UP Election 2022: इस बार तय हो जाएगा, दलित वोट किधर है, BSP की सोशल इंजीनियरिंग की कड़ी परीक्षा

UP Election 2022: इस बार पता चल जाएगा कि दलित वोट बसपा के पाले में बचा है या नहीं। बसपा के पास दूसरी लाइन के बड़े नेताओं का अभाव है और वह नई टीम के साथ मैदान में है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2022-01-20 05:03 GMT

UP Election 2022 : चुनाव परिणामों में छुपा रुस्तम न साबित हो जाए बसपा !

UP Election 2022: यूपी के विधानसभा चुनाव में इस बार बहुजन समाज पार्टी के सोशल इंजीनियरिंग की कड़ी परीक्षा होगी। इस बार पता चल जाएगा कि दलित वोट बसपा के पाले में बचा है या नहीं। बसपा के पास दूसरी लाइन के बड़े नेताओं का अभाव है और वह नई टीम के साथ मैदान में है। जिस तरह बसपा से कई नेता पाला बदल चुके हैं और मायावती की सक्रियता नहीं दिखाई दे रही है, उससे चुनाव की शुरूआती दौर से ही बसपा को लड़ाई से बाहर माना जा रहा है। बीते तीन विधानसभा चुनावों से बसपा के कम होते वोट प्रतिशत ने भी दूसरे दलों की हौसला अफजाई की है। भाजपा, सपा, कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी की भी दलितों पर नजर है। यूपी में दलित वोटरों की संख्या करीब 21 से 22 फीसदी है।

बसपा अध्यक्ष मायावती ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के अंतर्गत 139 सीटों पर सवर्णों, 114 पिछड़ों व अतिपिछड़ों, 61 मुस्लिम व 89 दलित को टिकट दिए था। सवर्णो में सबसे अधिक 86 ब्राह्मण प्रत्याशी बनाए गए थे और इसके अलावा 36 क्षत्रिय व 15 अन्य सवर्ण उम्मीदवार चुनावी जंग में उतारे थे।बसपा को 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे और 206 सीटों पर विजय हासिल हुई। 2012 में 25.91 प्रतिशत और 2017 में 22.23 प्रतिशत वोट मिले थे।

जाटवों की ज्यादा संख्या

प्रदेश में विधानसभा की 86 आरक्षित सीटें हैं, जिसमें से 84 अनुसूचित जाति और 2 अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं। वैसे तो प्रदेश की 300 से ज्यादा विधानसभा सीटों को दलित वोट प्रभावित करता है लेकिन 20 से ज्यादा जिलों में तो दलित आबादी निर्णायक स्थिति में है। आगरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, हाथरस, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर, बदायूं, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गोरखपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, जौनपुर, बिजनौर, अमरोहा, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्दार्थनगर, गोंडा, मुरादाबाद में जाटव समाज बड़ी संख्या में है।

इस बार का हाल

इस बार के चुनाव में पहले चरण के चुनाव के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने पश्चिमी इलाके में मुस्लिम कार्ड खेला है। कुछ स्थानों पर दलित मुस्लिम समीकरण को दुरुरस्त करने का प्रयास किया है। पहले चरण के लिए जारी लिस्ट में पूरी तरह से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला दिखता है। 53 उम्मीदवारों में से 14 सीटें मुस्लिमों को दी गईं हैं। 9 ब्राह्मणों के अलावा 12 टिकट पिछड़े वर्ग के लोगों को दिए गए हैं।

सपा और भाजपा
(Samajawadi Party BJP)

पहले से गैर जाटव दलित वर्ग के बीच काम सक्रिय भाजपा की नजर अब जाटवों पर है। पार्टी ने प्रत्याशियों की पहली सूची में ही इसके संकेत दे दिए हैं। पहले और दूसरे चरण की 18 सुरक्षित सीटों में से 12 पर जाटव प्रत्याशी उतारे हैं। सहारनपुर की सामान्य सीट पर भी जाटव प्रत्याशी दिया है। भाजपाई रणनीति को यूं समझा जा सकता है कि आगरा में दोनों रिजर्व सीटों पर पहली बार भाजपा ने जाटव चेहरे दिए हैं।

सपा ने दलित वोटों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी की नई विंग समाजवादी बाबा साहेब वाहिनी गठित की है। इसकी कमान भी बसपा के पुराने नेता मिठाई लाल भारती को सौंपी है। वह बसपा के पूर्वांचल के जोनल कोआर्डिनेटर भी रहे चुके हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी दलित वोट के लिए 2014 से लगी हुई है। इस चुनाव से तय हो जाएगा कि दलित वोट किसके पास रहने वाला है।

बसपा के सामने इस चुनाव में दोहरी चुनौती है। एक ओर उसे अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ सोशल इंजीनियरिंग के जरिए  ताकत बढ़ाकर ज्यादा सीटें जीतनी हैं। दूसरी ओर भाजपा, सपा, कांग्रेस, आप की नजर से अपने वोट बैंक को सहेजकर भी रखना है। वहीं चंद्रशेखर की भीम आर्मी से अपने साम्राज्य की सीमाएं सुरक्षित रखने की चुनौती भी बसपा प्रमुख के सामने है। 

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