UP Election Results 2022: उत्तर प्रदेश में योगी की वापसी के साथ टूटेंगे कई मिथक, बनेंगे ये रिकॉर्ड
UP Election Results 2022: यूपी में एक बार फिर से कमल खिलता दिखाई दे रहा है। देश के सबसे बड़े राज्य में योगी आदित्यनाथ की वापसी के बाद कई मिथक टूटेंगे।
UP Election Results 2022: राजनीति, खेल और पढ़ाई तीनों ऐसे क्षेत्र हैं, जहां आपकी सफलता दूसरे की विफलता पर भी निर्भर करती है। पर उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों (Uttar Pradesh Election Results) में मोदी व योगी की जोड़ी ने अपनी सफलता की कहानी दूसरों की विफलता पर नहीं लिखी है। तभी तो योगी ने उन सभी मिथकों को तोड़ दिया। जो लंबे समय से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (UP Chief Minister) के पैरों की बेड़ी बने हुए थे। नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए तमाम मिथ पहले ही तोड़ चुके हैं। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने मिथक जो तोड़े -
1 - नोएडा (Noida) जो भी मुख्यमंत्री गया, उसकी सत्ता नहीं लौटी। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) इस मिथ को तोड़ते हुए कई बार गये। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath Government) से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने कार्यकाल में कभी नोएडा (Noida) नहीं गए। राजनाथ सिंह तक नोएडा नहीं गए। दरअसल - नोएडा के बारे में अंधविश्वास वीर बहादुर सिंह के समय से शुरू हुआ, जब 1988 में केंद्रीय नेतृत्व ने उनको पद छोड़ने को कहा था। इत्तेफाक की बात है कि वीर बहादुर नोएडा के दौरे से लौटे ही थे कि उनको केंद्रीय नेतृत्व का पैगाम मिला था।
इसके बाद नारायण दत्त तिवारी (Narayan dutt tiwari) जब सीएम बने लेकिन वो भी 1989 में नोएडा के दौरे के कुछ दिन बाद ही सत्ता से बाहर हो गए। 1995 में मुलायम सिंह यादव सत्ता से बाहर हो गए थे। इत्तेफाक से वो भी नोएडा गए थे और उसके कुछ दिन बाद ही मुलायम चुनाव हार गए। 1997 में मायावती (Mayawati) नोएडा हो कर आयीं और उसके बाद उनकी सत्ता चली गयी। 1999 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के साथ भी ऐसा हुआ कि नोएडा का चक्कर लगाने के बाद वे सत्ता से बाहर हो गए। जब मायावती 2007 में यूपी की चीफ मिनिस्टर थीं तब वे कई प्रोग्रामों में शिरकत करने नोएडा गईं। लेकिन 2012 के चुनाव में बसपा हार गयी और नोएडा का नाम फिर बदनाम हो गया।
यही नहीं, 1987 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Former pm Rajiv Gandhi) नोएडा गए थे और उसके बाद वो अपना पद खो बैठे। 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह दादरी गए थे और उसके बाद उनकी कुर्सी चली गयी। 2014 में मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) नोएडा गए और उसके बाद हुए चुनावों में उनकी सरकार चली गयी। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
2- 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में कोई सरकार लगातार दोबारा नहीं आई है। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की जनता दल (Janta Dal) सरकार 5 दिसंबर 1989 को सत्ता में आई। लेकिन 1 साल 201 दिन रही और 24 जून, 1991 तक मुलायम सीएम रह पाए। इसके बाद कल्याण सिंह (Kalyan Singh) की भाजपा (BJP) सरकार बनी। कल्याण 24 जून, 1991 से 6 दिसंबर, 1992 तक सीएम रह पाए। मुलायम सिंह (Mulayam singh) सत्ता में लौटे और समाजवादी पार्टी की सरकार में 4 दिसंबर, 1993 से 3 जून, 1995 तक सीएम रहे। इसके बाद बसपा (BSP) सत्ता में आ गयी और मायावती (Mayawati) 3 जून, 1995 से 18 अक्टूबर, 1995 तक मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद एक साल 154 दिन तक राष्ट्रपति शासन रहा। लेकिन चुनाव होने पर गठबंधन सरकार में मायावती 184 दिन तक सीएम रहीं।
