UP Election 2022 : बुंदेलखंड में भाजपा को इतिहास दोहराना है तो बसपा को चाहिए अपनी खोई हुई जमीन

Up Election 2022 : बुंदेलखंड की 19 सीटों के लिए सभी दलों ने पूरा जोर लगा रखा है और यही वजह है कि प्रियंका गाँधी, मायावती, अमित शाह और अखिलेश यादव – सभी ने इस रीजन में जगह जगह जनसभाएं कर डाली हैं।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2022-02-15 08:38 GMT

UP Election 2022। 

UP Election 2022 : देश की राजनीति में बुंदेलखंड (Bundelkhand) के इलाके को सियासी रूप से बेहद अहम माना गया है। इसमें उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सात और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छह जिले आते हैं। उत्तर प्रदेश के हिस्से के सात जिलों- झांसी (Jhansi), ललितपुर (Lalitpur), जालौन (jalaun), हमीरपुर (Hamirpur), बांदा (Banda), महोबा (mahoba) व कर्बी (चित्रकूट) में विधानसभा की 19 सीटें आती हैं। इस क्षेत्र में 27 फीसदी सामान्य, 43 फीसदी ओबीसी और 21 फीसदी अनुसूचित जाति का मिश्रण है। बुन्देलखंड की 19 सीटों पर तीसरे और चौथे चरण में 20 तथा 23 फरवरी को वोट डाले जायेंगे।

भाजपा के लिए बुंदेलखंड में बड़ा इम्तेहान 

बुंदेलखंड की 19 सीटों के लिए सभी दलों ने पूरा जोर लगा रखा है और यही वजह है कि प्रियंका गाँधी, मायावती, अमित शाह और अखिलेश यादव – सभी ने इस रीजन में जगह जगह जनसभाएं कर डाली हैं। भाजपा के लिए बुंदेलखंड में बड़ा इम्तेहान इसलिए भी कि पिछले चुनाव में उसने सभी 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऊपरी तौर पर इस क्षेत्र में मुकाबला भाजपा और सपा के बीच दिख रहा है लेकिन बसपा को मुकाबले से बाहर नहीं कहा जा सकता है। दरअसल यूपी के अन्य हिस्सों की तुलना में बुंदेलखंड काफी पिछड़ा इलाका है। विश्लेषकों का कहना है कि इस इलाके में ज्यादातर छोटे किसान हैं। यहाँ पानी की समस्या रहती है। साथ ही यहाँ दलितों और ओबीसी की संख्या काफी ज्यादा है। इसी वजह से राजनीतिक दलों का जोर यहाँ अच्छा स्कोर करने का रहता है क्योंकि इसके जरिये वे राज्य के अन्य इलाकों में एक सकारात्मक सन्देश देने की कोशिश करते हैं।

राजनीतिक सिद्धांत का पहली बार परीक्षण करने का मौका 

बसपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव में सात सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार मायावती अपनी पार्टी की खोई जमीन फिर वापस पाने की उम्मीद कर रही हैं। बुंदेलखंड के जालौन क्षेत्र को कांशीराम की बहुजन राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता था। 1987 में जालौन नगर पालिका चुनाव में कांशीराम को अपने राजनीतिक सिद्धांत का पहली बार परीक्षण करने का मौका मिला। दरअसल, उरई में स्थानीय निकाय चुनाव हुआ जिसमें भाजपा के बाबू राम 'एमकॉम' के खिलाफ वीपी सिंह के जनता दल प्रत्याशी अकबर अली मैदान में थे। अकबर अली को भारी हार का सामना करना पड़ा हालाँकि वे पिछड़े और दलित समुदायों के वोट जुटाने में सफल रहे। कुछ महीने बाद कांशीराम और मायावती ने इस निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और 1989 के विधानसभा चुनावों के लिए अकबर अली को बसपा उम्मीदवार घोषित कर दिया।

इसके अलावा बसपा ने जालौन जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में एक मुस्लिम उम्मीदवार, दो ओबीसी और एक दलित चेहरे को मैदान में उतारा। 1989 के चुनाव में बसपा ने 12 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। इस तरह बुंदेलखंड कभी बसपा का गढ़ हुआ करता था लेकिन जब से भाजपा ने ओबीसी और दलित वोट में सेंधमारी की तबसे बसपा का वोट छिटक गया है। इस बार पार्टी ने जाटवों के अलावा अपने वोट हासिल करने की उम्मीद में अन्य समुदायों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। किसी समय में बसपा के पास नसीमुदीन सिद्दीकी, बाबु सिंह कुशवाहा और दद्दू प्रसाद जैसे बुंदेलखंड के दिग्गज नेता हुआ करते थे लेकिन इन सबके पार्टी छोड़ने के बाद स्थिति बदल गयी है।

समाजवादी पार्टी की उम्मीद भी 8 फीसदी यादवों के अलावा अन्य समुदायों के वोट बटोरने पर टिकी है। सपा पार्टी द्वारा इस बार के प्रत्याशियों के चुनाव से उसके इस प्रयास को साफ देखा जा सकता है। सपा के लिए बुंदेलखंड एक बड़ी चुनौती रहा है। इस पार्टी का सबसे बढ़िया प्रदर्शन 2007 के चुनाव में रहा था जब उसने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी। अखिलेश यादव अक्टूबर में यहाँ विजय यात्रा निकाल चुके हैं। 

भाजपा का मिशन बुंदेलखंड 

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अक्टूबर 2016 में एक परिवर्तन रैली के साथ यहां से भाजपा के 'मिशन बुंदेलखंड' की शुरुआत की थी। यह पहली बार था जब कोई प्रधानमंत्री इस क्षेत्र के बेहद पिछड़े जिले महोबा का दौरा कर रहा था। इस रणनीति ने जाहिर तौर पर काम किया और 2017 में भाजपा ने बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर जीत हासिल की।

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