UP Election 2022: कितना असरकारक होगा पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा, सपा के सियासी दांव की नहीं मिल रही काट
UP Election 2022 : सपा ने पुरानी पेंशन का वादा करके बड़ा सियासी दांव खेल दिया है। पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपनी हर चुनावी सभा में पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा जरूर उठा रहे हैं।
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार बाजी जीतने के लिए तमाम मुद्दे उछाले जा रहे हैं। इन मुद्दों में एक बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली (old pension scheme reinstatement) का भी है। सपा ने पुरानी पेंशन का वादा करके बड़ा सियासी दांव खेल दिया है। पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपनी हर चुनावी सभा में पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा जरूर उठा रहे हैं। उनके इस सियासी दांव को मतदाताओं का समर्थन भी मिल रहा है।
प्रदेश में लाखों सरकारी कर्मचारी नई पेंशन स्कीम से संतुष्ट नहीं है। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में मीडिया की ओर से की जा रही बातचीत में सरकारी कर्मचारी इसके विरोध में मुखर दिख रहे हैं। ऐसे में भाजपा इस मुद्दे पर रक्षात्मक मुद्रा में दिख रही है। पार्टी को सपा के इस बड़े सियासी दांव की अभी तक काट नहीं मिल सकी है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि सपा का यह दांव कितना असरकारक साबित होता है।
अखिलेश चुनावी सभाओं में उठा रहे हैं मुद्दा
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी चुनावी सभाओं में जानबूझकर पेंशन बहाली का मुद्दा उठा रहे हैं। वे सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। उन्हें पता है कि इस मुद्दे को छेड़कर वे सरकारी कर्मचारियों की दुखती रग पर हाथ रख रहे हैं। इसीलिए वे अपनी सभाओं में पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से लागू करने की बात दोहरा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि उनकी इस बाबत कर्मचारी नेताओं और आर्थिक जानकारों से बातचीत हो चुकी है। इसे लागू करना कोई कठिन काम नहीं है और इसके लिए धन के बंदोबस्त का रास्ता भी खोज लिया गया है।
जानकारों का कहना है कि मौजूदा समय में प्रदेश में करीब 28 लाख सरकारी कर्मचारी और पेंशनरों हैं। इनके साथ उनका परिवार भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में यह बड़ा वोट बैंक है जिस पर सपा ने नजर गड़ा रखी है। अगर पुरानी पेंशन की बहाली के मुद्दे पर सपा इस वोट बैंक का बड़ा हिस्सा पाने में कामयाब रही तो भाजपा को झटका लग सकता है।
सपा को घेरने में जुटे हुए हैं योगी
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर बैकफुट पर नजर आ रही है। सरकार की ओर से पहले ही सदन में स्पष्ट किया जा चुका है कि उसका इरादा पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने का नहीं है। भाजपा की ओर से इस तरह का कोई चुनावी वादा किया भी नहीं गया है। ऐसे में भाजपा इस मुद्दे को लेकर सपा पर हमला करने में जुटी हुई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस मुद्दे पर कहना है कि सपा शायद इस बात को भूल गई है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में ही प्रदेश में नई पेंशन स्कीम को लागू किया गया था।
वे सपा को घेरते हुए यह भी कहते हैं कि मायावती के शासन के बाद 2012 से 2017 तक अखिलेश खुद मुख्यमंत्री रहे मगर अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पुरानी पेंशन को बहाल नहीं किया। उनका आरोप है कि चुनावी फायदे के लिए सपा की ओर से सरकारी कर्मचारियों को सिर्फ लॉलीपॉप दिया जा रहा है। इस मामले में सपा की नीयत साफ नहीं है। हालांकि वे अपनी सरकार की ओर से इसे लागू करने के बारे में कोई वादा नहीं करते।
इसलिए भाजपा के गले की फांस बना मुद्दा
दरअसल, यह मुद्दा भाजपा के गले की फांस इसलिए भी बन गया है क्योंकि 2004 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में नई पेंशन स्कीम को लागू किया गया था। उस समय अटल सरकार की ओर से लाए गए प्रस्ताव के मुताबिक कहा गया था कि 31 दिसंबर 2012 की जॉइनिंग वाले सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलेगा। इसे नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस नाम दिया गया।
2004 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से एनपीएस के फायदे भी गिनाए गए थे मगर कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए ने भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को सत्ता से बेदखल कर दिया था। हालांकि सरकार जाने के बाद भी एनपीएस को खत्म नहीं किया गया। केंद्र सरकार की ओर से पेंशन के संबंध में लाए गए प्रस्ताव में इसे राज्यों पर न थोपने की बात कही गई थी।
उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और उनकी सरकार ने अप्रैल 2005 में इसे उत्तर प्रदेश में भी लागू कर दिया था। अब अखिलेश यादव की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने की बात कही जा रही है तो भाजपा इसे मुलायम सिंह की ओर से लागू किए जाने वाला फैसला बताकर अपना बचाव करने में जुटी हुई है।
पुरानी पेंशन के समर्थन में कर्मचारी
राज्य के विभिन्न कर्मचारी संघ की ओर से समय-समय पर पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने की मांग की जाती रही है। हालांकि योगी सरकार की ओर से कभी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। अब सपा मुखिया अखिलेश यादव की ओर से किए गए चुनावी वादे के बाद कई कर्मचारी संघों के नेता उनके फैसले का स्वागत कर रहे हैं।
सपा और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है मगर यह देखने वाली बात होगी कि सपा का यह सियासी दांव विधानसभा चुनाव में कितना असरकारक साबित होता है। यदि सपा सरकारी कर्मचारियों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही तो यह भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।