UP Assembly Session: विपक्ष का हंगामा, अध्यक्ष का व्यवहार और सीएम के बयान पर जनहित याचिका! सवालों से घिर गया यूपी विधानसभा सत्र

UP Assembly Session: उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। अनुपूरक बजट पेश तो हुआ लेकिन उस पर चर्चा पूरी नहीं हो सकी और मुख्यमंत्री के संबोधन के बिना ही विधानसभा सत्र को स्थगित करना पड़ा।

Update:2024-12-21 17:55 IST
UP Vidhan Sabha (photo: social media)

UP Assembly Session: उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। अनुपूरक बजट पेश तो हुआ लेकिन उस पर चर्चा पूरी नहीं हो सकी और मुख्यमंत्री के संबोधन के बिना ही विधानसभा सत्र को स्थगित करना पड़ा। वहीँ विधानसभा में मुख्यमंत्री के बयान को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हो गयी। शुक्रवार को विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने विधान भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि विधायक चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के पास बैठ जाते हैं, वहां तक तो ठीक है, लेकिन विधानसभा के भीतर प्रदर्शन की इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि कहा कि यह व्यवस्था पहले से थी लेकिन अब इसे लागू करवाया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान सत्र में हुई कुछ घटनाएं संसदीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक रही हैं। सतीश महान द्वारा दिए गए इस बयान के कई मायने है, बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट क्यों चढ़ा?

सीएम योगी के बयान पर दायर हुई जनहित याचिका

पिछले दिनों विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव के एक बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया जिसको लेकर बीते 10 दिसंबर को शीर्ष कोर्ट ने भी नाराजगी जताई थी और हाईकोर्ट से उससे संबंधित विवरण और जानकारियां मांगी थीं साथ ही जस्टिस यादव को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष पेश होने को कहा गया था। जस्टिस यादव के भाषण की व्यापक आलोचना हुई लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान 16 दिसम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जस्टिस शेखर यादव का समर्थन करते हुए नज़र आये। उन्होंने कहा था कि क्या देश में समान नागरिक संहिता नहीं होनी चाहिए? दुनिया भर में व्यवस्था बहुसंख्यक समुदाय के कहे अनुसार चलती है और भारत कह रहा है कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच भेदभाव समाप्त होना चाहिए। इसके पहले 14 दिसम्बर को मुंबई में विश्व हिंदू आर्थिक मंच 2024 में बोलते हुए उन्होंने विपक्ष द्वारा जज पर महाभियोग चलाने के प्रयास की भी आलोचना की थी। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बर्खास्त करने की मांग की गई है।

पल्लवी पटेल के रुख से गर्म हुआ था विधानसभा सत्र

एक तरफ जहाँ उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में संभल और बहराइच हिंसा को लेकर हंगामा चल रहा था तो वहीँ समाजवादी पार्टी की बागी विधायक और अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा दिए, पहले दिन जब पल्लवी पटेल ने आरोप लगाना शुरू किया तो विपक्ष के हंगामे के कारण वो बोल नहीं पायी, दुबारा जब उन्हें बोलने का मौका मिला तो विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने उनकी तीखी बहस हो गयी। वो नाराज होकर विधानसभा मंडल में स्थित चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के पास धरने पर बैठ गयी। देर रात संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने उन्होंने नियम संगत विधानसभा में अपनी बात रखने का मौका देने की बात कहकर धरने को समाप्त करवाया लेकिन दुसरे दिन फिर उन्हें बोलने का मौका नहीं मिला, इसबार पल्लवी पटेल और विधानसभा अध्यक्ष के बिच तीखी बहस हुई। पल्लवी पटेल का आरोप है कि मालूम हो कि प्राविधिक शिक्षा विभाग में घोटाला हुआ है और हर कैंडिडेट से 25 लाख रुपए की घूस ली गई। पल्लवी पटेल ने दावा किया है कि एआईसीटीई नियमों के तहत खुली भर्ती से ही नियुक्तियां होनी चाहिए थीं लेकिन विभाग ने पदोन्नति द्वारा लगभग 250 प्रवक्ताओं की भर्ती की। वहीँ इस विवाद ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में उबाल ला दिया है। पल्लवी पटेल ने आरोप लगाया है कि सदन में असंवैधानिक तरीके से उनकी आवाज को दबा दिया गया वो भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहती थीं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा कि 'उत्तर प्रदेश सरकार ने "भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी " दोनों को बचा लिया इसके लिये सीएम योगी आदित्यनाथ अवश्य ही गर्व कर सकते है। जय भ्रष्टाचार की।'

