डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर से खुला आंकड़ों का खेल, UP में घट गए 'कागजी 'छात्र, योगी सरकार के बचे 323 Cr.
UP: दो सत्रों में अब तक 28 लाख से अधिक स्टूडेंट सिर्फ कागजों पर पढ़ाई करते मिले। उनका सूबे के स्कूलों से कोई वास्ता नहीं था। सत्यापन के बाद अचानक इतनी बड़ी संख्या में छात्र घट गए।;
फोटो- सोशल मीडिया से
Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद (Uttar Pradesh Basic Education Council) की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है, कि जब से स्कूली बच्चों के यूनिफार्म (Uniform), बैग (Bag), जूते-मोज़े के पैसे सीधे खाते में पहुंचने लगे हैं, फर्जी आंकड़ों का खेल ख़त्म हो गया। परिषद के हालिया आंकड़े के मुताबिक, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) से यूपी सरकार को 323 करोड़ रुपए की बचत हुई है। मतलब, 'डीबीटी' योगी सरकार के लिए लाभ का सौदा रहा।
'नवभारत टाइम्स' की खबर के मुताबिक, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद पिछले सत्र से परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के यूनिफार्म, जूते-मोज़े, स्वेटर और बैग की राशि लाभुकों के माता-पिता (अभिभावकों) के खाते में भेजती रही है। सरकार प्रति बच्चा 1100 रुपए का भुगतान करती है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिये राशि बच्चों के अभिभावक के खातों में देने से पूर्व उनका सत्यापन किया गया। इस सत्यापन में लाखों 'कागजी' छात्रों का पता चला। जिससे बेसिक शिक्षा परिषद भी भौंचक्की रह गई।
28 लाख छात्र निकले 'कागजी'
टीओआई (TOI) की खबर के अनुसार, दो सत्रों में अब तक 28 लाख से अधिक स्टूडेंट सिर्फ कागजों पर पढ़ाई करते मिले। उनका सूबे के स्कूलों से कोई वास्ता नहीं था। सत्यापन के बाद अचानक इतनी बड़ी संख्या में छात्र घट गए कि एक ही झटके में प्रदेश की योगी सरकार के 323 करोड़ रुपए बच गए। दरअसल, तय बिंदुओं के आधार पर प्रेरणा पोर्टल (Prerna Portal) पर आंकड़े दुरुस्त होने के बाद पिछले सेशन में 15 लाख से अधिक स्टूडेंट के नाम सरकारी आंकड़ों से कम हो गए। जबकि मौजूदा सत्र में 13 लाख छात्रों का नाम सरकारी दस्तावेजों से हटाया गया।
यूपी सरकार के बचे 323 करोड़ रुपए
आपको बता दें कि, उत्तर प्रदेश सरकार यूनिफार्म, जूते-मोज़े, स्वेटर और बैग के लिए प्रति छात्र 1100 रुपए देती रही है। हालांकि, मौजूदा सत्र से प्रदेश सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 1200 रुपए कर दिया है। बढ़ी राशि स्टेशनरी के लिए दिया जा रहा है। शुरुआती 15 लाख छात्रों के नाम हटने से जहां 166.49 करोड़ रुपए की राशि बची थी, वहीं मौजूदा सत्र में 13 लाख संदिघ्ध छात्रों के नाम हटाए जाने से करीब 156.82 करोड़ रुपए की बचत हुई। इस तरह उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने में 323 करोड़ रुपए की बचत हुई।
दो स्कूलों में पढ़ रहे थे एक ही छात्र
अब सवाल उठना लाजमी है कि, आखिर इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के नामांकन क्या फर्जी थे? दरअसल, प्रदेश के स्कूलों में कई ऐसे बच्चे थे जिन्होंने एक से अधिक स्कूलों में दाखिला ले रखा था। चूंकि, अब बच्चों के भी आधार कार्ड बनते हैं। तो सरकारी आदेश के बाद उनका सत्यापन किया गया। बच्चे छोटे हैं तो उनके पोशाक आदि की सरकारी राशि उनके अभिभावकों के खाते में जाती है। उनके सत्यापन से भी आंकड़े स्पष्ट हुए। कई ऐसे स्कूल भी सामने आए जहां बच्चों ने दाखिला तो मगर वो कभी वहां गए ही नहीं।
..ताकि कोई पात्र वंचित न रहे
इस बारे में स्कूली शिक्षा महानिदेशक विजय किरन आनंद कहते हैं, 'प्रेरणा पोर्टल पर बच्चों का डेटा दर्ज करने और हटाने के लिए 30 बिंदु तय किये गए हैं। इसका मकसद है कि कोई भी पात्र बच्चा न ही छूटे या वंचित रहे और न फर्जी आंकड़े आएं।'
मौजूदा सत्र में 1.91 करोड़ बच्चों का दाखिला
बेसिक शिक्षा परिषद के अनुसार, वास्तविक छात्रों की वर्तमान संख्या 1 करोड़ 91 लाख रुपए है। इतनी बड़ी संख्या में प्रदेश के बच्चों का स्कूलों में दाखिला हो चुका है। कहा तो ये भी जा रहा है कि अभी 'स्कूल चलो अभियान' जारी है। ऐसे में ये आंकड़ा बढ़कर 2 करोड़ के पार पहुंचने की उम्मीद है।
कागजी सत्यापन के बाद बड़ी संख्या में 'कागजी' छात्रों के पता चलने से एकमुश्त में बड़ी धनराशि की बचत हुई है। सरकारी इस बचे खजाने से आने वाले समय में और स्कूलें खोल सकती है। साथ ही, पहले से चल रहे स्कूलों में संसाधन आदि पर खर्च कर उन्हें और बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है।