बहराइचः राज्य मंत्री यह शब्द सुनते ही धनबल और बाहुबल का दृश्य मन मस्तिष्क में रेखांकित होने लगता है। कारण मौजूदा राजनीतिक दौर में खद्दरधारियों की जीवनशैली अब हाइटेक चकाचौंध से भरी है। चमचमाती लग्जरी चार पहिया, असलहाधारियों की लंबी फौज खद्दरधारियों की पहचान बन चुकी है, इन सबके बीच पंक्चर की दुकान से विधान भवन पहुंचे राज्यमंत्री बंशीधर की अलग पहचान है। बंशीधर के कच्चे मकान की दीवार शनिवार को बारिश की वजह से ढह गई। बंशीधर ने इस पर सरकारी अमले को तलब नहीं किया। घरवालों के साथ उन्होंने खुद मलबा हटाया। खास बात ये कि घटना की जानकारी मिलने पर क्षेत्रीय राजस्वकर्मी मौके पर पहुंचे, लेकिन बंशीधर बौद्ध ने सरकारी मदद लेने से इनकार कर दिया।
समाजवादी पार्टी में है राज्यमंत्री
सत्ताधारी पार्टी के इस नेता की न तो शान शौकत है, न चमचमाती लग्जरी गाड़ी और न ही बंदूकधारियों की फौज। बंशीधर यूपी विधानसभा के ऐसे बेमिशाल विधायक हैं, जिन्होंने मौजूदा नेताओं की हाई फाई जीवनशैली से दूर अपनी झोपड़ी को ही अपना आधार बना रखा है। बहराइच जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर बिछिया इलाके में विधायक का चार छप्परों का आशियाना है। बलहा के उपचुनाव के मैदान में भाजपा को पटखनी देने वाले बंशीधर की जिंदगी की संघर्षों भरी कहानी है। आज वे सत्तारूढ़ पार्टी में समाज कल्याण राज्यमंत्री हैं।
चौकारीदारी की और पंक्चर भी जोड़े
राज्यमंत्री बंशीधर बौद्ध कहते हैं कि ज्यादातर खेत घाघरा की कटान में कट चुके हैं। महज पांच एकड़ खेत बचे हैं लेकिन घर का खर्च चलाना मुश्किल था। इसके चलते सेंट्रल स्टेट फार्म में चौकीदारी की थी, लेकिन दशक भर पूर्व सेंट्रल स्टेट फार्म बंद होने पर नौकरी भी खत्म हो गई। प्रतिमाह दो हजार रूपए मिल जाते थे। नौकरी छूटने के बाद स्टेट फार्म के गेट पर ही साइकिल का पंक्चर बनाकर दिन गुजारे हैं। इसी कारण बच्चों को ज्यादा पढ़ा भी नहीं पाया।
बहनजी का साथ छोड़ आम से खास हो गए बंशीधर
राज्यमंत्री बंशीधर ने बसपा के काडर से राजनीति शुरु की थी। वनग्रामीणों की हक के खातिर संघर्ष करते-करते साल 2000 में उन्होंने जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव में भाग्य अजमाया। किस्मत ने साथ दिया और पंचायत सदस्य चुने गए। साल 2005 में दूसरी बार बंशीधर पंचायत सदस्य चयनित हुए और इसके बाद उनके मन में विधायक बनने का सपना हिलोरे मारने लगा। आखिरकार 13 सितम्बर 2014 को बलहा विधान सभा के उपचुनाव में बंशीधर माननीय हो गए। बंशीधर का कहना है कि यह सपना इतनी जल्दी सच होगा, इसकी उम्मीद नहीं थी। वे सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का आभार जताना नहीं भूलते हैं।
70 के दशक में बहराइच आया था बंशीधर का परिवार
राज्यमंत्री बंशीधर बलिया जिले के रहने वाले हैं। अतीत के पन्नों को पलटते हुए वे कहते हैं कि 70 के दशक में उनके बाबा परिवार समेत गिरिजापुरी स्थित हनुमानगढ़ी गांव आकर बस गए थे। जंगल की ही जमीन पर खेती बारी कर दो जून की रोटी का इंतजाम होने लगे और एक दिन डाक विभाग ने घने जंगलों के बीच जंगली जानवरों, चोर, डाकुओं से अपनी डाक बचाने के लिए बंशीधर को नौकरी दे दी। लेकिन यह नौकरी ज्यादा दिन नहीं चली। वे बताते हैं कि 80 के दशक में आई बाढ़ से पूरा गांव बह गया। गांव के पांच हजार बाशिंदे इधर-उधर बिखर गए। उसी बाढ़ के बाद टेड़िया नईबस्ती गांव में उन्होंने आशियाना बनाया।
खूब अजमाए पहलवानी के दांव पेंच
फर्श से अर्श का सफर तय करने वाले बंशीधर बौद्ध पहलवानी के दांव पेंच भी बखूबी जानते हैं। ये हुनर उन्होंने जब्बार पहलवान से सीखे थे। 6 साल पहले उन्होंने गोंडा और लखीमपुर जिले में होने वाले दंगलों में कई बार दांव अजमाया और पहलवानों को पटखनी दी।
पैसा वो खर्च करे जिन नेताओं के पास टाइम नहीं
बंधीधर कहते हैं कि चुनाव में धनबल और बाहुबल हावी है, लेकिन सब कुछ पैसा नहीं है। वे कहते हैं कि हम अपने पैसे से चुनाव नहीं लड़ते हैं। चंदा मांगते हैं। ये गरीब दुखिया जनता मेरा चुनाव लड़ती है। विधायकी का चुनाव सिर्फ 35 हजार में जीता था। विपक्षी लाखों खर्च कर हार गए। अब अगर पार्टी जनता की सेवा करने का मौका देती है तो जरुर चुनाव लड़ूंगा। मैं विधायकी चुनाव जीतने के दिन से ही तैयारी कर रहा हूं। घर-घर लोगों से मिलता हूं। पैसा वो लोग खर्च करें जिनके पास जनता जनार्दन के लिए टाइम नहीं है।
महापुरुषों से संघर्ष की मिली प्रेरणा
बचपन से ही बंशीधर को महापुरुषों और आजादी के नायकों की जीवनी पढ़ने में खासा दिलचस्पी थी। वे कहते हैं कि डॉ भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल खां, अशफाक उल्ला खां, मंगलदेव पांडेय का इतिहास मैंने पढ़ा है। इन नायकों की गाथाओं ने मुझे आगे बढ़ने और गरीबों की सेवा करने की प्रेरणा दी है।
खुद निपटाते हैं काम, नौकर नहीं
साधारण झोपडी में रहते हुए विधायक से राज्यमंत्री बने बंशीधर ने अपने जीवन को बेहद सरल बना रखा है। वे सुबह पांच बजे उठ जाते हैं। सुबह मवेशियों का गोबर उठाना, घर और दरवाजे की सफाई, भैंसो को चारा लगाना, दूध दुहना आदि सभी काम राज्यमंत्री स्वयं करते हैं। उनके घर कोई नौकर नहीं है। इस कार्य में उनकी पत्नी और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं। इसके बाद प्रतिदिन जन सुनवाई करते हैं। जो काम फोन पर निपट जाता है, वो ठीक वरना पीड़ित के साथ अफसर के यहां भी पहुंच जाते हैं। इलाके में उनके सरकारी काम काज के तरीके से भले सारे लोग खुश न हों लेकिन उनकी साधारण जीवन शैली पर कोई सवाल नहीं खड़ा करता।