इसके बाद कल्याण सिंह (Kalyan Singh) 2 साल 52 दिन मुख्यमंत्री रहे। रामप्रकाश गुप्ता 351 दिन और राजनाथ सिंह (Rajnath singh) 1 साल 131 दिन सीएम रहे। 14 वीं विधानसभा में मायावती 3 मई, 2002 से 29 अगस्त, 2003 तक मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद मुलायम सिंह यादव 3 साल 257 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। 15 वीं विधानसभा में मायावती सत्ता में लौटीं और 13 मई, 2007 से 7 मार्च, 2012 तक मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद अखिलेश यादव 15 मार्च, 2012 से 19 मार्च , 2017 तक मुख्यमंत्री रहे। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
3- मेट्रो का शिलान्यास करने वाले देश के किसी भी मुख्यमंत्री को मेट्रो का उद्घाटन करने का अवसर नहीं मिला। लखनऊ मेट्रो की शुरुआत मायावती के समय में हुई थी। कानपुर मेट्रो का भूमिपूजन अखिलेश यादव ने किया था। पर वह उद्घाटन नहीं कर पाये। केरल, राजस्थान और तमिलनाडु में भी ऐसा ही हुआ है, जहां मेट्रो का शिलान्यास करने वाले उसका उद्घाटन नहीं कर पाए। हालांकि इसकी वजह यह भी है कि मेट्रो के शिलान्यास से उद्घाटन तक कई बरस लग जाते हैं। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
4- नरेंद्र मोदी व अमित शाह के काल की भाजपा की जिस भी राज्य सरकार में पांच साल एक मुख्यमंत्री ने पूरा किया। वहां भाजपा सरकार वापस नहीं लौटी है। यदि लौटी है तो बैसाखी पर है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में सत्ता संभाल रही थी। मार्च 2018 आते-आते भाजपा 21 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही। यानी चार साल में तिगुना विस्तार। ये पहली बार था, जब पंजाब को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में भाजपा अकेले या अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार में थी। भाजपा का विजयरथ 2018 से रुकना शुरू हुआ, जब कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन ने सरकार बना ली। हालांकि ये सरकार ज़्यादा दिन नहीं चली और कुछ वक़्त बाद भाजपा ने फिर से राज्य में सरकार बना ली।
इसके बाद महाराष्ट्र राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा हार गयी। 2014 में ही लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा ने राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में भी सरकार बनाई थी। वहीं, पार्टी पंजाब और नगालैंड में साझेदारी के रूप में सरकार का हिस्सा थी। 2015 में पार्टी ने अपना दायरा बढ़ाया और 5 से बढ़कर 8 राज्यों में अपने दम पर सरकार बना ली। इसके अलावा भाजपा बिहार, जम्मू-कश्मीर, पंजाब के अलावा आंध्रप्रदेश में सत्ता में साझेदार बनी। 2016 में भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में भी सत्ता में साझेदारी हासिल की। 2017 में भाजपा ने यूपी में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। भाजपा शासित राज्यों की संख्या 2016 के 9 राज्यों के मुकाबले बढ़कर 13 तक पहुंच गई।
2018 में भाजपा ने तीन राज्यों - राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता खो दी। इस साल भाजपा सबसे अधिक 15 राज्यों में सत्ता में थी और पांच राज्यों में सत्ता में साझेदारी भी कर रही थी। 2019 में भाजपा को राजस्थान और मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में सत्ता गंवानी पड़ी। लेकिन अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम में भाजपा सत्तासीन हुई। 2019 में भाजपा 12 राज्यों में खुद की सरकार और 6 राज्यों में अन्य पार्टियों के साथ सत्ता में थी। 2020 में भाजपा मध्यप्रदेश और कर्नाटक में सत्ता पाने में सफल रही। 2020 में भाजपा सिमट कर 11 राज्यों में रह गई। 2021 में भाजपा ने एक राज्य में अपनी सत्ता खोई । वहीं एक राज्य में वह सहयोगी पार्टी के साथ सत्ता में वापस आने में सफल रही। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
