Up Nikay Chunav: यूपी में निकाय चुनाव का टलना तय, आयोग बनाकर ओबीसी आरक्षण तय करने में लगेंगे कई माह
Up Nikay Chunav: निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए सरकार को पूरी प्रक्रिया अपनानी होगी। आयोग के गठन के बाद ही इस प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है।
Up Nikay Chunav: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने ओबीसी आरक्षण के बिना यूपी निकाय चुनाव तत्काल कराने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें सामान्य मानी जाएंगी। दूसरी ओर प्रदेश सरकार ने साफ कर दिया है कि बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव नहीं कराए जाएंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साफ तौर पर कहना है कि जरूरी हुआ तो इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी।
मुख्यमंत्री के इस बयान से साफ हो गया है कि सरकार बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा को बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव कराने में बड़ा सियासी नुकसान होने का डर सता रहा है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए अब वक्त लगना तय है क्योंकि इसके लिए सरकार को आयोग का गठन करना होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि निकाय चुनाव अप्रैल या मई से पहले नहीं होंगे।
जल्द चुनाव कराने में कई बाधाएं
निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए सरकार को पूरी प्रक्रिया अपनानी होगी। आयोग के गठन के बाद ही इस प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है। आने वाले दिनों में कई आयोजन भी इस राह में बाधा खड़ी करेंगे। दरअसल सरकार की ओर से फरवरी में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट की तैयारियां जोरशोर से की जा रही हैं। विपक्ष की ओर से सरकार पर इन्वेस्टर समिट की विफलता के आरोप लगाए जाते रहे हैं और यही कारण है कि इस बार सरकार काफी सतर्क है और इस दिशा में काफी ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। फरवरी और मार्च महीने में यूपी बोर्ड समेत अन्य प्रमुख बोर्डों की परीक्षाएं भी होनी हैं। ऐसे में निकाय चुनाव का टलना तय माना जा रहा है।
तैयारियों के मोर्चे पर पिछड़ी हुई दिखी सरकार
निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर नगर विकास विभाग की ओर से शुरुआत से ही काफी लचर रवैया अपनाया गया। इस कारण चुनाव प्रक्रिया काफी देरी से शुरू हुई। 2017 के नगर निकाय चुनाव के लिए 27 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की गई थी जबकि तीन चरणों में चुनाव कराने के बाद एक दिसंबर को मतगणना हुई थी। इस लिहाज से इस बार भी समय पर चुनाव कराने के लिए अक्टूबर में ही अधिसूचना जारी की जानी चाहिए थी मगर सरकार तैयारियों के मोर्चे पर पिछड़ी हुई दिखी।
इस बार के निकाय चुनाव के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण दिसंबर में तय हुआ जबकि मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण 5 दिसंबर को जारी किया गया था। नगर विकास विभाग की ओर से दिसंबर के मध्य तक चुनाव कार्यक्रम आयोग को सौंपने की तैयारी थी मगर मामला हाईकोर्ट में पहुंचने के बाद सबकुछ अधर में लटक गया। सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2010 में सुनाए गए फैसले में स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि चुनाव प्रक्रिया शुरू करने से पहले आयोग का गठन करके ओबीसी के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण तय किया जाए मगर नगर विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का भी ख्याल नहीं रखा।
सरकार के लचर रवैए पर विपक्ष हमलावर
यही कारण है कि अब इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए तीखा हमला बोला है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा आरक्षण विरोधी है और वह निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर घड़ियाली आंसू बहा रही है। बसपा मुखिया मायावती ने भी तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि सरकार की ओर से की गई इस गलती की सजा ओबीसी समाज की ओर से भाजपा को जरूर मिलेगी।
आप नेता संजय सिंह ने भी सरकार पर जानबूझकर गलत आरक्षण करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि भाजपा दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की विरोधी है। विपक्ष की ओर से आरक्षण के मुद्दे को लगातार धार देने की कोशिशों के मद्देनजर सरकार भी सतर्क हो गई है और ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी करके ओबीसी को आरक्षण देने की बात कही जा रही है।