पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: तीसरी आंख यानी सीसीटीवी और कानून के डंडे के बल पर नकल पर नकेल की सरकार की कोशिशें रंग लाती दिख रही हैं। गोरखपुर मंडल के चार जिलों के नकल माफिया पहले अपने स्कूलों को परीक्षा केन्द्र बनाने के लिए मुंहमांगी कीमत देने को तैयार रहते थे, वो अब पूरी प्रक्रिया से किनारा किए हुए हैं। सख्ती के कारण स्कूलों में छात्रों की संख्या घट गई है। यूपी में नकल के भरोसे उत्तीर्ण होने के लिए बिहार, दिल्ली, हरियाणा आदि अन्य प्रदेशों से आने वाले छात्रों पर भी ब्रेक लगता दिख रहा है। सूत्रों का कहना है कि सरकार की सख्ती से सिर्फ गोरखपुर मंडल में करीब 60 करोड़ रुपए के नकल के धंधे पर अंकुश लगना तय है।
गोरखपुर मंडल के चार जिलों में दो साल पहले तक यूपी बोर्ड की परीक्षा के छात्रों की संख्या 9 लाख से अधिक होती थी, लेकिन आज ये संख्या 6 लाख के आसपास पहुंच गई है। सीसीटीवी के साथ वायस रिकार्डर की अनिवार्यता का तोड़ मास्टर माइंड प्रबंधक फिलहाल तो नहीं निकाल पाए हैं। यूपी बोर्ड परीक्षा में इस बार उन विद्यालयों को ही परीक्षा केंद्र बनाया जाना है, जिनके हर कमरे में दो-दो सीसीटीवी कैमरे व दो-दो वायस रिकार्डर होंगे। इसे देखते हुए अधिकांश नकल माफिया ने परीक्षा पास कराने का ठेका ही नहीं लिया है।
आगामी फरवरी महीने से होने वाली यूपी बोर्ड का शेड्यूल जारी हो गया है। परीक्षा केंद्र के इच्छुक स्कूलों से मानक पूरा कर 15 सितम्बर तक आवेदन मांगा गया था लेकिन गोरखपुर में सिर्फ 70 विद्यालयों ने ही आवेदन किया है। पिछले साल मानक बनाया गया था कि जिन स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे होंगे, उन्हें ही परीक्षा केंद्र बनाया जाएगा। लेकिन ऐसी शिकायतें मिलीं थीं कि कैमरे का एंगल बदल कर कुछ स्थानों पर इमला बोलकर नकल कराई गई। अब इस संभावना को भी समाप्त करने के उद्देश्य से माध्यमिक शिक्षा परिषद ने इस साल हर कमरे व प्रवेश द्वार पर दो-दो सीसीटीवी कैमरे व वायस रिकार्डर लगाने का निर्देश दिया गया है। विद्यालय प्रबंधन ये इंतजाम करने को काफी खर्चीला मान रहे हैं, जिस वजह से अभी तक बहुत कम विद्यालय ही यह मानक पूरा कर पाए हैं। जिन 70 विद्यालयों ने यह सूचना दी है, उनमें 68 वित्तविहीन व दो अनुदानित विद्यालय हैं।
पिछली सरकारों में परीक्षा केन्द्र बनवाने के लिए 2 से 3 लाख रुपए तक की बोली लगती थी। परीक्षा केन्द्र में पेंच फंसा तो नकल माफिया इलाहाबाद बोर्ड से लेकर हाईकोर्ट तक की शरण में पहुंच जाते थे। परीक्षा केन्द्र मिलने के बाद नकल माफिया व्यवस्था के नाम पर छात्रों से मोटी रकम वसूलते थे।
गांव और कस्बों के स्कूलों में नकल नकल करना हो या नहीं, प्रत्येक छात्र को 1000 से 1500 रुपए देना अनिवार्य होता था। वहीं कापी लिखाने के नाम पर 10 से 15 हजार तक लिए जाते थे। जो स्कूल ईमानदार की श्रेणी में आते हैं वहां भी प्रैक्टिकल, प्रवेश पत्र, मार्कशीट आदि के नाम पर प्रत्येक छात्रों से 300 से 400 रुपए लिए जाते थे। गोरखपुर मंडल के 100 से अधिक स्कूल तो परीक्षा के दौरान होने वाले धंधे के ही संचालित होते हैं। बोर्ड परीक्षा में गोरखपुर मंडल में ही 6 लाख से अधिक छात्रों को कुछ न कुछ देना ही पड़ता रहा है।
मानक पूरा करने में लाखों का खर्च
