UP Election 2022: देवबंद में रोचक मुकाबला, भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती
UP Election 2022: चुनावी तौर पर देवबंद को मुसलमानों के लिए एक सुरक्षित सीट कहा जा सकता है क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र के लगभग साढ़े तीन लाख मतदाताओं में से लगभग 1 लाख 20 हजार मुसलमान हैं।
UP Election 2022: देवबंद (Deoband) इस्लामिक मदरसे दारुल उलूम (Darul Uloom) और सुन्नी इस्लामी आंदोलन का केंद्र है और मुस्लिम समुदाय के लिए फतवा जारी करने के लिए जाने जाने वाले रूढ़िवादी मौलवियों का घर है। चुनावी तौर पर देवबंद को मुसलमानों के लिए एक सुरक्षित सीट कहा जा सकता है क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र के लगभग साढ़े तीन लाख मतदाताओं में से लगभग 1 लाख 20 हजार मुसलमान हैं।
लेकिन कहा जाता है कि देवबंद का मुस्लिम समुदाय (Muslim community) भी चाहता है कि उनका जनप्रतिनिधि कोई हिन्दू हो। विश्लेषकों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय ऐसा व्यक्ति चाहता है जो उनका प्रतिनिधि करे, और इसके लिए मुस्लिम का होना जरूरी नहीं है।
भाजपा के बृजेश सिंह को 2017 के चुनाव में मिली थी जीत
2017 के चुनाव में सपा और बसपा दोनों ने देवबंद से मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। उनकी उपस्थिति ने सांप्रदायिक आधार पर चुनाव का ध्रुवीकरण किया और भाजपा के बृजेश सिंह को 30,000 से अधिक मतों से जीतने में मदद मिली। विजेता को लगभग एक लाख वोट मिले (देवबंद में मुसलमानों की कुल संख्या से कम) जबकि सपा प्रत्याशी माविया अली 55,000 से अधिक मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं।
इस बार के चुनाव में सपा और बसपा दोनों ही हिंदू उम्मीदवारों के साथ चुनाव मैदान उतरे हैं। ऐसे में अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना नहीं बनती दिख रही है। माना जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय सपा उम्मीदवार कार्तिकेय राणा को वोट देगा और हिंदू वोट सभी उम्मीदवारों के बीच बंट जाएगा। भाजपा ने इस सीट पर जहां बृजेश सिंह रावत को उतारा है तो सपा ने पूर्व मंत्री राजेंद्र राणा के बेटे कार्तिकेय राणा पर भरोसा जताया है।
बसपा से राजेन्द्र सिंह और एआईएमआईएम से उमैर मदनी उम्मीदवार
बसपा (BSP) ने राजेन्द्र सिंह को मौका दिया है। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम (AIMIM) ने प्रसिद्ध मदनी परिवार के सदस्य मौलाना उमैर मदनी को देवबंद से अपना उम्मीदवार बनाया है। मौलाना उमर मदनी के चाचा मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं और उनके दादा अरशद मदनी दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल हैं। कांग्रेस उम्मीदवार, जिसका नाम कम ही लोग जानते हैं, वह भी एक मुस्लिम है। लेकिन, मुसलमानों का कहना है कि वे एआईएमआईएम, कांग्रेस या मदनी परिवार को वोट बांटने नहीं देंगे।
देवबंद के मुसलमानों की सोच पूरे पश्चिम यूपी में व्यावहारिकता पर आधारित एक सामरिक रणनीति की ओर इशारा करती है। ज्यादातर जगहों पर मुस्लिम समुदाय ने हिंदू उम्मीदवारों के पक्ष में मुस्लिम उम्मीदवारों पर अपने दावे को छोड़ देने के विचार को समेट लिया है। मिसाल के तौर पर, देवबंद में सपा का मानना है कि कार्तिकेय राणा को मुसलमानों और राजपूतों (लगभग 35,000) और कुछ अन्य जाति समूहों का समर्थन मिलेगा।
चुनावी इतिहास
इस सीट का चुनावी इतिहास (Electoral history of Deoband seat) किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं जाता है। 2017 के चुनावों में इस सीट पर बृजेश रावत को सफलता मिली थी तो वहीं सपा के माजिद अली उपविजेता रहे थे। 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा के राजेंद्र सिंह राणा ने करीब 3 हजार वोटों के अंतर से बसपा प्रत्याशी को हराया था। 2007 में बसपा के मनोज चौधरी ने भाजपा के शशिबाला पुंडीर को 17 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था।
देवबंद में पहला चुनाव 1952 में आयोजित किया गया था, तब से लेकर 2017 तक भाजपा इस सीट पर तीन बार जीत दर्ज करने में सफल रही है। 2017 में भाजपा ने 21 साल बाद जीत दर्ज की थी। इससे पहले 1996 में भाजपा उम्मीादवार सुखबीर सिंह पुंडीर जीत दर्ज कर विधायक बने थे। 1993 के चुनाव में भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी। वैसे, इस सीट पर सबसे अधिक 9 बार कांग्रेस ने सिक्का जमाया है।
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