5- 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव व 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचंड बहुमत का कारण वोटों का विभाजन बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक होना है। पर अगले चुनाव के लिए भाजपा जाति जाति खेल रही है। बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक में भाजपा को हराना आसान नहीं है।। पर जाति जाति के खेल में विपक्षी मायावती व अखिलेश को ज़्यादा महारत हासिल है। योगी आदित्य ने जाति के खेल में भी समूचे विपक्ष को पटकनी दे दी।
6- एक्सप्रेस वे बनाने वाली किसी भी सरकार की वापसी तुरंत नहीं हुई है। मायावती अपने कार्यकाल में गंगा एक्सप्रेस वे बनवा रही थी। वापसी नहीं हुई। अखिलेश यादव ने आगरा एक्सप्रेस वे का लोकार्पण किया। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे की शुरूआत की। वापसी नहीं हुई। योगी सरकार तो पूर्वांचल एक्सप्रेस वे बना कर लोकार्पित करने वाली है। बुंदेलखंड व गंगा एक्सप्रेस वे पर सरकार का काम जारी है। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
8-उत्तर प्रदेश के चुनाव में जिस पार्टी को ज्वाइन करने की नेताओं में होड़ दिखती है, वहीं पार्टी सरकार बनाती है। इस बार ज्वाइनिंग के लिए नेताओं की पसंद सपा रही। पर योगी ने इसे ख़ारिज करके दिखा दिया।
9- उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री वाली सरकार दोबारा नहीं लौटी है। 1967 में संविद सरकार में भाजपा के राम प्रकाश गुप्ता उपमुख्यमंत्री थे। पर सरकार दोबारा नहीं लौटी। राम प्रकाश गुप्त 13 अप्रैल, 1967 से 25 फरवरी, 1968 तक उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद वे 12 नवम्बर, 1999 से 28 अक्टूबर, 2000 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उप मुख्यमंत्री कोई संवैधानिक पद नहीं है। संविद सरकार - राम प्रकाश गुप्त यूपी में गठबंधन की राजनीति का पहला प्रयोग 1967 से 1971 के दौरान संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकारों के साथ शुरू हुआ जब कांग्रेस कमज़ोर हो रही थी। 1967 में उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में विद्रोह हुआ। तत्कालीन किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर भारतीय क्रांति दल पार्टी बनायी।
चौधरी चरण सिंह ने 3 अप्रैल 1967 में पहली बार प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार का गठन किया। यह सरकार 328 दिन तक चली। इस दौरान मुख्यमंत्री का पद म्यूजिकल चेयर के खेल की तरह चलता रहा। 14 मार्च, 1967 से तीन अप्रैल 1971 के बीच पाँच मुख्यमंत्री बने। चंद्रभानु गुप्त और चौधरी चरण सिंह दो-दो बार मुख्यमंत्री बने। पाँचवीं बार त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने। कोई भी एक साल तक पद पर नहीं रह सका। संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में मुख्यमंत्री की नियुक्ति की बात है। लेकिन डिप्टी सीएम के बारे में कोई प्रावधान नहीं है। मंत्रियों के वेतन भत्ते संबंधी एक्ट में मंत्री का उल्लेख है जो मन्त्रिपरिषद का सदस्य होता है। उसे किसी भी नाम से बुलाया जा सकता है।
भारत में डिप्टी पीएम 1947 से अब तक 7 उपप्रधानमंत्री हुए हैं। कोई भी एक टर्म पूरा नहीं कर सका है। पहले डिप्टी पीएम थे सरदार पटेल जो 1947 से 1950 तक इस पद पर रहे। मोरारजी देसाई , चरण सिंह, जगजीवन राम, यशवंत राव चव्हाण, देवी लाल, लालकृष्ण आडवाणी भी डिप्टी पीएम रहे हैं। 1989 में देवीलाल ने शपथ लेते वक्त डिप्टी पीएम शब्द का इस्तेमाल किया था। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई कि ये अनुच्छेद 74 (4) के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने शपथ को वैध ठहराया और कहा कि देवीलाल मात्र एक मंत्री हैं और उन्होंने शपथ में क्या शब्द कहा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
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