एक परीक्षा केन्द्र के लिए न्यूनतम 14 कमरे होने चाहिए। एक कमरे में सीसीटीवी और वाइस रिकार्डर लगाने में करीब 18 हजार का खर्च आ रहा है। यानी १४ कमरों के लिए कम से कम 2 लाख रुपए खर्च होंगे। जिन स्कूलों में बीते वर्ष में सीसीटीवी लग चुका है, उन्हें वाइस रिकार्डर लगाने में करीब 50 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
गोरखपुर में राजकीय, वित्त पोषित और वित्त विहीन कुल 468 विद्यालय हैं। इनमें से सिर्फ 2 एडेड और 68 वित्त विहीन ने परीक्षा केन्द्र का मानक पूरा करने का दावा किया है। राजकीय विद्यालय और एडेड स्कूलों ने किसी प्रकार का फंड नहीं मिलने की बात कहते हुए हाथ खड़े कर दिए हैं। एडेड स्कूलों के प्रबंधकों की दलील है कि अब जो नियम बनाए गए हैं, उसमें किसी प्रकार की बातचीत को नकल में दायरे में लाने में देर नहीं लगेगी। ऐसे में परीक्षा केन्द्र बनाकर किसी प्रकार का खतरा क्यो मोल लिया जाए।
घट गए छात्र
- देवरिया जिले में परीक्षा केन्द्र तो नहीं घटे हैं लेकिन छात्रों की संख्या में बड़ी कमी आई है। पिछले साल यहां 256 परीक्षा केन्द्र बने थे, इस बार भी संख्या उतनी ही है। हालांकि छात्र संख्या 2,13,203 से घटकर 1,59,565 पहुंच गई है।
- कुशीनगर में पिछली बार 150 स्कूलों को परीक्षा केन्द्र बनाया गया था, इस बार 292 स्कूलों ने मानक पूरा कर आवेदन किया है।
- महराजगंज जिले में पिछले बार की तुलना में छात्रसंख्या करीब 40 हजार घट गई है।
- परीक्षा केन्द्रों के लिए कम आवेदन पर जिला विद्यालय निरीक्षक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह भदौरिया का कहना है कि परीक्षा कराने के लिए मानक पूरा करने वाले विद्यालयों का चयन होगा। विद्यालय मानक पूरा कर लेंगे।
दी जा रहीं गलत सूचनाएं
परीक्षा केन्द्र को लेकर अफसरों के दबाव के कारण कई प्रबंधक गलत सूचना भी दे रहे हैं। जिला विद्यालय निरीक्षक ने टीम में शामिल दो राजकीय विद्यालयों के प्रधानाचार्यों के खिलाफ चार्जशीट जारी करते हुए स्पष्टीकरण तलब किया है। परीक्षा केंद्र बनने के लिए विद्यालयों द्वारा सूचना उपलब्ध कराई जाती है। इस सूचना का जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर पर गठित टीमें भौतिक सत्यापन करती हैं। इसी क्रम में चंपा देवी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज हरनही व राजकीय हाईस्कूल हरिहरपुर के प्रधानाचार्यों की टीम को सुभराजी देवी इंटर कॉलेज, बारीपुर, तिवारीपुर की जांच का जिम्मा दिया गया था। विद्यालय में 11 कमरे मौजूद हैं, लेकिन टीम ने उसे 14 दिखा दिया। बाद में शिकायत के बाद क्रास चेकिंग में टीम की पोल खुल गई।
11 जिलों में सिर्फ 11 हजार प्राइवेट छात्र
बीते वर्षों में बिहार, हरियाणा, मध्यप्रदेश आदि प्रदेशों के छात्र फर्जी फेल की मार्कशीट लगाकर बड़ी संख्या में प्राइवेट परीक्षा में शामिल होते थे। नकल माफिया इस सुविधा के लिए 15 से 20 हजार रुपए तक लेते थे। लेकिन इस बार हालात बदले हैं। गोरखपुर, बस्ती, देवीपाटन मंडल के 11 जिलों में मात्र 11 हजार प्राइवेट विद्यार्थी ही शामिल हो रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष यह संख्या 57 हजार थी। इस साल गोरखपुर में मात्र 2003 विद्यार्थी ही प्राइवेट हैं। पिछले साल यह संख्या 16,829 थी। दरअसल, प्राइवेट विद्यार्थियों के आवेदन में पिछले साल बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा पकड़ा गया था। अर्हता परीक्षा न पास करने वाले विद्यार्थियों का भी फार्म भरवाया गया था।
