UP Nikay Chunav 2023 Result : योगी बुलंदी पर अखिलेश नहीं कर सके टेकऑफ
UP Nikay Chunav 2023 Result: सीएम योगी ने निकाय चुनाव के लिए ऐसा समीकरण बनाया जिसके सामने सपा, बसपा और कांग्रेस फेल हो गए। निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत के पीछे सीएम योगी की ही रणनीति रही है जो आज दिख रही है।
UP Nikay Chunav 2023 Result: 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रचंड जीत के बाद निकाय चुनाव में भी अखिलेश यादव सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने नहीं टिक सके। जहां निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत ने योगी को बुलंदियों पर पहुंचा दिया तो वहीं अखिलेश टेक आॅफ भी नहीं कर सके।
सीएम योगी ने निकाय चुनाव के लिए ऐसा समीकरण बनाया जिसके सामने सपा, बसपा और कांग्रेस फेल हो गए। निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत के पीछे सीएम योगी की ही रणनीति रही है जो आज दिख रही है। यूपी में निकाय चुनाव की कई सीटों पर मतगणना जारी है तो वहीं कई सीटों के परिणाम घोषित हो चुके हैं। अभी तक के आए नतीजों में अधिकतर सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। नतीजों से यह साफ हो गया है कि बीजेपी नगर निगम की मेयर से लेकर नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष पद की सीटों पर जीत दर्ज करती नजर आ रही है। वहीं मेयर की 17 सीटों पर हुए चुनाव में सपा और कांग्रेस का तो खाता खुलता भी नजर नहीं आ रहा है जबकि बसपा बीजेपी को जरूर टक्कर देती दिखी।
भाजपा की इस जीत के पीछ सीएम योगी का समीकरण काम आया है। योगी ने जिस तरह से रणनीति बनाई और अपने मंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतारा उसका नजीता आज साफ दिख रहा है।
सबसे अधिक दांव पर थी बीजेपी की प्रतिष्ठा -
यूपी निकाय चुनाव में अगर सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा किसी की दांव पर थी तो वह है बीजेपी। शहरी इलाके हमेशा से बीजेपी के गढ़ रहे हैं। पिछली बार भी बीजेपी का मेयर चुनाव में शानदार प्रदर्शन था, लेकिन नगर पालिका और नगर पंचायत में वह पिछड़ गई थी। इस बार के चुनाव में बीजेपी ने मेयर से लेकर नगर पालिका और पंचायत अध्यक्ष सीटों पर भी जीत का परचम लहराया है।
सवर्णों पर खेला दांव रहा सफल-
बीजेपी की जीत में सवर्ण मतदाताओं की अहम भूमिका रही। पार्टी ने सवर्णों पर दांव खेला और वह इस दांव में सफल भी रही। शहरी क्षेत्र में ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ, पंजाबी मतदाता निर्णायक भूमिका में रहा है, जिसके चलते बीजेपी ने सवर्णों पर दांव खेला और यह दांव पूरी तरह सफल रहा। यूपी में मेयर की कुल 17 सीटों पर बीजेपी ने पांच ब्राह्मण, चार वैश्य प्रत्याशी उतारकर शहरी सीटों के समीकरण को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया। सवर्ण वोटर बीजेपी का कोर वोटर्स है और यही कारण रहा कि पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की है।
शहरों में रहा बेहतर प्रदर्शन-
वैसे तो शहरी इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन हमेशा से बेहतर रहा है। इस बार भी प्रदर्शन शानदार रहा। बीजेपी 2017 से पहले जब सत्ता से बाहर थी तब भी निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती रही है। बीजेपी का राजनीतिक जनाधार शहरी इलाकों में हमेशा से रहा है, जिसके दम पर पार्टी ने इस बार भी निकाय चुनाव में शानदार जीत दर्ज करती रही है। बीजेपी का सत्ता में रहने का भी उसे सियासी फायदा मिला है। पिछली बार 16 मेयर में से 14 मेयर बीजेपी के जीते थे और इस बार क्लीन स्वीप करती हुई दिख रही है।
कैंडिडेट का चयन बेहतर रहा
भाजपा ने नगर निकाय चुनाव की तैयारी 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही शुरू कर दी थी। पार्टी ने अपने मंत्रियों और विधायकों के परिवार के सदस्यों को टिकट न देकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में उतारा। इसके अलावा नगर निगम और नगर पालिक के लिए जिन सीटों पर मौजूदा मेयर और अध्यक्ष के खिलाफ कुछ भी माहौल नजर आया उनका टिकट काट दिया। बीजेपी ने अपनी आधी से ज्यादा मौजूदा मेयर की जगह नए और युवा चेहरों को मैदान में उतारा।
योगी टीम का उतरना सफल रहा-
नगर निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक सहित सभी मंत्री पूरे दमखम के साथ प्रचार में जुटे थे। सीएम योगी ने ताबड़तोड़ जनसभाएं कीं। उन्होंने यूपी के 75 जिलों में से आधे से ज्यादा में चुनावी रैलियां कीं। इसके अलावा दोनों डिप्टी सीएम, सभी मंत्री, विधायक, सांसद भी चुनावी मैदान में जुटे रहे। बीजेपी ने इस निकाय चुनाव को विधानसभा और लोकसभा की तरह लड़ा, जिसका उसे सियासी फायदा मिला। वहीं अखिलेश यादव कुछ चुनिंदा सीटों पर ही प्रचार किए जबकि मायावती और प्रियंका गांधी कहीं नजर ही नहीं आईं।
पसमांदा पर चला दांव आया काम-
