UP Election 2022: कासगंज सीट जीतने वाले दल की ही लखनऊ में सरकार, इस बार के नतीजे पर लगी हैं सबकी निगाहें

UP Election 2022: पिछले तीन चुनावों को देखा जाए तो कासगंज सीट पर जीत हासिल करने वाली पार्टी ही प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Monika
Update: 2022-02-12 04:00 GMT

 यूपी चुनाव 2022 (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

UP Election 2022: कासगंज (Kasganj) जिले में विधानसभा की तीन सीटें हैं और 2017 के चुनाव में भाजपा (BJP) ने इन तीनों सीटों पर जीत हासिल की थी। इस जिले की तीन सीटों कासगंज (Kasganj), अमांपुर (Amanpur) और पटियाली (Patiali) में कासगंज सीट Kasganj Seat) को काफी अहम माना जाता रहा है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) भी 1993 में कासगंज सीट से चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अतरौली सीट अपने पास रखते हुए इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। इस सीट पर कभी किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा है।

यदि पिछले तीन चुनावों को देखा जाए तो कासगंज सीट पर जीत हासिल करने वाली पार्टी ही प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही है। 2007 के चुनाव में इस सीट पर बसपा (bsp) को जीत मिली थी तो प्रदेश में भी मायावती (Mayawati) की अगुवाई में बसपा सरकार ने सत्ता संभाली थी। 2012 के चुनाव में इस सीट पर सपा (SP) प्रत्याशी जीता था तो प्रदेश में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की अगुवाई में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी। 2017 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा (BJP) प्रत्याशी कामयाब रहा था तो प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (CM Yogi)की अगुवाई में भाजपा सरकार की ताजपोशी हुई थी। यही कारण है कि इस बार के चुनावी नतीजे पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

कासगंज सीट का इतिहास (Kasganj seat History)

एटा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली कासगंज विधानसभा सीट 1952 में अस्तित्व में आई थी। भाजपा को इस सीट पर 1991, 1993, 1996 और 2017 में चार बार जीत हासिल हुई है। कांग्रेस इस सीट पर कुल 6 बार 1951, 1957, 1967, 1974, 1980 और 1985 में जीत हासिल कर चुकी है। समाजवादी पार्टी को 2002 और 2012 में इस सीट पर जीत मिली है जबकि बसपा 2007 में इस सीट पर जीतने में कामयाब हुई थी। 1962 और 1969 में इस सीट पर जनसंघ को जीत मिली थी जबकि 1977 में जनता पार्टी ने इस सीट पर विजय हासिल की थी। 1989 में जनता दल के प्रत्याशी को यहां पर जीत मिली थी।

कासगंज सीट का जातीय समीकरण (Kasganj seat Caste equation) 

यदि क्षेत्र के जातीय समीकरण को देखा जाए तो 25 फ़ीसदी लोथ मतदाता किसी भी प्रत्याशी की जीत और हार में सबसे बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। यादव, मुस्लिम, ठाकुर, ब्राह्मण,शाक्य और जाटव जाति के मतदाताओं की भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यही कारण है कि अभी तक इस सीट पर लोध बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले प्रत्याशियों का ही वर्चस्व रहा है।

कल्याण सिंह ने भी 1993 में इस सीट पर जीत हासिल की थी। बाद में उन्होंने अतरौली सीट अपने पास रखी थी क्योंकि उन्हें उस सीट पर भी जीत हासिल हुई थी। 2009 में कल्याण सिंह एटा से सांसद चुने गए थे जबकि मौजूदा समय में उनके बेटे राजवीर सिंह एटा सीट से सांसद हैं।

2007 और 2012 का चुनाव

यदि पिछले तीन चुनावों को देखा जाए तो कासगंज सीट पर जीत हासिल करने वाले दल की ही लखनऊ में सरकार बनी है। 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बसपा के हजरत उल्लाह शेरवानी को जीत मिली थी और तब लखनऊ में मायावती की अगुवाई में बसपा सरकार का गठन हुआ था।

2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सपा को कामयाबी मिली थी। सपा उम्मीदवार मनपाल सिंह ने बसपा के शेरवानी को चुनावी अखाड़े में पटखनी दे दी थी। यह अजीब संयोग है कि 2012 में सपा प्रत्याशी की जीत के बाद प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा सरकार बनी थी।

2017 का जनादेश

यदि 2017 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो इस सीट पर भाजपा के देवेंद्र सिंह राजपूत ने बाजी मारी थी। उन्होंने सपा उम्मीदवार हजरत उल्लाह शेरवानी को हराया था। बसपा के अजय चतुर्वेदी तीसरे स्थान पर रहे थे। 2017 के साथ भी यह संयोग जुड़ा हुआ है कि भाजपा की जीत के बाद प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भाजपा ने सरकार बनाई थी। यही कारण है कि इस बार के चुनावी नतीजे पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

सभी प्रत्याशी दिखा रहे हैं दमखम

2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में भाजपा ने एक बार फिर देवेंद्र सिंह राजपूत (Devendra Singh Rajput) में भरोसा जताते हुए उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। सपा ने पूर्व विधायक मनपाल सिंह (Manpal Singh) को टिकट देते हुए उनकी घेराबंदी की कोशिश की है। कांग्रेस ने इलाके के प्रमुख किसान नेता कुलदीप पांडे(Kuldeep Pandey) को टिकट दिया है जबकि बसपा के टिकट पर प्रभु दयाल वर्मा (Prabhu Dayal Verma) अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ ही सभी प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है। लोध मतदाताओं के दम पर भाजपा एक बार फिर इस सीट को जीतने की कोशिश में जुटी हुई है जबकि सपा-रालोद गठबंधन की ओर से भाजपा को कड़ी चुनौती भी मिल रही है।

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