विद्यालयों ने अर्हता प्रमाण पत्र के नाम पर बिहार व कुछ अन्य राज्य बोर्डों का फर्जी प्रमाण पत्र लगाया था। वेरीफिकेशन में ये प्रमाण पत्र गलत पाए गए। सभी विद्यालयों को सुधार का मौका दिया गया था लेकिन सुधार नहीं किया गया। नतीजा हुआ कि क्षेत्रीय बोर्ड कार्यालय के अंतर्गत आने वाले 11 जिलों में करीब 12500 अभ्यर्थियों का रोल नंबर डिलीट कर दिया गया था और वे परीक्षा से वंचित हो गए थे। इस साल भी गोरखपुर में 30 से अधिक माध्यमिक विद्यालयों को प्राइवेट विद्यार्थियों के लिए केंद्र बनाने की तैयारी थी लेकिन माध्यमिक शिक्षा परिषद ने केवल राजकीय विद्यालयों को ही केंद्र बनाने का निर्देश दिया। इससे प्राइवेट विद्यार्थियों को लेकर फर्जीवाड़े की संभावना काफी कम हो गई है। संयुक्त शिक्षा निदेशक योगेन्द्र नाथ सिंह का कहना है कि पारदर्शी व्यवस्था के तहत सिर्फ राजकीय विद्यालयों को ही प्राइवेट विद्यार्थियों के लिए केंद्र बनाया गया है। पिछले साल की तुलना में इन विद्यार्थियों की संख्या में इस बार काफी कमी आई है।
व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं मिलता
परीक्षा केन्द्र की व्यवस्था के लिए प्रति छात्र 3 रुपए के हिसाब से अनुदान मिलने का नियम है। 2012 तक यह रकम डेढ़ रुपए थी। केन्द्र व्यवस्थापन के लिए 2200 रुपए और कक्ष निरीक्षकों को 65 रुपए प्रतिदिन मिलता है। लेकिन नकल के नाम पर वसूली का आरोप लगाकर शिक्षा विभाग के अधिकारी तय मानदेय शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को नहीं दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में शायद ही किसी शिक्षक को मानदेय मिला है।
उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष गोरखलाल श्रीवास्तव का कहना है कि शासन प्रधानाचार्यों पर अविश्वास कर रहा है। कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों से एक रुपये भी फीस नहीं ली जा सकती है। हाईस्कूल में प्रति छात्र 5 रुपए और इंटर में 8 रुपए विकास शुल्क के नाम पर मिलते हैं। इसी रकम से कुर्सी, मेज, चॉक, डस्टर से लेकर भवन निर्माण का कार्य होना है। सरकार न तो मदद कर रही है, न ही किसी प्रकार का शुल्क लेने का छूट दे रही है। ऐसे में स्कूल प्रबंधन किस प्रकार शासन के रोज के फरमानों पर अमल करे।
पूर्व प्रधानाचार्य राधेश्याम मिश्र का कहना है कि यूपी बोर्ड ने टॉपरों की कॉपी को सार्वजनिक करने का दावा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार को कॉपियों के मूल्यांकन में पारदर्शिता को लेकर कदम उठाना चाहिए। ताकि इन सवालों पर विराम लगे कि सख्ती के बाद भी रिकार्ड तोड़ विद्यार्थी कैसे उत्तीर्ण हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग से रिटायर्ड अधिकारी कुंवर बहादुर सिंह का कहना है कि पिछले वर्ष जिसतरह की कड़ाई थी, उसके बाद जो परिणाम आया उससे अभिभावकों के सामने कई सवाल उठ रहे हैं। विभाग को पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी जो देना होगा, नहीं बोर्ड का वजूद ही संकट में पड़ जाएगा।