम ने कहा कि यात्रा पर निकलते समय मेरी मां ने मुझसे कहा था कि हर परिस्थिति में हमेशा सच बोलना। इसलिए मैं दीनार गंवाने को तैयार हूं लेकिन मुझे अपनी मां की बात के खिलाफ जाना पसंद नहीं था। गौस ए आजम की बातों का ऐसा असर हुआ कि सरदार समेत सभी डाकुओं ने अपने गुनाहों से तौबा कर ली और अच्छे इंसान बन गए। गौस पाक अपने जीवन में मुश्किलों का सामना करने के बाद वलयत के पद पर पहुंचे। उन्होंने वलयत में वह मुकाम हासिल किया जो किसी और वली को नहीं मिला। इसलिए गौस ए आजम ने कहा कि मेरा यह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है। यह सुनकर दुनिया के सभी वलियों ने अपना सिर झुका लिया।

हजरत मोहम्मद बिन उमर अबू बक्र बिन कवाम जिन्हें देश शाम में पीरों का पीर कहा जाता है, उन्होंने भी गौस ए आजम के ऐलान पर अपना सिर झुकाया। ख्वाजा गरीब नवाज सैयदना मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह उन दिनों खरामन मुल्क के एक पहाड़ पर इबादत किया करते थे। जब उन्होंने गौस-ए-आजम का ऐलान सुना तो अपना सिर पूरी तरह जमीन तक झुका दिया और कहा, गौस-ए-आजम, आपके एक नहीं बल्कि दोनों पैर मेरे सिर और आंखों पर हैं। गौस-ए-आजम नेक, इबादत करने वाले, पाक और अल्लाह के बंदों के इमाम हैं। आम लोग ही नहीं बल्कि सभी संत भी उनके आदेशों का पालन करते हैं।

अल्लाह ने गौस-ए-आजम को इतना ऊंचा दर्जा दिया कि वह अपनी वलयत की नजर से हर चीज को देख सकते थे, जहां आम आदमी की आंखें, अक्ल और ख्याल नहीं पहुंच सकते थे। गौस-ए-आजम की महफिल में मुरीदों की भीड़ होती थी। लेकिन अल्लाह ने उनकी आवाज में ऐसा असर किया था कि जैसे पास के लोग आवाज सुन सकते थे, वैसे ही दूर के लोग भी सुन सकते थे। गौस-ए-आज़म का जन्म रमज़ान के महीने में हुआ था। जन्म के समय उन्होंने सहरी से लेकर इफ्तार तक माँ का दूध नहीं पिया। जैसे रोज़ेदार रोज़ा रखते हैं, वैसे ही वे सहरी और इफ्तार के दौरान ही माँ का दूध पीते थे। जब वे दस साल के थे और मदरसे में पढ़ने जाते थे, तो फ़रिश्ते आकर उनके लिए मदरसे में बैठने की जगह बनाते थे।

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