बीजेपी ने नगर निकाय चुनाव में पहली बार 350 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे और उसमें 90 फीसदी पसमांदा मुस्लिम थे। नगर निगम में पार्षद उम्मीदवार, नगर पालिका की छह अध्यक्ष और सभासद सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे। इसी तरह नगर पंचायत में अध्यक्ष पद की 38 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारेे। पश्चिमी यूपी की 18 नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं। ब्रज क्षेत्र में 8, अवध क्षेत्र में छह, गोरखपुर क्षेत्र में दो मुस्लिम चेहरों को प्रत्याशी बनाया गया। सहारनपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, शामली, गोरखपुर, जौनपुर, लखनऊ सहित कई जिलों में सभासद और पार्षदों के टिकट भी मुस्लिमों को दिए गए। बीजेपी का यह प्रयोग सफल भी रहा और मुस्लिम बहुल बूथों पर पार्टी को जीत मिली।
आधी आबादी पर फोकस-
बीजेपी ने आधी आबादी यानी महिला वोटर्स पर जमकर फोकस किया था, क्योंकि निकाय चुनाव में 37 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसके लिए पार्टी ने महिला मोर्चा को काफी पहले से काम के लिए जमीन पर उतार रखा था। बीजेपी महिलाओं के लिए ‘सहभोज‘ का आयोजन किया गया। इस सहभोज में मुस्लिम और दलित महिलाओं को खास तौर कर बुलाया गया था। बीजेपी के जीत में महिला मतदातओं की अहम भूमिका रही है।
बीएसपी की मुस्लिम दांव से बिगाड़ा खेल-
नगर निकाय चुनाव में बसपा ने मुस्लिम दांव चला था। बसपा ने 64 फीसदी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। इसके अलावा नगर पंचायत और नगर पालिका सीट पर भी मुस्लिम कार्ड खेला। सपा और कांग्रेस ने 23-23 फीसदी मुस्लिम दांव लगाया। बसपा के इस मुस्लिम पालिटिक्स ने सपा के सारे समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया। बसपा न खुद जीती और न ही सपा-कांग्रेस को जीतने दिया। इसका फायदा भाजपा को मिला। बसपा के मुस्लिम दांव के चलते सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ, मुरादाबाद, बरेली, लखनऊ, शाहजहांपुर सीट पर मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला। प्रयागराज और वाराणसी में त्रिकोणीय लड़ाई मानी जा रही थी जबकि झांसी और आगरा में बीजेपी और बसपा के बीच सीधा मुकाबला रहा। फिरोजाबाद में सपा और बीजेपी लड़ी, लेकिन यहां असदुद्दीन ओवैसी और बसपा ने खेल बिगाड़ दिया।
सपा ने फिर से दोहराई 2022 की गलती-
नगर निकाय चुनाव में सपा ने फिर 2022 वाली गलती दोहराई, जिसका फायदा सीधा बीजेपी को मिला। सपा ने कई ऐसे प्रत्याशी को टिकट देकर मैदान में उतारा, जो न समीकरण में कहीं फिट बैठ रहे थे और न ही उनका कोई सियासी आधार था। शाहजहांपुर में सपा ने जिसे टिकट दिया, वो बीजेपी में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतर गई। बरेली में सपा ने अपने प्रत्याशी से नामांकन दाखिल होने के बाद पर्चा उठवाकर निर्दलीय को समर्थन दिया। रायबरेली नगर पालिका सीट पर बगावत का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ा तो पश्चिमी यूपी में सपा ने आरएलडी के साथ तालमेल नहीं बनाकर रख सकी।
कांग्रेस अपने गढ़ से बाहर बेहाल-
नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस को करारी मात खानी पड़ी है, लेकिन अपने गढ़ को बचाए रखने में सफल रही है। रायबरेली की नगर पालिका और अमेठी की जायस सीट कांग्रेस की झोली में जाती दिख रही है। ऐसे ही अमेठी की मुसाफिरखाना सीट पर भी निर्दलीय को समर्थन कर जीत का दर्ज किया। इसके अलावा मुरादाबाद मेयर सीट पर जरूर बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन बाकी जगह पर कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता भी चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखे, जिसके चलते पार्टी का कोर वोटबैंक दूसरे दलों में शिफ्ट हो गया। इसका बीजेपी को फायदा मिला।
नगर निकाय चुनाव में भाजपा की जीत ने यह साफ कर दिया है कि अखिलेश यादव इस चुनाव में भी योगी को टेकआॅफ नहीं कर पाए।
नगर पालिका और पंचायत चुनाव में जरूर सपा को बसपा-कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं, लेकिन निर्दलीय को पीछे नहीं छोड़ पाई है।
कुल 760 सीटों पर हुए चुनाव-
नगर निकाय की कुल 760 सीटों पर चुनाव हुए हैं, जिनमें 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका और 544 नगर पंचायत की सीटें हैं। इसके अलावा 13 हजार के करीब वार्ड सदस्य की सीटें हैं। नगर निगम की 17 मेयर सीटों में से बीजेपी 17 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। नगर पालिका अध्यक्ष की 199 सीटों में से बीजेपी 88 और उसके बाद निर्दलीय दूसरे नंबर पर रहे हैं। इसी तरह नगर पंचायत की 544 अध्यक्ष पर पद की सीटों में 170 सीटों पर बीजेपी और उसके बाद 150 सीट पर निर्दलीय जीत दर्ज करते दिख रहे हैं। वहीं बसपा, सपा और कांग्रेस के उम्मीदार निर्दलीय से भी पीछे दिख रहे हैं।