सपा विधायक के निष्कासन से गहरा हुआ टकराव?

उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में समाजवादी पार्टी के विधायक अतुल प्रधान के साथ हुई घटना ने विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच पहले से चल रहे टकराव को और गहरा कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अतुल प्रधान को पूरे सत्र के लिए निष्कासित करने का आदेश दिया था जिसके बाद मार्शलों ने उन्हें सदन से बाहर निकाल दिया। समाजवादी पार्टी ने इस कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताया तो सत्ता पक्ष ने इसे अनुशासन बनाए रखने के लिए जरूरी कदम बताया। दरअसल स्वास्थ्य के मुद्दे पर चर्चा के दौरान अतुल प्रधान और राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण के बीच तीखी बहस हुई। तो वहीँ इससे पहले विपक्ष ने गोरखपुर एम्स से जुड़ा सवाल पूछने पर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि ये सब लोग सिर्फ गले की खराश दूर करने यहां आते हैं, उन्होंने कहा कि हम विक्स की टिकिया रखवा देते हैं और सब लोग खा लें और गले की खराश दूर करें। इस दौरान जमकर हंगामा हुआ, विपक्ष विरोध करते हुए नारेबाजी करने लगा, विधानसभा अध्यक्ष ने समझने का प्रयास किया लेकिन सपा विधायक अतुल प्रधान लगातार नारेबाजी और हंगामा करते रहे। विधानसभा अध्यक्ष ने अतुल प्रधान को संयम रखने की हिदायत दी, लेकिन वे नहीं माने। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के व्यवहार से सपा के विधायक संतुष्ट नज़र नहीं आये और उनपर ही टिप्पड़ी करना शुरू कर दिए। इससे नाराज होकर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि जिस दिन मेरे ऊपर सवाल उठेगा, मैं कुर्सी छोड़ दूंगा। वहीँ वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के भाषण के दौत्रान विपक्ष ने तानाशाही नहीं चलेगी और गली-गली में शोर है, प्रधानमंत्री चोर है जैसे नारे लगाए। सुरेश खन्ना ने आपत्ति जताते हुए कहा कि इस प्रकार की भाषा अस्वीकार्य है और विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से हस्तक्षेप करने की अपील की। अध्यक्ष के हस्तक्षेप के बावजूद स्थिति शांत नहीं हुई, जिसके चलते निष्कासन का फैसला लिया गया।

भावुक हुए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना

विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष द्वारा अपने ऊपर हुई टिप्पड़ी को लेकर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना सदन में भावुक हो गए थे, उन्होंने कहा था कि इस पूरी विधानसभा में मुझसे ज्यादा कमजोर आदमी कोई नहीं है। दरअसल मंगलवार को पल्लवी पटेल ने विधानसभा अध्यक्ष पर आरोप लगते हुए कहा था कि दूसरों के घोटाले पर छाती पीटने वाले अपने घोटाले पर बात नहीं कर सके। पल्लवी पटेल के इस बयान का विरोध भी हुआ था। तो वहीँ सपा विधायक अतुल प्रधान ने भी सतीश महाना पर सवाल खड़े किये।

उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट तो जरुर चढ़ गया लेकिन मुख्यमंत्री के भासड़, विपक्ष के विरोध और विधानसभा अध्यक्ष के व्यवहार ने कई गंभीर सवाल जरुर खड़े कर दिए।

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