UP Election 2022: मायावती ने दो दिग्गजों से चुकाया पुराना हिसाब, अपने चुनाव क्षेत्रों में ही फंस गए स्वामी प्रसाद और राजभर

UP Election 2022 : विधानसभा चुनाव में मायावती ने इन दोनों नेताओं के चुनाव क्षेत्रों में ऐसे प्रत्याशियों को अखाड़े में उतार दिया है। इन दोनों नेताओं के सारे समीकरण फेल होते दिख रहे हैं।

Report :  Anshuman Tiwari
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2022-02-14 06:35 GMT

 मायावती की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

Up Election 2022 : पूर्वांचल के दो बड़े सियासी चेहरे पूर्वी उत्तर प्रदेश की दो सीटों पर कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। इन दो बड़े नेताओं की घेराबंदी में भाजपा ने ही नहीं बल्कि बसपा मुखिया मायावती ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। दरअसल, विपक्ष के दो बड़े चेहरे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर (Suheldev Bharatiya Samaj Party chief Omprakash Rajbhar) और भाजपा छोड़कर सपा का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ( SP candidate Swami Prasad Maurya) अपनी-अपनी सीटों पर कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। कभी ये दोनों नेता मायावती के भी काफी करीबी माने जाते थे। हालांकि बाद में इन्होंने बसपा मुखिया से किनारा कर लिया था। 

इस बार के विधानसभा चुनाव में मायावती ने इन दोनों नेताओं के चुनाव क्षेत्रों में ऐसे प्रत्याशियों को अखाड़े में उतार दिया है। इन दोनों नेताओं के सारे समीकरण फेल होते दिख रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि इन दोनों सियासी दिग्गजों की राह मुश्किल करके बहन जी ने अपना पुराना हिसाब चुकाया है। दोनों नेताओं के चुनाव क्षेत्रों में ऐसे समीकरण बनते दिख रहे हैं जिससे पार पाना इन दोनों के लिए काफी मुश्किल होगा।

स्वामी प्रसाद ने लगाया था बड़ा आरोप 

कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे स्वामी प्रसाद मौर्य एक जमाने में मायावती के काफी करीबी माने जाते थे। 1996 में उन्होंने बसपा की सदस्यता ग्रहण की थी और वे बसपा के टिकट पर चार बार विधायक बने। मायावती की सरकार में भी उन्हें ताकतवर मंत्री माना जाता था। 2008 में मायावती ने उन्हें बसपा का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया था। मायावती के इतने करीब होने के बावजूद उन्होंने बहन जी को 2016 में जबर्दस्त झटका दिया था। 

2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने बहनजी पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए बसपा से इस्तीफा दे दिया था। बाद में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें पडरौना सीट से चुनाव मैदान में उतारा था और मौर्य ने इस चुनाव में जीत हासिल की थी। योगी सरकार में उन्हें श्रम व सेवायोजन मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। मौर्य अपनी बेटी संघमित्रा को लोकसभा का टिकट भी दिलाने में कामयाब हुए थे और उनकी बेटी मौजूदा समय में बदायूं से सांसद हैं।

मायावती ने फाजिलनगर में फंसाया 

पिछला चुनाव पडरौना से जीतने के बाद इस बार मौर्य ने अपनी सीट बदल ली है और वे फाजिलनगर सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। भाजपा ने 2012 और 2017 में इस सीट पर जीत हासिल करने वाले गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे सुरेंद्र सिंह कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा है। दूसरी और मायावती ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदलते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य की राह मुश्किल कर दी है। बसपा ने 5 फरवरी को जारी सूची में इस सीट पर संतोष तिवारी को उम्मीदवार बनाया था मगर मायावती ने सोची-समझी रणनीति के तहत इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदलते हुए इलियास अंसारी को चुनाव मैदान में उतार दिया है। 

अंसारी सपा में टिकट के दावेदार थे मगर टिकट न मिलने पर फूट-फूट कर रोने के कारण वे सुर्खियों में आ गए थे। बाद में उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया और मायावती ने स्वामी प्रसाद मौर्य की घेराबंदी के लिए आनन-फानन में उन्हें टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया। इलियास अंसारी सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष रहे हैं और उनकी फाजिलनगर सीट पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। उनकी गिनती अल्पसंख्यक समुदाय के कद्दावर नेताओं में होती है और उनके चुनाव मैदान में उतरने से स्वामी प्रसाद मौर्य के समीकरण गड़बड़ा गए हैं।

राजभर के सामने दोहरी चुनौती 

स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह ही मायावती ने ओमप्रकाश राजभर की घेराबंदी करके भी पुराना हिसाब चुकता किया है। सुभासपा मुखिया राजभर गाजीपुर की जहूराबाद विधानसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। इस सीट पर भाजपा और बसपा दोनों ने उनकी राह मुश्किल कर दी है। बसपा ने इस सीट पर कालीचरण राजभर को चुनाव मैदान में उतारा है। कालीचरण 2002 और 2007 के चुनाव में बसपा के टिकट पर यहां से विधायक चुने जा चुके हैं। दूसरी ओर बसपा मुखिया मायावती ने इस सीट पर शादाब फातिमा को चुनाव मैदान में उतारकर ओमप्रकाश राजभर की राह में कांटे बो दिए हैं। शादाब फातिमा इस सीट पर सपा की टिकट की दावेदार थीं मगर राजभर के लड़ने से उन्हें टिकट मिलने की संभावना खत्म हो गई थी।

शादाब फातिमा के लड़ने से बढ़ी मुसीबत 

सपा से नाराज चल रही शादाब फातिमा ने तुरंत बसपा का दामन थाम लिया और मौका देखकर बहन जी ने शादाब फातिमा को जहूराबाद सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया है। शादाब फातिमा को शिवपाल सिंह यादव का करीबी माना जाता रहा है और शिवपाल-अखिलेश विवाद में उन्होंने शिवपाल यादव का समर्थन किया था। शादाब फातिमा ने 2012 का चुनाव जहूराबाद सीट से सपा के टिकट पर जीता था। 

सपा से गठबंधन के बाद ओपी राजभर मुस्लिम और यादव मतों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में जुटे हुए थे मगर शादाब फातिमा के चुनाव मैदान में उतरने से उन्हें करारा झटका लगा है। माना जा रहा है कि शादाब फातिमा राजभर के वोट बैंक में जबर्दस्त सेंध लगाने में कामयाब होंगी। मायावती के इस कदम के पीछे भी माना जा रहा है कि उन्होंने ओमप्रकाश राजभर से पुराना हिसाब चुकाने की कोशिश की है।

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